DNA: इस्तांबुल से वॉशिंगटन तक...ईरान-इजरायल युद्ध पर मंथन, किसके पाले में जाएंगे मुस्लिम देश?
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DNA: इस्तांबुल से वॉशिंगटन तक...ईरान-इजरायल युद्ध पर मंथन, किसके पाले में जाएंगे मुस्लिम देश?

DNA Analysis: लंबे युद्धों में सिर्फ सेनाएं नहीं थकतीं सभ्यताएं टूटती हैं और भविष्य पीढ़ियों तक डर में जीता है. ये संदेश दुनिया के बड़े युद्धों के डरावने अंजाम पर आधारित है. जो इजरायल-ईरान युद्ध में खतरनाक हथियारों और नए देशों के जुड़ने की आशंका के बीच पूरे विश्व के लिए चेतावनी है. 

DNA: इस्तांबुल से वॉशिंगटन तक...ईरान-इजरायल युद्ध पर मंथन, किसके पाले में जाएंगे मुस्लिम देश?

DNA Analysis: लंबे युद्धों में सिर्फ सेनाएं नहीं थकतीं सभ्यताएं टूटती हैं और भविष्य पीढ़ियों तक डर में जीता है. ये संदेश दुनिया के बड़े युद्धों के डरावने अंजाम पर आधारित है. जो इजरायल-ईरान युद्ध में खतरनाक हथियारों और नए देशों के जुड़ने की आशंका के बीच पूरे विश्व के लिए चेतावनी है और यही वजह है इस वक्त पूरी दुनिया इस सवाल का जवाब तलाश कर रही है. क्या इस युद्ध को रोकने का कोई फॉर्मूला निकाला जाएगा या फिर इस युद्ध का दायरा और ज्यादा बढ़ने वाला है.

आज दुनिया के दो अलग अलग हिस्सों में हो रही बैठकें इन सवालों का जवाब दे सकती हैं. एक मीटिंग तुर्किए की राजधानी इस्तांबुल में चल रही है. जिसमें इस्लामिक सहयोग संगठन यानि ओआईसी के देश मिलकर ईरान-इज़रायल युद्ध पर मंथन कर रहे हैं. आज दुनिया को मालूम चलेगा क्या दुनिया के मुस्लिम देश इस युद्ध में ईरान को समर्थन देंगे और दूसरी मीटिंग इंस्ताबुल से 8 हजार 392 किलोमीटर दूर अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में होगी. ये मीटिंग अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति से करेंगे और इस मीटिंग में तय किया जा सकता है. अमेरिका इस युद्ध में शामिल होगा या नहीं.

इन दोनों ही बैठकों के नतीजे इरान इज़रायल युद्ध का दायरा बढ़ने या घटने पर असर डाल सकते हैं. आज आपको भी इन दोनों बैठकों के एजेंडे के बारे में जानना चाहिए. आज हम इज़रायल के खिलाफ मुस्लिम देशों की एकता का भी विश्लेषण करेंगे लेकिन पहले आप ईरान इजरायल जंग में आज का अपडेट देखिए. आज आपको ओआईसी की मीटिंग में शामिल होने के लिए इंस्ताबुल पहुंचे ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची की बातें भी बहुत ध्यान से सुननी चाहिए. 

 

अब सवाल ये उठता है, ईरान ने इज़रायल और अमेरिका के खिलाफ जंग की जो तैयारियां कर रखी हैं क्या मुस्लिम देश इसमें उसका साथ देंगे. आज आपको ये समझाने के लिए हम इस्तांबुल में चल रही 57 मुस्लिम देशों के समूह इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक का विश्लेषण करेंगे और इस सवाल का जवाब तलाश करने की कोशिश करेंगे. इस्तांबुल में चल रही इस बैठक में सभी बड़े मुस्लिम देशों के विदेश मंत्री मौजूद रहे. सदस्य देशों के रिकॉर्ड 1000 प्रतिनिधि इस बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे यानि ईरान इज़रायल विवाद को लेकर मुस्लिम दुनिया काफी संजीदा है. इस बैठक को सबसे पहले तुर्किए के राष्ट्रपति अर्दोआन ने संबोधित किया आज आपको उनकी कही गई बातें बहुत ध्यान से सुननी चाहिए.

अर्दोआन ने कहा 13 जून से ईरान इजरायल के आतंकवाद का सामना कर रहा है. यानि अर्दोआन ने इज़रायल को एक आतंकी देश कह दिया. अर्दोआन ने नेतन्याहू सरकार को 'क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ी बाधा' बताया यानि इजरायल को पूरे मिडिल ईस्ट के लिए खतरा बताया और आखिर में उम्मीद जताई, ईरानी लोग इन चुनौतीपूर्ण दिनों से पार पा लेंगे. यानि अपने बयान में अर्दोआन ने ईरान के साथ सहानुभूति दिखाई इज़रायल के खिलाफ बयान भी दिया लेकिन इस युद्ध में ईरान की मदद करने की बात नहीं की, दुनिया भर को हथियार बेच रहे अर्दोआन ईरान को इज़रायल के खिलाफ हथियार भी दे सकते हैं लेकिन ताकतवर देशों की ग्लोबल फायर रैंकिंग में 9वें नंबर पर मौजूद तुर्किए के राष्ट्रपति के मुंह से सिर्फ जुबानी मिसाइल चली, जबकि इस रैंकिंग के हिसाब से तुर्किए सबसे ज्यादा ताकतवर मुस्लिम देश है लेकिन तुर्किए ऐसा क्यों कर रहा है आज आपको ये भी समझना चाहिए.

मुस्लिम मुल्कों का खलीफा बनने का सपना देखने वाला तुर्किए ईरान का साथ देने से बच रहा है तो इसकी पहली वजह है इज़रायल की आक्रामकता और ताकत, जिसे देखते हुए कोई भी मुस्लिम मुल्क उससे सीधी दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता.  इज़रायल-ईरान युद्ध में अमेरिका.. इज़रायल के साथ खड़ा है और अमेरिका के इस युद्ध में शामिल होने की आशंका भी जाहिर की जा रही है. वहीं तुर्किए अमेरिका की अगुवाई वाले संगठन NATO का सदस्य देश है. अगर NATO के अनुच्छेद 5 यानि Collective Defence को लागू किया जाता है, तो तुर्किए को भी अमेरिका का सहयोग करना होगा. इस अनुच्छेद के मुताबिक NATO के किसी भी सदस्य पर हमले का जवाब सभी सदस्य देश मिलकर देंगे. इसके अलावा अमेरिका से सैन्य और आर्थिक संबंधों के कारण भी तुर्किए इस युद्ध में ईरान का साथ नहीं दे सकता.

 

म​तलब साफ है मुस्लिम दुनिया में छवि चमकाने के लिए तुर्किए भले ही इज़रायल के खिलाफ खुलकर बयान दे लेकिन वो ईरान का युद्ध में साथ देगा. इसकी संभावनाएं ना के बराबर हैं लेकिन दूसरे मुस्लिम मुल्कों से भी ज्यादा उम्मीद नहीं की जा रही. इस्लामिक देशों के संगठन में पाकिस्तान एकलौता ऐसा मुल्क है जिसके पास परमाणु बम है.ओआईसी की मीटिंग में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस्हाक डार ईरान के विदेश मंत्री के ठीक बगल में बैठे दिखाई दिए. पाकिस्तान अपने आधिकारिक बयान में अब तक ईरान के लिए सहानुभूति जाहिर करता रहा है लेकिन जिस तरह पाकिस्तान में असली ताकत रखने वाला सेना प्रमुख आसिम मुनीर ईरान के दुश्मन नंबर एक अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ लंच करके आया है. ईरान को पाकिस्तान से भी खतरा महसूस हो रहा है और अब ईरान ने अमेरिका के साथ साथ पाकिस्तान को भी धमकाना भी शुरू कर दिया है. आज आपको भारत में ईरानी दूतावास के उप मिशन प्रमुख जावेद हुसैनी के बयान के बारे में जरूर जानना चाहिए.

जावेद हुसैनी ने कहा इस संघर्ष में कोई तीसरा पक्ष शामिल हुआ तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. जावेद हुसैनी ने उम्मीद जताई पाकिस्तान ईरान के साथ खड़ा रहेगा. ईरानी राजनयिक ने पाकिस्तान को समझाया अगर इजरायल को आज नहीं रोका गया तो आगे कई और देश हमले झेलेंगे, यानि अगला नंबर पाकिस्तान का हो सकता है. जावेद हुसैनी ने बताया कुछ बड़े ह​थियार ईरान ने बचाकर रखे हैं इसे पाकिस्तान के लिए ईरान का अल्टीमेटम माना जा रहा है मतलब अगर पाकिस्तान ने इस युद्ध में अमेरिका का साथ दिया तो ईरान उसे भी सबक सिखा सकता है. यानि पाकिस्तान के लिए भी एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है. डॉनल्ड ट्रंप से डील करके आया मुनीर अगर युद्ध में अमेरिका की मदद करता है तो ईरान उसे सबक सिखाएगा और अगर अमेरिका की मदद नहीं करता तो उसे ट्रंप की नाराज़गी झेलनी होगी.

ऐसे में पाकिस्तान ईरान की इस युद्ध में कोई मदद करेगा  इसकी संभावना भी ना के बराबर है. सउदी अरब यूएई, कतर, मिस्र और कुवैत जैसे देश भी इज़रायल के हमले का विरोध कर चुके हैं लेकिन इज़रायल और अमेरिका के खिलाफ नहीं जा सकते. यानि ओआईसी की मीटिंग में ईरान के विदेश मंत्री को हमदर्दी और गुड लक के अलावा और कुछ नहीं मिलने वाला. 

आज आपको दुनिया के मुस्लिम देशों के संगठन OIC के बारे में कुछ और बातें भी जाननी चाहिए. किस तरह ये संगठन दुनिया के मुसलमानों के हितों की रक्षा की बात करता है. कई मुद्दों पर इस्लामी सहयोग संगठन में सहमति भी बन जाती है ले​किन मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकलता. OIC का मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दा शहर में है और OIC की स्थापना 1969 में यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद पर इज़रायली हमले के बाद हुई थी लेकिन जिस फिलिस्तीन के मुद्दे को लेकर ये संगठन बनाया गया । आज तक उसका भी कोई समाधान नहीं निकला है. OIC हर सम्मेलन में फिलिस्तीन को पूर्ण समर्थन देता है. OIC में दो-राज्य समाधान पर सहमति भी बनी लेकिन इस मुद्दे का आज तक हल नहीं निकला अब तो OIC के सदस्य देश यूएई, बहरीन और मोरक्को अब्राहम समझौते के तहत इज़रायल से राजनयिक संबंध भी स्थापित कर चुके हैं.

सभी OIC देश रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों की भी निंदा करते हैं OIC ने UN में भी रोहिंग्या मुसलमानों पर आवाज उठाई लेकिन म्यांमार पर OIC के पास कोई सीधा राजनीतिक या सैन्य दबाव नहीं है. इसलिए स्थायी समाधान नहीं हुआ. OIC ने यमन में स्थिरता और शांति की अपील की लेकिन यहां पर युद्ध सऊदी अरब और ईरान के बीच चल रहा है. यानि सुन्नी बनाम शिया के संघर्ष की वजह से समाधान नहीं हो सका. दुनिया में इस्लामोफोबिया यानि मुस्लिम विरोधी भावनाओं से सभी OIC देश चिंतित हैं लेकिन OIC के पास कोई ठोस वैश्विक रणनीति या ठोस कार्रवाई की शक्ति नहीं है.  सदस्य देशों में भी मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों के हालात खराब हैं इसलिए इसका भी समाधान नहीं किया जा सका.

यानि OIC मुस्लिम देशों का सबसे बड़ा मंच तो है लेकिन कभी शिया सुन्नी तो कभी व्यावसायिक हितों के टकराव की वजह से इस मंच से सिर्फ सहमति और प्रस्ताव पास होते हैं. कभी ठोस समाधान नहीं निकलता. ईरान के पक्ष में भी OIC से प्रस्ताव तो पारित हो सकता है लेकिन ईरान को इससे कोई लाभ होगा इसकी संभावना कम है. OIC से ईरान के फायदे की खबर तो नहीं आई लेकिन उसके नुकसान की खबर वॉशिंगटन से आ सकती है. आज अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई है भारतीय समय के अनुसार ये बैठक रात को 2 बजे होगी. इस बैठक में ईरान पर अमेरिकी हमले का फैसला किया जा सकता है ईरान इसकी आशंका जाहिर कर चुका है आज आपको अमेरिका से मिल रहे उन संकेतों के बारे में भी जानना चाहिए जो ईरान की आशंका को सही साबित कर सकते हैं.

अमेरिका ने अपने सबसे घातक बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स हिंद महासागर में मौजूद डिएगो गार्सिया एयरबेस के लिए रवाना कर दिए हैं. बी-2 बॉम्बर्स के साथ 8 एयरफोर्स टैंकर्स भी हैं. जो हवा में ईंधन भरने के काम आते हैं, आशंका जाहिर की जा रही है, बी-2 बॉम्बर्स का निशाना ईरान का सबसे महत्वपूर्ण परमाणु स्थल फोर्डो हो सकता है. जो जमीन से करीब 90 मीटर नीचे है और इसे तबाह करने के लिए बी-2 बॉम्बर को भेजा गया है. इसके अलावा अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में अपनी मौजूदगी बढाई है.

अमेरिका ने ईरान के पास ईंधन भरने वाले विमानों की तैनाती की है. कुल 31, KC-135 विमानों को मिडिल ईस्ट में तैनात किया गया है. ये 31 विमान एक साथ 200 फाइटर जेट्स में ईंधन भर सकते हैं. इसके अलावा F-22 रैप्टर और F-35 फाइटर जेट्स को यूरोप से मिडिल ईस्ट भेजा गया है. अमेरिका का एयरक्रॉफ्ट कैरियर यूएसएस निमित्ज भी अरब सागर की तरफ बढ़ रहा है. अमेरिका की ये तैयारियां बता रही हैं. मिडिल ईस्ट में वो अपनी तैयारियां मजबूत कर रहा है ताकि वॉशिंगटन से किसी भी फैसले के बाद ईरान पर बड़ा हमला किया जा सके.

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