Emergency Story: 1974 में जयप्रकाश नारायण ने 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान किया, जिसने पूरे देश के युवाओं को अपनी ओर खींचा. तब सरयू राय अविभाजित बिहार के भागलपुर में कृषि विज्ञान के छात्र थे.
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Emergency Story: आज से ठीक 50 साल पहले 25 जून 1975 का वो दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय बन गया था, जब देश पर आपातकाल थोप दिया गया था. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा लगा, विरोध की हर आवाज को कुचला गया और हजारों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया, लेकिन इसी दौर में जयप्रकाश नारायण (JP) के नेतृत्व में एक विशाल जन-आंदोलन खड़ा हुआ, जिसने लोकतंत्र की वापसी के लिए संघर्ष किया.
झारखंड की धरती ने भी इस आंदोलन में अपने कई सपूत दिए, जिनमें से एक ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने अपनी जवानी को लोकतंत्र की बलिवेदी पर चढ़ा दिया. आज 50 साल बाद जब हम उस दौर को याद कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि ऐसे गुमनाम और प्रमुख नायकों को भी याद किया जाए, जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया. यह कहानी है झारखंड की राजनीति में अपनी बेबाकी और ईमानदारी के लिए जाने जाने वाले नेता सरयू राय की.
जेपी के आह्वान पर बदली जिंदगी
यह बात उस समय की है, जब सरयू राय अविभाजित बिहार के भागलपुर में कृषि विज्ञान के छात्र थे. 1974 में जयप्रकाश नारायण ने 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान किया, जिसने पूरे देश के युवाओं को अपनी ओर खींचा. जेपी के विचार खासकर भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ उनकी मुखरता ने युवा सरयू राय को गहराई से प्रभावित किया. उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के कॉलेज छोड़ कर आंदोलन में कूदने का फैसला किया, यह जानते हुए भी कि इसका मतलब एक अनिश्चित भविष्य और तत्कालीन सत्ता के दमन का सामना करना हो सकता है.
सड़कों से लुका-छिपी और संघर्ष का सफर
सरयू राय ने जेपी आंदोलन को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभाई. वे छात्रों और युवाओं को संगठित करते थे, जनसभाओं में हिस्सा लेते थे और सरकार की नीतियों के खिलाफ पर्चे बांटते थे. आपातकाल लागू होने के बाद, स्थिति और विकट हो गई. सरकार विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था. सरयू राय बताते हैं कि किस तरह उन्हें पुलिस से लगातार बचना पड़ता था. उनके पीछे एक सिपाही भी लगा हुआ था, जो उनकी हर गतिविधि पर नजर रखता था, लेकिन सरयू राय अपने दृढ़ संकल्प के साथ भूमिगत रहकर भी आंदोलन की गतिविधियों को जारी रखे हुए थे. वे छिप-छिपकर बैठकों में शामिल होते, संदेशों का आदान-प्रदान करते और सरकार विरोधी प्रचार में लगे रहते. उनकी यह लुका-छिपी कई महीनों तक चली.
जेल नहीं गए, पर आंदोलन में सक्रियता बनी रही
यह दिलचस्प है कि कई जेपी आंदोलनकारियों के विपरीत सरयू राय को आपातकाल के दौरान जेल नहीं जाना पड़ा. हालांकि, पुलिस लगातार उनकी तलाश में थी. उनकी सूझबूझ और सतर्कता ने उन्हें गिरफ्तारी से बचाए रखा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनकी सक्रियता कम हुई. वे बताते हैं कि उस समय के नेताओं और कार्यकर्ताओं में गजब का जुनून था. हर कोई लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी जान हथेली पर लिए घूम रहा था. यह जुनून ही था जिसने उन्हें लगातार काम करने की प्रेरणा दी, भले ही उन्हें हर पल गिरफ्तारी का डर सता रहा था.
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आपातकाल के बाद और वर्तमान स्थिति
जब आपातकाल हटा और 1977 में चुनाव हुए तो जनता पार्टी की प्रचंड जीत हुई, जो जेपी आंदोलन की एक बड़ी सफलता थी. सरयू राय और उनके जैसे हजारों आंदोलनकारी जेल से रिहा हुए या फिर भूमिगत जीवन छोड़ सामान्य धारा में लौटे. आपातकाल के बाद सरयू राय ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की, जिसने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक अलग पहचान दी. वे अभी जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा से विधायक हैं.
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