टखनों से ऊपर पायजामा पहनना पैगंबर मुहम्मद (SAW) की सुन्नत है. कई हदीसों में उल्लेख है कि उन्होंने टखनों से नीचे कपड़े पहनने को गर्व से जोड़ा था. इसलिए, मुसलमान इसे एक धार्मिक आदेश मानते हैं.
इस्लाम में सादगी और विनम्रता को प्राथमिकता दी जाती है. टखनों से नीचे कपड़े पहनना गर्व की निशानी माना जाता है, खासकर जब यह दिखावे या रुतबे के लिए हो. मौलाना इसे अभिमान से बचने का प्रतीक मानते हैं.
टखनों से ऊपर पायजामा पहनने से वुज़ू करते समय पानी शरीर तक आसानी से पहुंचता है और कपड़े गीले नहीं होते. नमाज़ के दौरान स्वच्छता और सुविधा भी बनी रहती है.
इस्लाम तहारत (पवित्रता) पर ज़ोर देता है. टखनों से ऊपर कपड़े पहनने से कपड़े ज़मीन को छूने और गंदे होने से बचते हैं, जिससे साफ़ रहना आसान हो जाता है, खासकर नमाज़ के दौरान.
सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम जैसी हदीस की किताबों में साफ़ लिखा है कि "जो व्यक्ति घमंड में अपने कपड़े टखनों से नीचे लटकाता है, वह जहन्नुम में जाने का हक़दार है." मौलाना इस निर्देश का सख़्ती से पालन करते हैं.
कभी-कभी टखनों से ऊपर पायजामा पहनना भी धार्मिक पहचान बन जाता है. मौलाना और धार्मिक लोग इसके ज़रिए यह दर्शाते हैं कि वे शरीयत के निर्देशों का पालन करते हैं और आम लोग इससे प्रेरित होते हैं.
यह पोशाक सादगी और आत्म-अनुशासन का प्रतीक है. मौलाना इसे इस सोच के साथ अपनाते हैं कि वे बिना किसी दिखावे के शरीयत के अनुसार जीवन जिएँ. यह पोशाक उन्हें दुनिया से ज़्यादा धर्म की ओर आकर्षित करती है.
मौलाना समाज में इस्लामी जीवनशैली के प्रतिनिधि माने जाते हैं. अपनी पोशाक के ज़रिए वे लोगों को धर्म का पालन करना सिखाते हैं और खुद को धार्मिक आदर्शों के रूप में प्रस्तुत करते हैं.
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