और कितना अपमानित होना है पप्पू यादव जी! आखिर किस बात की वफादारी निभा रहे हैं आप?
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और कितना अपमानित होना है पप्पू यादव जी! आखिर किस बात की वफादारी निभा रहे हैं आप?

Pappu Yadav News: राहुल गांधी यह भूल गए कि संसद भवन में जब उन पर प्रताप सारंगी को धक्का मारने का आरोप लगा था तब पप्पू यादव ने न केवल उनका बचाव किया था, बल्कि सभी न्यूज चैनलों पर चिल्ला-चिल्लाकर उनका पक्ष भी रखा था. उस पप्पू यादव को राहुल गांधी ने एक अदद गाड़ी पर नहीं चढ़ने दिया.

और कितना अपमानित होना है पप्पू यादव जी! आखिर किस बात की वफादारी निभा रहे हैं आप?
और कितना अपमानित होना है पप्पू यादव जी! आखिर किस बात की वफादारी निभा रहे हैं आप?

आंखों में आंसू... दिल में गुबार... फिर भी जुबां पर वफादारी, पिछले 24 घंटे में पप्पू यादव के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे बयां करने के लिए ये लाइनें पर्याप्त हैं. लोकसभा चुनाव, 2024 से बिहार ने पप्पू यादव का अलग रूप देखा है. अपने दम पर चुनाव लड़े और जीते. कोरोना काल और बाढ़ की विभीषिका के दौरान पप्पू यादव ने दिखा दिया कि वे राजनेता तो हैं पर जरा दूजे किस्म के. राजनेता से ज्यादा पप्पू यादव जननेता हैं. सुख में तो सभी साथ रहते हैं पर दुख में साथ देने वालों में पप्पू यादव राजनेताओं की भीड़ में अकेले नजर आते हैं. पूरा बिहार पप्पू यादव की इस दरियादिली का कायल है और जब इस आदमी के साथ कुछ बुरा होता है तो पूरे बिहार को बुरा लगता है. एक बार अपमान होता है तो उसे संयोग मान सकते हैं लेकिन जब आपको बार बार अपमान का घूंट पीना पड़े तो मान लीजिए कि यह कोई संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग है. पहले लोकसभा चुनाव में अपमान हुआ और अब गाड़ी पर चढ़ने को लेकर. 

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क्या पप्पू यादव जैसे नेता को गाड़ी पर चढ़ने के लिए अपमानित होना चाहिए? क्या पप्पू यादव, तेजस्वी यादव के बरक्श खड़े या बैठने लायक नहीं हैं? यह सवाल मौजूं हैं, क्योंकि जिस गाड़ी पर चढ़ने के लिए पप्पू यादव को बाउंसरों ने रोका, उस पर राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव भी सवार थे. एक सांसद को गाड़ी पर चढ़ने से बाउंसर रोक देते हैं या यूं कहें कि पप्पू यादव को गाड़ी पर चढ़ने से रोकने के लिए बाउंसर लगाए गए थे. आखिर दिक्कत क्या है?

दिक्कत यही है कि पप्पू यादव ने अपने दम पर जो नाम कमाया है, उसके आगे तेजस्वी यादव का नाम फीका न पड़ जाए. सीधा सा फंडा है. वहीं तेजस्वी यादव जो लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को हराने के लिए पूर्णिया में कैंप किए थे और फिर भी पप्पू यादव के नाम का डंका बज गया. तेजस्वी यादव का कैंप करना यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही नकार दिया, जो राजद के आधार वोटर हैं.

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लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव जानते हैं कि पप्पू यादव जहां से खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती हैं. इतनी अपील है पप्पू यादव में कि बिहार की किसी भी सीट से वो चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं. लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव में पप्पू यादव को हराने की भूख इतनी ज्यादा थी कि कांग्रेस से टिकट भी नहीं मिलने दिया गया. थक-हारकर पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और जीते भी.

इसमें दोष केवल लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव का नहीं है. राहुल गांधी भी उस गाड़ी पर सवार थे, जिनके नजदीक जाने के लिए पप्पू यादव ने गाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की. उनका दोष कम हो जाता है क्या? दुनिया जहान की बातें करने वाले राहुल गांधी कुछ भी कर लें, आज भी कांग्रेस बिहार में लालू प्रसाद यादव के पास गिरवी है और उनकी मर्जी के बगैर कांग्रेस सांसद और विधायक तो छोड़िए, वार्ड पार्षद का टिकट भी नहीं दे सकती.

पप्पू यादव जो पार्टी में नहीं होते हुए भी खुद को कांग्रेसी कहता है. चुनाव हराने की न जाने कितनी भी कोशिशें हुईं पर चुनाव जीतने के बाद भी जो आदमी खुद को कांग्रेस से एकतरफा जोड़ता रहा. दिल्ली से लेकर पटना तक कांग्रेस के हर सुख और दुख में पप्पू यादव खुद को भागीदार समझता रहा, उसे एक अदद गाड़ी पर चढ़ने से रोक दिया गया. कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों और सांसदों की कीमत अगर कांग्रेस समझती तो खुद राहुल गांधी गाड़ी से उतर जाते हैं और कहते कि पप्पू यादव के लिए ऐसी हजार गाड़ियां कुर्बान.

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फिर भी पप्पू यादव वफादारी निभाने में लगे हुए हैं. ऐसी भी क्या मजबूरी है पप्पू यादव जी! ये किस एहसान का बदला चुका रहे हैं आप? जो पार्टी आपको किसी के कहने से टिकट देने से मना कर सकती है, गाड़ी पर चढ़ने से रोक सकती है, उसकी वफादारी किस बात की? आप तो जननेता हैं और जननेता के लिए जरूरी है कि वह जनता के लिए जिए, जनता के लिए मरे. बार बार आपका अपमान उस जनता का भी तो अपमान है, जिसके लिए आप नायक हो. आप अपने आप में एक पार्टी हैं, एक संस्था हैं. जनता आपके एक-एक आंसू का हिसाब किताब लेने वाली है.

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