राम्री द्वीप की यह घटना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की है, जब करीब 1000 जापानी सैनिक दलदल में फंस गए थे. कहा जाता है कि केवल 20 ही जिंदा लौट पाए. इस डरावनी कहानी में बीमारी, दलदल और मगरमच्छों के हमलों को इसका मुख्य कारण माना जाता है.
साल 1945 में, द्वितीय विश्व युद्ध का समय था. ब्रिटिश सेना और जापानी सेना के बीच लड़ाई चल रही थी. राम्री द्वीप पर कब्जा पाना रणनीतिक रूप से बहुत जरूरी था, क्योंकि यहां से हवाई पट्टी बनाकर आगे के इलाकों तक हमला करना आसान होता. इसी कोशिश में जापानी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया गया और वे द्वीप के अंदर घने दलदली इलाके में घुस गए, जहां आगे सिर्फ मौत उनका इंतजार कर रही थी.
राम्री द्वीप का दलदली इलाका बेहद मुश्किल था. वहां का जंगल गीला, कीचड़ से भरा और रास्ता भटकाने वाला था. सैनिकों को ना तो पीने का साफ पानी मिल रहा था, ना ही खाना. कीड़े-मकोड़े, बीमारियां और गंदगी ने हालात और खराब कर दिए. कोई सही रास्ता ना मिलने की वजह से कई सैनिक वहां फंस गए. कुछ भूख और थकान से गिर पड़े, तो कुछ दलदल में डूब गए.
इस घटना का सबसे चर्चित हिस्सा मगरमच्छों से जुड़ा है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि रात के समय सैकड़ों मगरमच्छों ने सैनिकों पर हमला कर दिया. उनकी चीखें, पानी में खून और हलचल ने डर का माहौल बना दिया. यहां तक कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में इसे इतिहास का सबसे बड़ा मगरमच्छ हमला बताया गया. लेकिन क्या ये बात पूरी तरह सच है? इसका जवाब थोड़ा कठिन है.
कई इतिहासकार और विशेषज्ञ मानते हैं कि मगरमच्छों का हमला हुआ था, लेकिन उतना बड़ा नहीं जितना बताया गया. जापानी सेना या ब्रिटिश रिकॉर्ड में इतने बड़े हमले का कोई ठोस सबूत नहीं मिला. विशेषज्ञों का कहना है कि मगरमच्छ आमतौर पर इंसानों पर झुंड में हमला नहीं करते. इसलिए ऐसा मानना कि 1000 में से ज्यादातर सैनिक मगरमच्छों ने मार दिए, शायद सच्चाई से थोड़ा दूर है.
बाद में हुए शोध और स्थानीय लोगों के अनुसार, सैनिकों की मौत का असली कारण दलदल में फंसना, भूख से बेहाल होना, बीमारियों का फैलना और युद्ध के दौरान हुई गोलीबारी था. कुछ सैनिक शायद मगरमच्छों के शिकार हुए होंगे, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम थी. असली त्रासदी थी वहां की मुश्किल परिस्थितियां, जिसमें कोई भी आसानी से जिंदा नहीं रह सकता था.
आज भी राम्री द्वीप को लोग डर और रहस्य की नजर से देखते हैं. यह कहानी हमें ये सिखाती है कि युद्ध सिर्फ गोलियों से नहीं, बल्कि माहौल और परिस्थितियों से भी लड़ा जाता है. कई बार डर की कहानियां इतनी फैल जाती हैं कि असली सच्चाई पीछे छूट जाती है. राम्री की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां सच्चाई और अफवाहें आपस में घुल गईं.
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