सतयुग जितना पुराना कानपुर का बाणेश्वर शिव मंदिर, मंदिर में सुबह की पहली पूजा का रहस्य आज भी बरकरार
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सतयुग जितना पुराना कानपुर का बाणेश्वर शिव मंदिर, मंदिर में सुबह की पहली पूजा का रहस्य आज भी बरकरार

Baneshwar Shiv Mandir: कानपुर के इस गांव में एक ऐसा मंदिर है. इसका रहस्य आजतक बरकरार है. मान्यता अनुसार हजारों साल से मंदिर में सुबह-सुबह शिवलिंग पूजा हुआ मिलता है. साथ ही कावड़ियों की पूजा इस मंदिर में गंगा जल को चढ़ाएं बिना पूरी नहीं होती है

mystery Temple
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Kanpur News/आलोक त्रिपाठी: उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में एक ऐसा मंदिर है. इस मंदिर के रहस्य को आज तक कोई  जान नहीं सका है  यहां पर बताया जाता है कि सुबह मंदिर खुलने से पहले ही मंदिर में पुजा हो जाती है. मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर  में  कोई ऐसा व्यक्ति आता है... 

कानपुर शहर से दूर बनीपारा गांव में बाणेश्वर शिव मंदिर है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि सतयुग में राजा बाणेश्वर की बेटी यहां सबसे पहले पूजा करती थी और तब से अब तक इस शिवलिंग पर सबसे पहले सुबह यहां कौन पूजा करता है इसका रहस्य आजतक बरकरार है. आस-पास के लोगों का कहना है कि हजारों साल से मंदिर में सुबह-सुबह शिवलिंग पूजा हुआ मिलता है. यहां के लोगों की आस्था है कि सावन के सोमवार उपवास रखने के बाद यहां जल चढ़ाने मात्र से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है.

पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. इतिहास लेखक प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के अनुसार सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी. दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था. परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था. अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया. मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तिया पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं.

कुछ ऐसी ही मान्यता कावड़ियों के साथ है. कहा जाता है कि कावड़ियों की पूजा इस मंदिर में गंगा जल को चढ़ाएं बिना पूरी नहीं होती है. मुगल शासकों ने इसे नष्ट करने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके. इस मंदिर के पंडित किशन बाबू के अनुसार मंदिर के संबंध में कथा है कि सतयुग में राजा बाणेश्वर थे वो सतयुग से द्वापरयुग तक राजा रहे है. बाणेश्वर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी. भगवान शिव ने बाणेश्वर को दर्शन दिए और इच्छा वरदान के लिए कहा तो बाणेश्वर ने भगवान शिव को मांगा.

तब भगवान शिव ने प्रारूप के रुप में शिवलिंग दिया. लेकिन शर्त रखी कि अगर शिवलिंग को महल में जाने के क्रम में जमीन रख दिया तो दोबारा नहीं उठ पाएगा.  लेकिन कुछ कारणवश बाणेश्वर को शिवलिंग जमीन पर रखना पड़ जाता है तब उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया था.

इस मंदिर की खास बात ये है कि सावन में कावंड़ियों की पूजा तब तक सफल नहीं होती है जब तक वे इस शिवलिंग में गंगा जल न चढ़ाया जाए. इस कारण इस मंदिर में कावड़ियों का जमावड़ा लगता है . नागपंचमी वाले दिन यहां पर कुश्ती का भी आयोजन होता है जिसमे कई जनपदों के पहलवान हिस्सा लेते है.

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