उस राजा के शासन को भारत के स्वर्ण युग की शुरुआत माना जाता है. उस समय न सिर्फ साम्राज्य का विस्तार हुआ, बल्कि शिक्षा, कला, संगीत और साहित्य को भी बढ़ावा मिला. प्रशासनिक व्यवस्था भी मजबूत हुई, जिससे आम लोगों का जीवन बेहतर बना.
इतिहास बताता है कि इस सम्राट ने 200 से ज्यादा युद्धों में भाग लिया और हर बार विजयी रहा. वह युद्ध में तेज, रणनीति में समझदार और फैसलों में साहसी था. यही कारण था कि दुश्मन भी उसका सम्मान करते थे.
उसने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक विजय अभियान चलाए. कई बार उसने जीते हुए राज्यों को वापस भी लौटा दिया, ताकि रिश्ते अच्छे बने रहें. यह दिखाता है कि वह सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि समझदारी से शासन करता था.
इतिहास के इस अजेय योद्धा का नाम था समुद्रगुप्त. गुप्त वंश के इस राजा को उसकी वीरता और नीति के कारण 'भारत का नेपोलियन' भी कहा गया. उसने भारत को एकजुट करने का काम किया और एक मजबूत शासन की नींव रखी.
समुद्रगुप्त की विजयों और कार्यों का उल्लेख प्रयाग प्रशस्ति नामक शिलालेख में मिलता है, जिसे उसके दरबारी कवि हरिषेण ने लिखा था. इसमें बताया गया है कि उसने कितने राज्यों को हराया और किस तरह से शासन चलाया.
समुद्रगुप्त सिर्फ योद्धा नहीं था, वह एक कला प्रेमी और विद्वानों का सम्मान करने वाला शासक भी था. उसके शासन में कई कवि, लेखक और शिक्षक उभरे. उसने शिक्षा संस्थानों को सहयोग दिया और संस्कृति को आगे बढ़ाया.
समुद्रगुप्त ने सिर्फ लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि राजधर्म का पालन भी किया. उसने हमेशा न्याय को प्राथमिकता दी और अपने विरोधियों के साथ भी सम्मानजनक व्यवहार किया. यही गुण उसे सिर्फ राजा नहीं, बल्कि एक आदर्श शासक बनाते हैं.
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