धरती से खरबों मील दूर मिला जिंदगी का 'सबूत'! नहीं रहा वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना
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धरती से खरबों मील दूर मिला जिंदगी का 'सबूत'! नहीं रहा वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना

NASA: सौर मंडल में पानी खोजने के लिए आमतौर पर अनुकूल वातावरण, हल्के तापमान वाले स्थान, भूमिगत जल भंडार या नमी को महफूज रखने और संरक्षित करने के लिए पर्याप्त मोटे वायुमंडल की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन इस बार यह बुध ग्रह पर पाया गया है, जो इन सभी उम्मीदों से बिल्कुल अलग है.

धरती से खरबों मील दूर मिला जिंदगी का 'सबूत'! नहीं रहा वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना

Water Discovery on Mercury: साइंटिस्ट के लिए पानी के क्षेत्र में खोज हमेशा से काफी दिलचस्प रहा है. साइंटिस्ट का मानना है कि जहां पानी है, वहां जीवन हो सकता है. जबकि पूरा ब्रह्मांड सुरागों से भरा पड़ा है, चाहे वह मंगल ग्रह की सूखी नदी तलहटी हो या गैस ग्रहों ( Gas Planets  )  की परिक्रमा करने वाले बर्फीले चंद्रमा. वहीं, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हर रोज नई-नई खोज हमें याद दिलाता है कि हमारा सौर मंडल ( solar system ) हमारी सोच से कहीं ज्यादा वॉन्डरर्स से भरा पड़ा है. जबकि मंगल ग्रह अक्सर पृथ्वी के अलावा पानी वाला सबसे ज्यादा चर्चित ग्रह है. 2012 में नासा के वैज्ञानिकों ने ग्रह बर्फ होने की एक मजबूत सबूत की खोज की. इससे ये साफ होता है कि बुध पर पानी है. 

सौर मंडल पर बर्फ 
सौर मंडल में पानी खोजने के लिए आमतौर पर अनुकूल वातावरण, हल्के तापमान वाले स्थान, भूमिगत जल भंडार या नमी को महफूज रखने और संरक्षित करने के लिए पर्याप्त मोटे वायुमंडल की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन इस बार यह बुध ग्रह पर पाया गया है, जो इन सभी उम्मीदों से बिल्कुल अलग है. यह इतना पतला वायुमंडल कि वह मुश्किल से मौजूद है. यह एक तपती सतह और लगभग छह पृथ्वी महीनों तक चलने वाला है. ऐसा लगता है कि यह आखिरी जगह है जहां पानी बच सकता है.

फिर भी 2012 में नासा के मैसेंजर मिशन के दौरान साइंटिस्ट ने बुध पर ऐसे क्षेत्रों का पता लगाया जो न केवल ठंडे थे, बल्कि सूरज की रोशनी से भी हमेशा के लिए महफूज थे. गहरे गड्ढों के भीतर मौजूद इन ध्रुवीय क्षेत्रों में कुछ असामान्य दिखाई दिया, जिसमें मजबूत रडार प्रतिबिंब शामिल थे जो बर्फ के संकेत थे.

NASA ने क्या कहा?
वहीं, नासा ने बताया कि, 'रडार संकेत उच्च परावर्तनशीलता ( Radar Signal High Reflectivity ) और मजबूत विध्रुवीकरण ( Depolarization ) को दर्शाते हैं, जो ग्रहों की सतह पर पानी की बर्फ के क्लासिक संकेत थे.'

इसकी खोज कैसे की गई?
यह खोज बुध ग्रह  ( Mercury Planet ) पर कदम रखे बिना ही अरेसिबो रेडियो टेलीस्कोप, गोल्डस्टोन एंटीना और वेरी लार्ज एरे (वीएलए) जैसे डिवाइसेस का इस्तेमाल करके की गई थी. रिसर्चर ने बुध की सतह से टकराने वाले रेडियो संकेतों का स्टडी किया.हाई रिफ्लेक्टेंस और डिपोलाराइजिंग इफेक्ट. खासतौर से पोल्स के पास प्रतिकूल परिवेश के बावजूद पानी की बर्फ के मजबूत इंडिकेटर  थे.

सूरज के इतने पास मौजूद ग्रह पर बर्फ क्यों जमी रहती है?
खैर, यह सब जियोग्रफी के बारे में है. बुध के पोल्स पर मौजूद क्रेटर कभी भी सूरज की रोशनी नहीं देखते हैं. गर्मी के कॉन्टैक्ट में आए बिना, इन साए ( Shadows ) में तापमान इतना ठंडा रहता है कि बर्फ संभवतः अरबों सालों तक बनी रह सकती है.

ऐसे में, सवाल उठता है कि फिर बर्फ वहां कैसे पहुंची? इसे लेकर नासा ने दो सिद्धांत पेश किए हैं. पहला यह कि पानी उल्कापिंडों ( Meteorites ) और धूमकेतुओं ( Comets ) के जरिए से पहुंचा. खास तौर पर सौर मंडल के शुरुआती सालों में. दूसरा यह कि बुध ने एक बार अपने भीतर से जल वाष्प ( Water Vapor ) छोड़ा होगा, जो बाद में ठंडे, छायादार गड्ढों में जम गया. इस खोज ने साइंटिस्ट के ग्रहीय जल स्रोतों ( planetary water sources ) के प्रति नजरिए को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है, जो यह साबित करता है कि तापमान और वायुमंडल ( Atmosphere ) ही एकमात्र कारण नहीं है. इसमें विशिष्ट भूवैज्ञानिक ( specialized geologist ) और ऑर्बिटल कंडीशन भी मायने रखती हैं.

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