Jammu-Kashmir School: चाइल्ड साइकोलॉजी पर बड़े शोध के बाद स्कूल की प्रिंसिपल ने फैसला लिया और बैक बेंचर की परिपाटी को खत्म कर दिया, जिसका बच्चों पर सकारात्मक असर देखा जा रहा है. इस क्लास में कोई बैक बेंचर नहीं है और अब हर बच्चे पर टीचर की पूरी नजर है.
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कहा जाता है Back Benchers– Silent in Class, Loud in Life... यानी बैक बेंचर्स क्लास में भले ही शांत रहते हैं, लेकिन जिंदगी में उनकी आवाज सबसे बुलंद होती है. लेकिन, अब सिर्फ जिंदगी में ही नहीं, क्लास में भी ऐसे बच्चों की आवाज बुलंद नजर आएगी, जिन पर बैक बेंचर होने की तोहमत लगती थी. दरअसल, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग के ACE इंटरनेशनल स्कूल में अब कोई भी बच्चा बैक बेंचर नहीं रह गया. इस स्कूल से बैक बेंच के सिस्टम को ही खत्म कर दिया गया है. चाइल्ड साइकोलॉजी पर बड़े शोध के बाद स्कूल की प्रिंसिपल ने ये फैसला लिया है, जिसका बच्चों पर सकारात्मक असर देखा जा रहा है.
अनंतनाग में आतंक की नहीं, स्कूल मॉडल की चर्चा!
अगर आपका बच्चा स्कूल जाता है या आप खुद एक टीचर हैं, तो आपके लिए ये खबर पढ़नी बहुत जरूरी है. कश्मीर के अनंतनाग जिले में कभी आतंक का शोर था, लेकिन आज यहां के स्कूल में बच्चे हिंदी, इंग्लिश और साइंस जैसे सब्जेक्ट्स में अपनी काबिलियत के शोर से देश को हैरान कर रहे हैं. क्लास के एक-दो नहीं, हर बच्चा मुश्किल से मुश्किल सवालों के जवाब देता है. आपको क्लास के हर बच्चे के आत्मविश्वास की वजह भी समझनी चाहिए, जो इस स्कूल की क्लास के सीटिंग अरेंजमेंट यानी क्लास में बच्चों के बैठने की व्यवस्था में छिपी है. इस क्लास में कोई बैक बेंचर नहीं है. अब हर बच्चे पर टीचर की पूरी नजर है.
कश्मीर के इस स्कूल में अब कोई 'बैक बेंचर' नहीं
देश में सबसे पहले बैक बेंचर की परिपाटी को खत्म करने वाले स्कूलों में अनंतनाग का ये स्कूल अव्वल है. अब कश्मीर घाटी के साथ-साथ पूरे देश में इसकी चर्चा हो रही है. इस स्कूल में क्लासरूम को सेमी-सर्कल या U-आकार में व्यवस्थित किया गया है. यानी बच्चे एक गोल घेरे में बैठते हैं, जिससे आगे और पीछे की पंक्ति की पहचान मिट गई है. जबकि, पहले बच्चे एक के बाद एक लाइन से बैठते थे. इससे एक सामान्य धारणा बन गई थी कि पीछे खेलने वाले या क्लास में कम ध्यान देने वाले और सामने गंभीर छात्र बैठते हैं.
अब क्लास के हर बच्चे पर टीचर की नजर!
ज़ी न्यूज की टीम ने इस नए सिटिंग अरेंजमेंट से आने वाले फर्क को समझने के लिए अनंतनाग के मट्टन इलाके में मौजूद ACE इंटरनेशनल स्कूल में कुछ वक्त गुजारा और टीचर्स के साथ-साथ बच्चों से भी बातचीत की. ज़ी न्यूज की टीम ने देखा कि इस स्कूल के बच्चों का आत्मविश्वास क्लास रूम में बैठने की नई व्यवस्था से बढ़ा है. कुछ महीने पहले तक क्लास के हर बच्चे में इतना कॉन्फिडेंस नहीं था. कुछ बच्चों के अंदर पीछे बैठने की वजह से हीन भावना थी. अब स्कूल के बच्चे खुद बता रहे हैं, क्लास रूम से बैक बेंच हट गईं तो पीछे बैठने वाले बच्चों के दिल से सवालों का डर और खुद को कमतर समझने की भावना भी निकल गई.
स्कूल में अंग्रेजी-उर्दू के साथ हिंदी की क्लास भी चल रही
अनंतनाग के इस स्कूल में बच्चे उर्दू और इंग्लिश भी पढ़ रहे हैं, तो हिंदी की क्लास भी चल रही है. आज देश के कुछ हिस्सों में भले ही हिंदी के विरोध में आंदोलन चल रहा है, लेकिन अनंतनाग में कश्मीरी बच्चे हिंदी भी उतनी ही अच्छी तरह बोलते और पढ़ते हैं, जितनी इंग्लिश और उर्दू. स्कूल के छात्र खालिद हुसैन, शुमैला शाह और जई जरगर ने बताया, 'इस नए सिस्टम से टीचर की आवाज हर बच्चे तक पहुंचती है. कुछ समझ में नहीं आने पर अब बच्चे टीचर से प्रश्न पूछकर अपना डाउट क्लियर कर लेते हैं.
कैसे आया इस तरह के स्कूल का आइडिया?
आज आपको ये भी जानना चाहिए कि कश्मीर के स्कूल में इस नए प्रयोग की नींव कैसे पड़ी. तो इसके पीछे स्कूल की प्रिंसिपल की सकारात्मक सोच है – डॉक्टर तौहीदा मकदूमी. ACE इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल होने के साथ चाइल्ड साइकोलॉजी पर पीएचडी भी कर चुकी हैं. इसके अलावा उनके पास टीचर्स को ट्रेंड करने का लंबा अनुभव है. बैक बेंच सिस्टम को अपने स्कूल से खत्म करने के लिए उन्होंने अपने अनुभव के साथ बैक बेंचर बच्चों पर दुनिया भर में किए गए रिसर्च को भी आधार बनाया. आज आपको भी दुनिया में इस विषय पर हुई तमाम रिसर्च और उनके निष्कर्ष के बारे में जानना चाहिए.
बैक बेंचर्स को लेकर क्या कहता है रिसर्च?
Perkins & Wieman की स्टडी 'Seating Position and Academic Performance' के मुताबिक जो छात्र क्लास के आगे बैठते हैं, वे क्लास में ज़्यादा ध्यान देते हैं और ज़्यादा प्रश्न पूछते हैं. बैक बेंचर बच्चों का आमतौर पर क्लास से जुड़ाव कम रहता है और उनके परीक्षा परिणाम आगे बैठने वाले बच्चों की अपेक्षा कम होते हैं. Study by Weinstein– 'Classroom Seating and Student Behavior' के मुताबिक, पीछे बैठने वाले छात्र अधिक स्वतंत्र, लेकिन अधिक अव्यवस्थित भी होते हैं. यह भी पाया गया कि शिक्षक का ध्यान ज़्यादातर आगे बैठे छात्रों पर ही होता है. University of Minnesota के रिसर्च 'The Back Bench Effect' के मुताबिक, जो छात्र खुद को कमजोर या असहज मानते हैं, वे पीछे बैठना पसंद करते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास और भी कम हो जाता है.
स्कूल की प्रिंसिपल का आइडिया तो कमाल निकला
इसे आसानी से इस तरह समझा जा सकता है. टीचर्स से कम संवाद की वजह से सवाल पूछने की संभावना कम हो जाती है और ऐसे में बच्चों की शंका का समाधान भी नहीं हो पाता. ऐसे में क्लास के अंदर मौजूद होने के बावजूद बैक बेंचर बच्चे बाद में पिछड़ जाते हैं. लेकिन, जबसे कश्मीर के स्कूल में बैक बेंच हटी... तब से टीचर्स, पैरेंट्स और खुद स्टूडेंट्स भी इस बदलाव को महसूस कर पा रहे हैं.
स्कूल की प्रिंसिपल डॉक्टर तौहीदा मक़दूमी ने बताया, अब टीचर हर बच्चे पर नजर रख पा रहे हैं, तो बच्चे भी क्लास से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं. पहले जो बच्चे पीछे बैठते थे, अब उनको भी लग रहा है कि क्लास में सभी बच्चे एक जैसे हैं. अब इस नए सिटिंग अरेंजमेंट से हर छात्र को क्लास में समान अवसर मिल रहा है. सभी छात्रों तक शिक्षक की पहुंच है, यानी बैक बेंच हटने से शिक्षक हर छात्र पर बराबर ध्यान दे रहे हैं. बच्चों के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हो रही है. क्योंकि, जब कोई पीछे नहीं होता, तो कोई खुद को कमज़ोर या अछूता महसूस नहीं करता.
इस बदलाव पर छात्रों का क्या कहना है?
सबको एक साथ बैठने का मौका मिलने के बाद shy या introvert छात्र भी बातचीत में शामिल हो रहे हैं. क्लास रूम में बच्चे भी इससे हो रहे बदलाव के बारे में बता रहे हैं. स्कूल में पढ़ने वाली परीज़ा आसिफ और फातिमा महबूब ने बताया किस तरह उनकी कुछ दोस्त पहले अपने डाउट क्लियर करने उनके पास आतीं थीं। लेकिन अब सीधे टीचर से सवाल पूछती हैं. इसी स्कूल में पढ़ने वाले सिख स्टूडेंट जयदीप सिंह ने भी इस सिटिंग अरेंजमेंट को गेम चेंजर बताया. जयदीप के मुताबिक, नई व्यवस्था से सभी बच्चे एक समान हो गए हैं.
जो टीचर्स बच्चों के अंदर बैक बेंच खत्म होने के बाद सकारात्मक बदलाव महसूस कर रहे हैं, उनका मानना है कि अनंतनाग के स्कूल की इस पहल को हर स्कूल को अपनाना चाहिए, क्योंकि इसके नतीजे बच्चों को बेहतर बना रहे हैं और उनके अच्छे भविष्य की गारंटी भी बन रहे हैं. बैक बेंचर्स होना हमेशा गलत नहीं है – कई क्रिएटिव और सफल लोग बैक बेंचर्स रह चुके हैं. लेकिन, कोई बच्चा जानबूझकर खुद को पीछे रख रहा है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है. लेकिन, बैक बेंच के स्थायी सिस्टम को खत्म करके अनंतनाग के स्कूल ने जो पहल शुरू की है, उसने पेरेंट्स की इस चिंता को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दिया है.