Bihar Politics: गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर रामविलास पासवान ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को मुसीबत में डाल दिया था. अब बिहार के मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखने के चक्कर में चिराग पासवान कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए खतरा न पैदा कर दें.
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सीधे फ्लैशबैक में चलते हैं. 2002 में गुजरात में दंगे भड़के थे और भाजपा अपने सहयोगी दलों के अलावा विपक्ष के भी निशाने पर थी. विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दल भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग कर रहे थे. वाजपेयी सरकार के खिलाफ लोकसभा में निंदा प्रस्ताव आने वाला था और सरकार फ्लोर मैनेजमेंट की कोशिशों में जुटी थी. सबसे ज्यादा मुखर आंध्र प्रदेश की तेलुगुदेशम पार्टी के नेता एन. चंद्रबाबू नायडू थे, लेकिन अचानक दगा दे दिया था लोक जनशक्ति पार्टी के तत्कालीन प्रमुख रामविलास पासवान ने. रामविलास पासवान तब वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में काम कर रहे थे. सरकार बाकी दलों को मैनेज कर रही थी, लेकिन झटका रामविलास पासवान ने दे दिया था. इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्री के कार्यालय और गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय से रामविलास पासवान को कई फोन किए गए थे पर उन्होंने रिसीव ही नहीं किया था और अपने फैसले पर अडिग रहे थे. अपने पिता रामविलास पासवान की तरह चिराग पासवान ने भी एनडीए को मुश्किल में डाल दिया है.
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एक दिन पहले रविवार को आरा में रैली के दौरान लोक जनशक्ति पार्टी (Ramvilas) के प्रमुख चिराग पासवान ने बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. ताज्जुब की बात यह है कि इस ऐलान के साथ ही चिराग पासवान ने यह भी कहा कि ऐसा वे एनडीए की मजबूती के लिए करने वाले हैं. अब यह तो चिराग पासवान ही बता सकते हैं कि सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद एनडीए को किस तरह की मजबूती देने वाले हैं. चिराग पासवान के इस ऐलान के साथ ही एनडीए के कर्ता-धर्ता अब सावधान हो गए हैं.
हालांकि चिराग पासवान ने यह भी कहा कि अपनी पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहतर करने के लिए वे चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसे मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा से नहीं जोड़ना चाहिए. आपको याद होगा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने 243 में 137 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार जेडीयू के उम्मीदवारों के खिलाफ उतारे गए थे. यही कारण था कि 2020 में जेडीयू ने बिहार में सबसे शर्मनाक प्रदर्शन किया था और 45 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गई थी.
अब अगर चिराग पासवान बिहार की सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारते हैं तो इससे एनडीए की एकजुटता प्रभावित हो सकती है. जनता में भी एक संदेश जाएगा कि एनडीए एकजुट नहीं है और विपक्ष इस परसेप्शन को लोगों तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेगा. इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए. ऐसे समय में जब एनडीए और इंडिया खेमा बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कमर कसने की तैयारी में है, चिराग पासवान के इस ऐलान से जाहिर है कि एनडीए को लेकर लोगों में गलत संदेश जा सकता है.
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2020 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को ही आधार मानें तो चिराग पासवान की पार्टी 137 सीटों पर लड़कर केवल एक सीट हासिल कर पाई थी और मात्र 9 सीटों पर एलजेपी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आए थे. 2020 में मिली करारी शिकस्त के बाद भी अगर चिराग पासवान सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि वो एनडीए से कुछ अलग सोच रहे हैं. उनका बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करना भी इसी तरह का का कुछ इशारा है. अब देखना यह है कि भाजपा और जेडीयू के आला नेता चिराग पासवान के ऐलान को किस रूप में देखते हैं.