Iran-Israel War: युद्ध की एक पुरानी नीति है. मजबूत दुश्मनों से लड़ाई जीतने के लिए तलवार से ज्यादा ज़रूरत भरपूर खजाने और ताकतवर दोस्त की होती है. खामेनेई के पास खजाना तो है और अब इजरायल से लड़ने के लिए वो मजबूत गठबंधन की योजना बना रहे हैं.
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Ali Hosseini Khamenei Networth: ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई सीधे अमेरिका और इजरायल से दुश्मनी मोल रहे हैं. आपको ये भी जानना चाहिए कि अमेरिका और इजरायल से टक्कर लेने का उन्होंने क्या प्लान बनाया है. और तीन दशकों में खामेनेई ने कितनी दौलत इकट्ठी की है. अयातुल्लाह अली खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता हैं...जो ईरान की राजनीति, सेना, अर्थव्यवस्था और धर्म चारों पर पूरी तरह नियंत्रण रखते हैं और इसीलिए 3 दशक में खामेनेई का खजाना लगातार बढ़ता गया.
खामेनेई सेताद नाम की एक समिति के प्रमुख हैं.
उसके पास 2013 में करीब 95 अरब डॉलर यानि 7 लाख 89 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति थी.
जो उस वक्त ईरान के कुल सालाना तेल एक्सपोर्ट से भी ज्यादा थी.
सेताद के कारोबार के अंदर रियल एस्टेट, तेल-गैस, मोबाइल कंपनियां, बैंक और फैक्ट्रियां भी शामिल हैं.
इसे ईरान के कानून से पूरी तरह मुक्त रखा गया है यानी पार्लियामेंट या राष्ट्रपति भी इसे नियंत्रित नहीं कर सकते.
सेताद की कुल संपत्ति 2024 तक 150 अरब डॉलर यानि 12 लाख 45 हजार करोड़ रुपये होने का अनुमान है. और इसका सीधा नियंत्रण खामेनेई के पास है. यानि एक तरह से समझिए कि ये पूरी संपत्ति खामेनेई की है.
खामेनेई की कमाई का ज्यादा हिस्सा पेट्रोलियम-गैस कंपनियों से आता है...इसके अलावा उनको भारी-भरकम डोनेशन भी मिलता है.
खामेनेई का तेहरान का पैलेस दुनिया के सबसे महंगे घरों में है यानि खामेनेई के पास दौलत की कोई कमी नहीं है.
युद्ध की एक पुरानी नीति है. मजबूत दुश्मनों से लड़ाई जीतने के लिए तलवार से ज्यादा ज़रूरत भरपूर खजाने और ताकतवर दोस्त की होती है. खामेनेई के पास खजाना तो है और अब इजरायल से लड़ने के लिए वो मजबूत गठबंधन की योजना बना रहे हैं.
इस्लामिक सेना बनाना चाहते हैं खामेनेई
ईरान के ताकतवर नेता मोसेन रजाई ने खामेनेई की योजना का खुलासा किया है, जिसके मुताबिक खामेनेई इजरायल के खिलाफ चल रहे संघर्ष के बीच 'इस्लामिक सेना' बनाना चाहते हैं और अपनी इस्लामिक सेना में तुर्किए, सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देशों को शामिल करना चाहते हैं. लेकिन क्या ऐसा संभव है.
खामेनेई के पास एक शिया इंटरनेशनल आर्मी पहले से मौजूद है, जिसमें हूती, हिज्बुल्लाह, हमास और इराक की शिया मिलिशिया शामिल है, जिसे वो प्रतिरोध की धुरी कहते हैं. लेकिन ये मिलकर भी इजरायल को हरा नहीं सकते. इसलिए अब खामेनेई की निगाह सऊदी अरब, तुर्किए और पाकिस्तान पर टिकी हैं. लेकिन खलीफा बनने की लड़ाई में शामिल देश साथ आएंगे. इसकी कितनी उम्मीद है.आज आपको ये भी समझना जानिए.
सऊदी है ईरान का प्रतिद्वंदी
सऊदी अरब शिया और सुन्नी में लड़ाई की वजह से ईरान का पारंपरिक प्रतिद्वंदी है. सऊदी ने ईरान पर इजरायल के हमले का विरोध तो किया है. लेकिन वो इजरायल के खिलाफ किसी इस्लामिक आर्मी का हिस्सा बनेगा, इसकी उम्मीद कम है. क्योंकि सऊदी अरब अमेरिका का भी बड़ा सहयोगी है. वहीं तुर्किए के राष्ट्रपति अर्दोआन खुद को सुन्नी इस्लामिक जगत का नेता मानते हैं. यानि खुद खलीफा बनना चाहते हैं
अर्दोआन फिलिस्तीन के समर्थक हैं..लेकिन आज तक ईरान से दूरी बनाकर रखी है. तुर्किए और ईरान के बीच सीरिया में भी टकराव होता रहा है. ऐसे में तुर्किए भी इज़रायल और NATO सहयोगी अमेरिका के सामने नहीं पड़ना चाहेगा.
पाकिस्तान ने भी इजरायल के खिलाफ ईरान के समर्थन में बयान दिया है.
ईरान का दावा है अगर इजरायल ने परमाणु हमला किया तो पाकिस्तान इजरायल पर परमाणु हमला करेगा. लेकिन पाकिस्तान की तरफ से इस दावे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.
ऐसे में बयानों से आगे बढ़कर पाकिस्तान का ईरान के नेतृत्व वाली इस्लामिक सेना में शामिल होने की संभावना बेहद कम है.
इसकी एक बड़ी वजह अमेरिका भी है.पाकिस्तान नेता और आर्मी कभी भी अमेरिकी हितों के खिलाफ नहीं जा सकते हैं.
इसके अलावा शिया और सुन्नी विभाजन पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा मुद्दा है.