Benefits of Desi Cow Milk: कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान एक रोचक बात कही. जस्टिस सुंदरेश ने वकील से पूछा...'तो क्या अब तिरुपति के लड्डू भी स्वदेशी होंगे?' जवाब में वकील ने कहा कि पूजा तो आगमशास्त्रों के अनुसार ही होनी चाहिए. इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि, पूजा का मकसद आखिर क्या होता है?
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Cow Milk Tirupati: सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति बालाजी मंदिर में सिर्फ देसी गायों के दूध के इस्तेमाल की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. याचिका में यह अपील की गई थी कि भगवान वेंकटेश की पूजा और भोग प्रसाद में सिर्फ देसी नस्ल की गायों के दूध का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कई मामले इससे ज्यादा जरूरी हैं, जो पेंडिंग हैं. पहले उन पर सुनवाई जरूरी है. याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता चाहें तो हाईकोर्ट जा सकते हैं.
कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान एक रोचक बात कही. जस्टिस सुंदरेश ने वकील से पूछा...'तो क्या अब तिरुपति के लड्डू भी स्वदेशी होंगे?' जवाब में वकील ने कहा कि पूजा तो आगमशास्त्रों के अनुसार ही होनी चाहिए. इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि, पूजा का मकसद आखिर क्या होता है? ईश्वर के प्रति प्रेम प्रकट करना ही ना? दूध देसी गाय दे या किसी और नस्ल की गाय, ईश्वर को इससे कोई मतलब नहीं है. ईश्वर की नजरों में भेद नहीं है. यह जाति, धर्म, नस्ल, भाषा या किसी और तरह का फर्क सिर्फ इंसानों के लिए है, 'ईश्वर सबका है, सभी ईश्वर के हैं.'
देसी और अन्य गायों में क्या है फर्क?
देसी गाय वर्सेस अन्य गाय के इस नए विवाद ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि देसी गाय और अन्य गायों में अंतर क्या है? क्यों मंदिर के भोग और प्रसाद में देसी गाय के दूध, दही और घी के उपयोग की मांग की जा रही है?
देसी गाय दरअसल स्वदेशी नस्लों वाली गायों को कहा जाता है. जैसे साहिवाल, गिर, राठी, थारपारकर, और कांकरेज. अन्य गायें आम तौर पर विदेशी नस्लों की होती हैं. इनमें होल्सटीन-फ्रीशियन, जर्सी, और ब्राउन स्विस शामिल है. देसी गायों के कंधे पर कूबड़ होता है, जिसे अंग्रेजी में hump कहते हैं. अन्य गायों में कूबड़ नहीं होता. देसी गायों का औसत वजन 200-400 किलोग्राम होता है, जबकि होल्सटीन नस्ल की गाय का वजन 600-800 किलोग्राम तक हो सकता है.
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— Zee News (@ZeeNews) July 22, 2025
देसी गाय के दूध में पोषण ज्यादा
दोनों गायों के दूध को लेकर अंतर देखें तो देसी गाय रोजाना 2 से 6 लीटर दूध देती है. होल्सटीन-फ्रीशियन नस्ल की गायें 15 से 30 लीटर दूध देती हैं. लेकिन पोषण और पाचन के लिए देसी गायें ज्यादा उपयोगी मानी जाती हैं. देसी गायों में FAT की मात्रा 4 से 6 फीसदी होती है, जबकि विदेशी नस्ल की गायों में वसा 3 से 4 फीसदी ही होती है. देसी गाय के दूध में A2 बीटा-कैसिन प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो पाचन के लिए बेहतर माना जाता है. जबकि विदेशी नस्लों की गायों में A1 बीटा-कैसिन प्रोटीन पाया जाता है, जिसे कुछ रिसर्च में पाचन की समस्याओं से जोड़ा गया है. हालांकि कुछ रिसर्च इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते.
कुल मिलाकर देसी गायों का दूध पोषण के लिहाज से अधिक गुणकारी माना जाता है, लेकिन विदेशी नस्लें कमर्शियल दूध उत्पादन के लिए ज्यादा लोकप्रिय हैं. इस रिसर्च से ये तो साबित होता है कि देसी गायों के दूध सेहत के लिहाज से बेहतर हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर पूजा-भोग-प्रसाद में देसी गायों के दूध, दही और घी के ही उपयोग का आग्रह क्यों है? भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में देसी गाय का इतना महत्व क्यों है? क्यों गाय को मां का दर्जा दिया गया है?
ऋगवेद में 700 बाद आया है गाय शब्द
वेदों की बात करें तो ऋगवेद में गाय के लिए 'गौ' शब्द 700 बार आया है. यानी 'अग्नि' शब्द के बाद सबसे ज्यादा गाय का जिक्र है.अग्नि शब्द का उल्लेख 1000 बार हुआ है और भगवान इन्द्र का उल्लेख 250 से 300 शब्दों में होता है. ऋगवेद और यजुर्वेद दोनों में ही गाय को 'अघन्या' कहा गया, जिससे इसकी रक्षा का महत्व उजागर होता है. अथर्ववेद में गाय को 'विश्वरूपा' कहा गया है, जो सभी प्राणियों के लिए जीवनदायिनी है.
पुराणों में गाय को कामधेनु यानी मनोकामना पूर्ण करने वाली कहा गया है. समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई कामधेनु को सभी गायों की जननी माना जाता है. गाय को मां मानने की संकल्पना सबसे पहले पुराणों में ही मिलती है. विष्णु पुराण और भागवत पुराण में गाय को पृथ्वी का प्रतीक माना गया है, जो सभी प्राणियों का पोषण करती है. भगवान कृष्ण को "गोपाल" और "गोविंद" कहा जाता है. भागवत पुराण में उनके गायों के साथ प्रेम और संबंधों के कई प्रसंग हैं. गाय दान को सबसे बड़ा दान माना जाता है, जो मोक्ष और पुण्य प्रदान करता है.
मनुस्मृति में गाय की हत्या को महापाप बताया गया है. गाय की सेवा और रक्षा को पुण्य का काम माना गया है. चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में गाय के दूध, घी, गोमूत्र और गोबर को औषधीय गुणों से युक्त बताया गया है. पंचगव्य यानी गाय के पांच उत्पाद का उपयोग स्वास्थ्य और आध्यात्मिक शुद्धि में होता है.
जीवन में गायों की अहम भूमिका
यह तो हुई शास्त्रों की बात अब हम शुद्ध व्यावहारिक जीवन की बात करें तो हमारे पुरखों के जीवन का आधार ही गायों के साथ जुड़ा हुआ था, आज भी हमारे जीवन में गायों की भूमिका अहम है.
एक बच्चे की मिसाल से इसे समझने की कोशिश कीजिए. जब हमारे घरों में बच्चे जन्म लेते हैं तो सबसे पहले उन्हें मां के दूध के बाद गाय का दूध दिया जाता है. यानी गाय पोषण देती है. इसलिए गाय को माता कहा जाता है. फिर बच्चे का नामकरण होता है, उसकी पहचान तय होती है. और बच्चे का 'गोत्र' तय होता है. कोई भारद्वाज गोत्र का होता है तो कोई कश्यप गोत्र का तो कोई किसी और गोत्र का. यह 'गोत्र' शब्द भी यानी हमारी और आपकी पहचान भी 'गौ' शब्द से बनी है. जिस ऋषि-मुनि के गुरुकुल और गौशाला से हमारे पुरखे जुड़े थे, वही हमारा गोत्र हो गया.
गौ से आए हैं कई शब्द
अब नामकरण से आगे चलिए. बच्चा स्कूल जाने लाएक हुआ. जाना और आना शब्द भी संस्कृत के 'गमन' और 'आगमन' शब्द से बना है. पुराने जमाने के स्कूलों को 'गुरुकुल' कहा जाता था. गुरुकुल शब्द भी 'गौ' शब्द से ही बना है. शाम होते ही घर लौटने का समय होता है. शाम के वक्त को 'गोधूलि बेला' कहा जाता है.
इसी तरह बच्चे जब बड़े हो जाते थे तो खेती करना सीखते थे. खेतों में गाय के गोबर से बनी हुई खाद डाली जाती थी. फसल तैयार होने के बाद मानव बिजनेस यानी धंधा करना सीखता था. यह धंधा शब्द भी 'गोरखधंधा' शब्द से आया है. बाद में इस शब्द का अर्थ नकारात्मक हो गया, लेकिन इस शब्द के मतलब पर गौर करें तो पुराने जमाने में बिजनेस या व्यापार का मतलब ही गाय रखने का धंधा हुआ करता था.
लोग गांवों में रहा करते थे. ग्राम शब्द भी गाय शब्द से आया है. गांवों में सारा आर्थिक और सामाजिक व्यवहार गायों के ही प्रोडक्ट यानी दूध, दही, घी, मलाई से ही जुड़ा हुआ होता था. आध्यात्मिक जीवन में भी पूजा के लिए हम पंचद्रव्य का ही उपयोग करते हैं. तो इससे आप समझ सकते हैं कि गाय का हमारे पूर्वजों के जीवन में कितना महत्व रहा है और यह महत्व आज भी कायम है.