Bihar Dalit Politics: राहुल गांधी इस बार दलित समुदाय तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. इससे सबसे ज्यादा खतरा केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की राजनीति को हो सकता है, लिहाजा चिराग अभी से सतर्क हो गए हैं.
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Bihar Dalit Politics: बिहार में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं. चुनावी साल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार में काफी एक्टिव दिखाई दे रहे हैं. इस बार बिहार चुनाव में राहुल गांधी का फोकस दलित वोटरों पर है. वे तकरीबन हर महीने बिहार का दौरा कर रहे हैं और दलित वोटरों को साधने का प्रयास कर रहे हैं. राहुल गांधी ने अपने पिछले दौरे पर दरभंगा के अंबेडकर छात्रावास में एससी-एसएसटी छात्रों को संबोधित किया था. इसके बाद पटना में दलित समुदाय के कुछ लोगों के साथ फिल्म 'फुले' देखी. यह फिल्म समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है. राहुल गांधी की नई रणनीति से साफ है कि कांग्रेस अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक को वापस पाने की कोशिश कर रही है. अब इसमें पार्टी कितना सफल होती है ये तो भविष्य में पता चलेगा, लेकिन राहुल गांधी ने बिहार में 'दलित पॉलिटिक्स की लौ' जला दी है. उब कांग्रेस नेता के रास्ते पर एनडीए के साथी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी चल पड़े हैं.
लोजपा (रामविलास) ने 'बहुजन-भीम संकल्प समागम' का आयोजन करने का ऐलान किया है. इसमें पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान शामिल होंगे और लोगों से संवाद करेंगे. पार्टी ने शुक्रवार (16 मई) को राज्य कार्यकारिणी की बैठक की और उसी में यह निर्णय लिया गया. इसमें खास बात यह है कि पार्टी यह कार्यक्रम एनडीए के साथ मिलकर करने की बजाय अकेले करेगी. लोजपा-रामविलास पार्टी ने खुलकर बस इतना कहा है कि चुनाव में एनडीए के अंदर रहते हुए लोजपा-आर स्वतंत्र पहचान के साथ भागीदारी निभाएगी. वहीं सियासी जानकारों का कहना है कि बहुजन भीम सम्मेलनों के जरिए विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए को चिराग पासवान अपनी ताकत का एहसास कराना चाहते हैं. सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि इस कार्यक्रम के जरिए एनडीए पर ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने का दबाव बनाया जाएगा.
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बता दें कि 2023 में हुई जातीय जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में दलितों की आबादी लगभग 19% है. बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 38 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. एक समय में दलित कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ करते थे, लेकिन फिर प्रदेश का वोटर नीतीश कुमार की जेडीयू, लालू यादव की राजद और रामविलास पासवान की लोजपा के साथ चला गया. 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 24.78% दलितों का वोट मिला था. 1995 में यह घटकर 16.30% हो गया. 2005 में कांग्रेस को सिर्फ 6.09% दलितों का वोट मिला था. हालांकि, 2020 में इस आंकड़े में काफी सुधार हुआ और इस बार 9.48% दलितों ने कांग्रेस को वोट किया था. सियासी जानकारों के मुताबिक, इस चुनाव में चिराग पासवान एनडीए से अलग थे, इस कारण से दलितों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के साथ चला गया था.