35 साल बाद मिला आंसुओं का सिला! आतंक पीड़ित परिवारों के जख्मों पर लगा मरहम, LG ने माफी भी मांगी
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35 साल बाद मिला आंसुओं का सिला! आतंक पीड़ित परिवारों के जख्मों पर लगा मरहम, LG ने माफी भी मांगी

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद पीड़ित परिवारों के जख्मों पर मरहम लगाया है. उन्होंने योजना के पहले चरण में बारामुल्ला के अंदर 40 पीड़ित परिवारों को नियुक्ति पत्र दिए हैं. 

35 साल बाद मिला आंसुओं का सिला! आतंक पीड़ित परिवारों के जख्मों पर लगा मरहम, LG ने माफी भी मांगी

फहमीदा और उनकी बेटी दरक्शा का संघर्ष आज 9 साल बाद खत्म हो गया, जब उनके परिवार के मुखिया फैयाज अहमद की उत्तरी कश्मीर के रफियाबाद इलाके में आतंकवादियों ने हत्या कर दी. पेशे से दुकानदार फैयाज को 2016 में आतंकवादियों ने उनके घर से बाहर निकाला और उन पर भारतीय एजेंट होने का आरोप लगाते हुए कई गोलियां चलाईं. अब 9 साल के संघर्ष के बाद फहमीदा अपनी बेटी के साथ बारामुल्ला यूनिवर्सिटी हॉल से नियुक्ति पत्र लेकर खुशी-खुशी बाहर निकलीं.

फमीदा बेगम ने कहा,'मुझे आज 9 साल बाद इंसाफ मिला. मैं एलजी की शुक्रगुजार हूं. मैं बयां नहीं कर सकती कि मैंने वो 9 साल कैसे बिताए जब हम रिश्तेदारों पर निर्भर थे. मेरे दो बच्चे थे जिनका पालन-पोषण करना था. 2016 में तीन लोग रफियाबाद बारामुल्लाह में हमारे घर में घुस आए और हमें बंद करके, मेरे पति को ले गए. मैं किसी तरह बाहर निकली और जल्द ही हमने गोलीबारी की आवाज सुनी और पता चला कि उन्होंने मेरे पति को मार दिया. तब से हम बेसहारा हो गए थे, आज हमारे जीवन की एक नई शुरुआत है.

ईश्वर ने हम पर कृपा की है

फहमीदा की बेटी दरक्शा ने कहा,'यह हमारे लिए बहुत अहम दिन है. 2016 से अब तक हमारे परिवार ने बहुत संघर्ष किया है. हमारे पास कमाई का कोई जरिया नहीं था. अब जब मनोज सर ने हमें यह (नियुक्ति पत्र) दिया है, तो हम उनके आभारी हैं. ईश्वर ने हम पर कृपा की है.' मेरी मां ने बहुत संघर्ष किया था, वह हमारी पिता भी बनीं और हमें शिक्षा दी. यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था. हमसे पहले कई लोग इसका शिकार हुए हैं.'

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यह सिर्फ उनके लिए ही खुशी का दिन नहीं है, बल्कि आज बारामुल्लाह यूनिवर्सिटी के सभागार में सैकड़ों आतंकवाद पीड़ितों के चेहरों पर भविष्य के उजाले की चमक दिखी. कुपवाड़ा के दो युवक आदिल अहमद और सैयद फारूक अहमद एक और दर्दनाक कहानी सुनाते हैं, उन्होंने 2000 और 90 के दशक की शुरुआत में अपने प्रियजनों को खो दिया था और दशकों बाद अब उन्हें इंसाफ की आशा जगी है.

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'उपराज्यपाल का धन्याव...'

आदिल अहमद शेख ने बताया कि जब आतंकवादी उनके घर में घुस आए और उनकी गर्भवती मां समेत उनके चार परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी, तब वह बच्चे ही थे. उन पर सुरक्षा बलों की मदद करने का आरोप लगाया गया था. तब से उनके रिश्तेदार और पड़ोसी उनकी देखभाल कर रहे हैं. आदिल ने आगे कहा,'मैं सबसे पहले उपराज्यपाल का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने हमारे मुद्दे को गंभीरता से लिया है. मैंने 20 सालों में पहला राज्यपाल ऐसा देखा है जिसने हमारे लिए आवाज उठाई है. 2004 में कुपवाड़ा में मेरे घर में कुछ लोग घुस आए और अंधाधुंध गोलीबारी की और मेरी गर्भवती मां समेत परिवार के 4 लोगों को मार डाला.' तब से हम असहाय जीवन जी रहे हैं, हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. कई सरकारें आईं, लेकिन किसी ने परवाह नहीं की. यहां जो लोग हैं वे सभी आतंकवाद के शिकार हैं और सभी को उम्मीद है कि अब कुछ होगा.'

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'मैं 6 महीने का था जब मेरे पिता को मारा...'

सैयद फारूक अहमद ने कहा,'मैं 6 महीने का था जब मेरे पिता को घर से निकाल दिया गया और तीन दिनों तक टॉर्चर किया गया और उनके शव को हंदवाड़ा चौक में फेंक दिया गया. यह 1992 की बात है. तब से हमें कुछ नहीं मिला. सबसे पहले मेरी मां ने एसआरओ केस के लिए लड़ाई लड़ी, उनकी की भी मौत हो गई. फिर मैंने उसको फॉलो किया. मेरी फाइल कुपवाड़ा के डीसी कार्यालय में थी, लेकिन उन्होंने हमेशा कहा कि यह अंडर प्रोसेस है और कुछ नहीं हुआ. किसी भी सरकार ने मदद नहीं की. अब हम यहां इसलिए आए हैं क्योंकि उपराज्यपाल ने यह कदम उठाया है. जब इस योजना की घोषणा हुई थी, तो यह हमारे लिए ईद की तरह था.'

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20 हजार परिवारों की पहचान हुई

जम्मू कश्मीर में अब तक लगभग 20 हजार आतंकवाद पीड़ितों की पुनर्वास के लिए पहचान की गई है, जिनके दस्तावेज़ों की जांच की जा रही है. इनमें से कई को नौकरी मिलेगी और कई को अपना कारोबार शुरू करने के लिए अच्छी रकम दी जाएगी. ये सभी पीड़ित इंसाफ दिलाने, पुनर्वास कराने और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए उपराज्यपाल प्रशासन के आभारी हैं.

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पहले चरण में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बारामूला के सरकारी डिग्री कॉलेज में एक समारोह के दौरान 40 आतंकवाद पीड़ितों को नियुक्ति पत्र सौंपे. यह पहल प्रभावित परिवारों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने और समय पर मदद सुनिश्चित करने के एक व्यापक प्रयास का हिस्सा है. यह योजना आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने पर केंद्रित है.

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जब्त की गई संपत्तियां वापस की जाएंगी

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद पीड़ितों की शिकायतों का एक तीखा खुलासा किया. हाल ही में जब उन्होंने अनंतनाग में उन पीड़ितों से मुलाकात की, तो उनमें से कई पीड़ित 1990 के दशक के खूनी संघर्ष से जुड़े थे. उन्होंने जस्टिस गंजू की हत्या और वंधामा-गांदरबल नरसंहार का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में कोई FIR दर्ज नहीं की गई, जमीन और मुआवजा देने से इनकार कर दिया गया. प्रशासन ने उन मामलों की समीक्षा करने का भी फैसला किया है जहां FIR दर्ज नहीं की गई या संपत्ति जब्त कर ली गई. ऐसे मामलों की जांच की जाएगी और जहां भी लागू हो, जब्त की गई संपत्तियां वापस की जाएंगी.'

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40 आतंकवाद पीड़ितों को नौकरी दी

एलजी सिन्हा ने कहा,'यह मेरी जानकारी में नहीं था. मुझे इसका खेद है. मैंने छह महीने पहले आतंकवाद पीड़ित परिवारों से मुलाकात की थी. 29 जून को जब मैं आतंकवाद पीड़ित परिवारों से फिर मिला, तब मुझे यह बात समझ में आई और मैंने अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई और तय किया कि नौकरी के असली हकदार कौन हैं, जिनकी एफआईआर दर्ज है और जिनकी जमीन आतंकवादियों ने हड़प ली है, उनकी मदद की जानी चाहिए. इसी प्रक्रिया में आज 40 आतंकवाद पीड़ितों को नौकरी दी गई है और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी. हमने जम्मू-कश्मीर में हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं. मैं आतंकवाद पीड़ित परिवारों से अनुरोध करता हूं कि वे अपने मामले दर्ज कराएं और यह सुनिश्चित है कि उनके मामलों का त्वरित गति से निपटारा होगा.'

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क्या है यह योजना?

जम्मू और कश्मीर में शुरू की गई आतंकवाद पीड़ित पुनर्वास योजना, आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में मारे गए नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों के परिवारों को न्याय, आर्थिक सहायता और पुनर्वास प्रदान करने के लिए एक शानदार पहल है. यह योजना आतंकवाद पीड़ितों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने के लिए अनुकंपा रोजगार के लिए पहले से मौजूद नीति, एसआरओ-43 योजना का लाभ उठाने पर केंद्रित है. इसके साथ ही यह योजना प्रभावित परिवारों की आर्थिक स्थिरता को सहारा देने के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है. यह यकीनी बनाया गया है कि पीड़ित परिवारों को 'घर पर ही नौकरी' मिले, उन्हें दफ्तरों के चाकर ना काटने पड़ें. यह पहल पिछली प्रशासनिक कमियों को दूर करेगी जहां SRO-43 के लाभों का दुरुपयोग किया गया और अपने ही लोगों को लाभ पहुंचाया गया, लेकिन अब हम यह सुनिश्चित किया जा रहे हैं कि सिर्फ वास्तविक आतंकवाद पीड़ितों के परिवारों को ही इसका लाभ मिले.

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अन्य जिलों को भी मिलेगा फायदा

जम्मू कश्मीर ने 1990 से आतंकवाद का कठिन दौर देखा है और उन 35 वर्षों में हजारों भारत समर्थक लोगों को निशाना बनाया गया और हजारों लोग मारे गए. पीड़ितों को उनके घर पर ही न्याय, नौकरी और वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली इस योजना की व्यापक रूप से सराहना हो रही है. आज बारामूला में शुरू हुई यह प्रक्रिया सिलसिलेवार तरीके से जम्मू कश्मीर के सभी जिलों में लागू होगी, जहां संबंधित अधिकारियों ने पीड़ितों के लिए रजिस्ट्रेशन कराने और लाभ हासिल करने के लिए हेल्पलाइन जारी की हैं.

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