Bihar News: मोदी सरकार ने बिहार से मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र छीन लिया है. इसे कर्नाटक के शिमोगा में शिफ्ट किया जा रहा है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि सरकार नए प्लांट और उत्पादन केंद्र स्थापित नहीं कर सकती और पुराने केंद्र को नई जगह स्थापित कर उसका क्रेडिट लेना चाहती है.
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चुनावी साल में मोदी सरकार ने भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के बेगूसराय में स्थित मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को कर्नाटक के शिमोगा में शिफ्ट करने का फैसला लिया है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इस बाबत हरी झंडी भी दे दी है. अब राजनीति गर्म है. सोशल मीडिया पर बेगूसराय के स्थानीय सांसद ट्रोल हो रहे हैं. पहले तो बिहार को एक भी टेक्सटाइल पार्क नहीं मिला और अब बेगूसराय से बना बनाया प्लांट कर्नाटक ट्रांसफर हो रहा है. जाहिर है सवाल उठेंगे और उठ भी रहे हैं. खैर, सवाल अपनी जगह हैं लेकिन सवाल यह भी उठने चाहिए? आखिर क्या कारण है कि जिस बिहार ने कभी मक्का उत्पादन में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया था, वहां से मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को कहीं और शिफ्ट किया जा रहा है. अब इसका कारण क्या है, यह तो भाजपा, मोदी सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय के सांसद गिरिराज सिंह ही बता सकते हैं.
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2021 की बात करें, जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी भयंकर महामारी की शिकार हो रही थी, तब बिहार ने मक्का उत्पादन में अमेरिका के स्वामित्व को धत्ता बता दिया था. बिहार के 7 जिलों पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर ने मक्का के उत्पादन में अमेरिका के इलिनोइस, आयोवा और इंडियाना को पीछे छोड़ दिया था. बिहार के 7 जिलों में 50 क्विंटल प्रति एकड़ मक्का का उत्पादन हुआ था तो अमेरिका के इलिनोइस, आयोवा और इंडियाना में यह आंकड़ा महज 48 क्विंटल प्रति एकड़ ही था. बता दें कि अमेरिका मक्का उत्पादन में तब पूरी दुनिया में शीर्ष पर हुआ करता था पर बिहार के 7 जिलों ने उसकी बादशाहत को खत्म कर दिया था. उस समय कुल उत्पादन के मामले में बिहार दूसरे नंबर पर हुआ करता था और तमिलनाडु मक्का उत्पादन में अपना परचम लहराया करता था. इससे पहले 2016 में मक्का उत्पादन के लिए केंद्र सरकार ने बिहार को कृषि कर्मण पुरस्कार से नवाजा था.
दरअसल, राज्य में कृषि रोडमैप के जरिए सरकार ने बीज पर ज्यादा ध्यान दिया. पहले जहां किसान खेतों में पैदा हुए अनाज को ही बतौर बीज प्रयोग करते थे. इसलिए 2005 से 2006 तक मक्का का उत्पादन 27 क्विंटल प्रति एकड़ से आगे नहीं बढ़ पाया था. कृषि रोडमैप के जरिए किसान नए बीजों का इस्तेमाल करने लगे. बीज प्रतिस्थापन दर करीब 90 प्रतिशत तक पहुंची तो उत्पादन में भी रिकॉर्ड बनने लगे. 2017 की बात करें तो बिहार में मक्के की औसत उत्पादकता 40.25 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच गई थी. 2005-06 में जहां मक्के का उत्पादन 10.36 लाख टन हुआ था तो 2016-17 में यह तीन गुणा बढ़कर 30.85 लाख टन हो गया था.
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2023-24 की बात करें तो बिहार ने 57.09 लाख टन मक्के का उत्पादन कर पूरे देश में पहला स्थान हासिल किया था. जबकि कोरोना काल में यह तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर रहा था. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से मक्का उत्पादन को लेकर 2023-24 के जो आंकड़े जारी किए गए, उसमें बिहार टॉप पर रहा और दूसरे नंबर पर कर्नाटक हावी रहा. कर्नाटक ने 2023-24 में 56.29 लाख टन मक्के का उत्पादन किया था.
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखे एक पोस्ट में कहा, 'आखिर बिहार और बिहार के किसानों से क्या दिक्कत है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, NDA और भाजपा को? भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के बेगूसराय स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को नरेंद्र मोदी सरकार ने कर्नाटक के शिवमोग्गा में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है. वह भी तब जब नीलगाय और बाढ़ की समस्या का सामना करते हुए भी मक्का उत्पादन में बिहार के अन्नदाता किसान पूरे देश में अव्वल हैं. पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर जिलों के किसानों की आय का मुख्य स्रोत मक्का की खेती ही है. नरेंद्र मोदी सरकार का यह फैसला किसान और बिहार विरोधी है. बिहार के अन्नदाता इसका हिसाब करेंगे.'
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तेजस्वी यादव ने कहा, 'वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र, कुशमहौत, बेगूसराय की स्थापना 4 मई, 1997 को जनता दल के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय श्री लालू प्रसाद जी के नेतृत्व में जनता दल की अगुवाई में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री स्व. इंद्र कुमार गुजराल जी के कार्यकाल में हुआ था, लेकिन एक यह NDA की सरकार है जिसमें नीतीश कुमार सहित तीन अन्य असहाय सहयोगी हैं, जो बिहार में तो कुछ नए संस्थान और उद्योग-धंधे तो स्थापित कर नहीं सकते बल्कि बिहार में पूर्व से स्थापित ऐसे संस्थान जाने पर चीयर करते हैं. NDA सरकार बिहार और बिहारियों की आँखों में धूल झोंकने का काम कर रही है. दिन-रात, सोते-जागते हिंदू-मुस्लिम करने वाले बेगूसराय के सांसद सह केंद्रीय मंत्री को शर्म तो आती नहीं है.'
प्लूरल्स पार्टी की सर्वेसर्वा पुष्पम प्रिया चौधरी कहती हैं, 'मक्का शोध केंद्र के बिहार से कर्नाटक जाने पर शोर बेकार है. असली समस्या 80 के दशक से खेती में आई गिरावट है. गन्ना हो या मकई, दूसरे राज्य आगे बढ़ गए और हम पीछे जा रहे. नीतीश कुमार के राज में बिहार की खेती बदतर ही हुई है. बिहार हर क्षेत्र में हार रहा है.'
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बिहार में 2022 के मुकाबले 2023 में मक्के के निर्यात में 3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इसका मतलब यह हुआ कि उत्पादन तो हो रहा है पर उस अनुपात में निर्यात नहीं बढ़ रहा है. जाहिर है घरेलू बाजार में मक्के की खपत बढ़ गई है. स्टार्च इंडस्ट्री में भी इसकी खपत 7 से घटकर 5 प्रतिशत रह गई है. 2022 में 8 प्रतिशत मक्के की खपत खाने में होती थी, जो 2023 में घटकर 5 प्रतिशत ही रह गई. अन्य कामों में इस्तेमाल होने वाले मक्के का प्रतिशत भी 2 से घटकर 1 प्रतिशत रह गया.
2022 में जहां 50 प्रतिशत मक्का पशु चारे के लिए प्रयोग होता था, 2023 में यह केवल 30 प्रतिशत रह गया. 5 प्रतिशत मक्का दूसरे राज्यों को निर्यात होता है. प्रोसेस्ड फूड, स्टार्च इंडस्ट्री और सीधे खाने में 5-5 प्रतिशत मक्का प्रयोग होता है. बिहार में इथेनॉल प्लांट्स का प्रचलन बढ़ने के साथ ही मक्के की खपत में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. 2023 में कुल मक्का उत्पादन का 50 फीसदी हिस्सा इथेनॉल बनाने में प्रयोग हुआ, जो 2022 की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा रहा. उस समय राज्य में 17 इथेनॉल प्लांट खोलने का लक्ष्य था और 11 पहले ही शुरू हो चुके थे. सभी इथेनॉल प्लांट शुरू होने से मक्के की मांग में और वृद्धि हुई है और इससे किसान मालामाल भी हो रहे हैं.
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खैर, अब तो फैसला हो चुका है. मोदी सरकार को अगर शिमोगा में मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र स्थापित करना था तो बेगूसराय यूनिट की शाखा वहां स्थापित कर देती. बेगूसराय में बने बनाए प्लांट को शिमोगा में शिफ्ट करने की क्या जरूरत थी? एक तो कोई नया प्लांट बिहार में स्थापित नहीं हो रहा है और जो पहले से स्थापित किए जा चुके हैं, उनकी भी शिफ्टिंग हो रही है. आज मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र ट्रांसफर हो रहा है, कल कोई रेल कारखाना ट्रांसफर कर दिया जाएगा, परसो कोई यूरिया प्लांट या फिर कोई थर्मल प्लांट का नंबर आ जाएगा. यह तो अंतहीन सिलसिला है. पहले बिहार को एक भी टेक्स्टाइल पार्क न देना और अब मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को शिफ्ट करना अच्छी नीति तो नहीं कही जा सकती.