7305 दिनों से ग्रहों की स्टडी, ढूंढ निकाली नई दुनिया...क्या पृथ्वी के बाहर भी है जीवन?
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7305 दिनों से ग्रहों की स्टडी, ढूंढ निकाली नई दुनिया...क्या पृथ्वी के बाहर भी है जीवन?

Life Beyond Earth: खगोलविद तेजी से ताकतवर स्पेस दूरबीनों के लिए प्लान और तकनीक विकसित कर रहे हैं,. मिसाल के तौर पर नासा अपने प्रस्तावित हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी पर काम कर रहा है, जो अल्ट्राशार्प तस्वीरें लेगा जो सीधे आस-पास के तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों को दिखाएगा.

7305 दिनों से ग्रहों की स्टडी, ढूंढ निकाली नई दुनिया...क्या पृथ्वी के बाहर भी है जीवन?

Life Beyond Earth: पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज आज के खगोल विज्ञान ( Astronomy ) और ग्रह विज्ञान ( Planetary Science ) का एक बड़ा मकसद है. अमेरिका इस दिशा में कई ताकतवर दूरबीनों और स्पेसशिप का निर्माण कर रहा है. लेकिन अगर हमें किसी ग्रह पर जीवन का कोई संकेत (जिसे बायोसिग्नेचर कहा जाता है) मिले, तो उसे सही तरह से समझना आसान नहीं होगा. यह जानना भी मुश्किल है कि आखिर हमें कहां देखना चाहिए?

हालांकि, इसके बारे में खगोलभौतिकीविद् ( Astrophysicist ) और खगोलजीवविज्ञानी ( Astrobiologist ) पिछले 20 सालों से सौरमंडल से बाहर के ग्रहों का स्टडी कर रहा है. इस खोज में उनके साथियों ने भी अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने मिलकर एक नया तरीका विकसित किया है, जिससे हम यह पहचान सकते हैं कि कौन-से ग्रह या चंद्रमा जीवन के लिए सबसे मुनासिब हो सकते हैं या नहीं. यह तरीका पृथ्वी पर जीवन की सीमाओं के स्टडी पर आधारित है.

जीवन की खोज के लिए नई दूरबीनें
खगोलविद तेजी से ताकत वर स्पेस दूरबीनों के लिए प्लान और तकनीक विकसित कर रहे हैं,. मिसाल के तौर पर नासा अपने प्रस्तावित हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी पर काम कर रहा है, जो अल्ट्राशार्प तस्वीरें लेगा जो सीधे आस-पास के तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों को दिखाएगा. इसमें एक अन्य कॉन्सेप्ट में नॉटिलस स्पेस दूरबीन तारामंडल, विकसित कर रहे हैं, जिसे पृथ्वी जैसे संभावित सैकड़ों ग्रहों का स्टडी करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. खासतौर पर जब वे अपने मेजबान तारों के सामने से गुजरते हैं.

इन और फ्यूचर की अन्य दूरबीनों का मकसद ज्यादा विदेशी दुनियाओं के अधिक संवेदनशील अध्ययन प्रदान करना है. उनके विकास से दो अहम सवाल उठते हैं. पहला 'कहाँ देखें?' और टक्या वे वातावरण जहां हमें लगता है कि हम जीवन के संकेत देखते हैं, वास्तव में रहने योग्य हैं?'

अप्रैल 2025 में घोषित बाह्यग्रह K2-18b में जीवन के संभावित संकेतों के बारे में जरूरत से ज्यादा विवादित दावे किए. तथा शुक्र ग्रह पर पहले किए गए इसी प्रकार के दावे, यह दर्शाते हैं कि रिमोट सेंसिंग डेटा से जीवन की मौजूदगी की निर्णायक रूप से पहचान करना कितना कठिन है.

पृथ्वी से बाहर जीवन की खोज
क्या कोई एलियन दुनिया रहने के काबिल हो सकती है? 'रहने योग्य' यानी वह जगह जहां जिंदगी टिक सके. लेकिन सवाल है कि कौन-सी हालात किसी एलियन जीवन के लिए सही होंगी? क्या परग्रही सूक्ष्म जीव (  alien microbe ) बहुत तेज़ाबीय झीलों, बहुत ठंडी मीथेन की नदियों या वीनस के बादलों में रह सकते हैं?

जबकि, अब तक नासा ( NASA ) का सरल सिद्धांत रहा है कि 'जहां पानी है, वहां जीवन की संभावना है.' क्योंकि पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों को पानी चाहिए होता है. लेकिन जैसे-जैसे वैज्ञानिक दूसरे प्लावनेट्स का स्टडी बेहतर तरीके से करने लगे हैं, अब ज़रूरत है एक ऐसे तरीके की जो सिर्फ पानी पर डिपेंडेंट न हो और जो ज्यादा सटीक हो.

फिलहाल कई वैज्ञानिक नासा के 'एलियन अर्थ्स' प्रोजेक्ट के तहत इस पर काम कर रहे हैं. दुनियाभर के एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर एक नया तरीका तैयार किया है. 'क्वांटिटेटिव हैबिटेबिलिटी फ्रेमवर्क.' इसका मकसद है यह समझना कि किसी स्पेस या चंद्रमा पर पाई जाने वाली परिस्थितियां क्या किसी Special Creatures या लिविंग अरेंजमेंट के लिए अनुकूल हैं या नहीं.

इस तरीके के दो अहम पहलू हैं:-
एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में अनुसंधान के एसोसिएट डीन और खगोल विज्ञान और ग्रह विज्ञान के प्रोफेसर डैनियल अपाई ने कहा कि हम हम यह पूच रहे हैं कि 'यह जगह जीवन के लिए अनुकूल है या नहीं?' बल्कि यह कि 'यह जगह किसी खास जीव के लिए सही है या नहीं?' जैसे- ऊंचाई पर रहने वाले कीड़े या समुद्र की गहराई में रहने वाले Micro Organism. यह तरीका सफेद या काले यानी हां या ना में जवाब नहीं देता. यह संभावनाओं पर काम करता है. यानी कितनी संभावना है कि कोई जीव वहां ज़िंदा रह सकेगा.

एस्ट्रोनॉमी पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे कठिन परिस्थितियों में जीने वाले जीवों का डेटा इकट्ठा किया. जैसे बर्फीले इलाके, गरम पानी के सोते और गहरे समुद्र के जीव. फिर हमने मॉडल से यह जांचा कि क्या ये जीव मंगल की सतह के नीचे या यूरोपा ( बृहस्पति का एक बर्फीला चंद्रमा ) जैसे चंद्रमा के समुद्र में ज़िंदा रह सकते हैं.

यह तरीका अभी पूरी तरह से सभी पोषक तत्वों या जीवन के इफेक्ट्स को नहीं शामिल करता, लेकिन यह जानबूझकर आसान रखा गया है क्योंकि दूसरे ग्रहों के बारे में हमारी जानकारी अभी भी सीमित है. इस नए तरीके की मदद से वैज्ञानिक यह तय कर सकते हैं कि किस ग्रह या जगह पर जीवन की तलाश की जानी चाहिए. साथ ही, अगर किसी जगह जीवन के संकेत मिलते हैं, तो यह तरीका यह भी बता सकता है कि क्या वहां ऐसा जीवन सच में टिक सकता है.

खगोल विज्ञान और ग्रह विज्ञान के डीन डैनियल अपाई ने कहा कि अब हम एक ऐसा डेटाबेस बना रहे हैं जिसमें पृथ्वी के चरम जीवों की जानकारी होगी और साथ ही काल्पनिक एलियन जीवन के मॉडल भी. इससे हमें नई खोजों की बेहतर व्याख्या करने और सही दिशा में खोज को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.

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