Pragya Thakur acquitted: मालेगांव बम ब्लास्ट केस में 17 साल बाद आखिरकार फैसला आ गया है. विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई 2025 को इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों को राहत दे दी. इस केस ने प्रज्ञा ठाकुर को पूरे देश में चर्चित बनाए रखा. आज 17 साल बाद उनके माथे से जानें कैसे 'भगवा आतंकवाद' का कंलक मिट गया.
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Malegaon Blast Case Verdict: मालेगांव बम ब्लास्ट केस में 17 साल बाद आखिरकार फैसला आ गया है. विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई 2025 को इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों को राहत दे दी. इस केस ने की वजह से प्रज्ञा ठाकुर पूर देश में हमेशा चर्चा में रहीं. 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्दों ने इस मामले को और भी विवादास्पद बना दिया था. आइए समझते हैं कि आखिर क्या था मामला. किस आधार पर प्रज्ञा ठाकुर मिली राहत. 'भगवा आतंकवाद' से क्या है कनेक्शन.
किस आधार पर प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी आरोपियों को मिली राहत
मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया. सबूत के अभाव में कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है. अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था. प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया.
बम किसने लगाया साबित ही नहीं हुआ
यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया. घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई.कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ. साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया.
प्रज्ञा ठाकुर पर क्या लगा था आरोप?
मालेगांव बम ब्लास्ट के शुरुआती जांच महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की. जांच में पता चला कि जिस मोटरसाइकिल पर बम रखा गया था, वो कथित तौर पर प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी. इसके आधार पर प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सात लोगों को आरोपी बनाया गया.
'भगवा आतंकवाद' का दिया गया नाम
इस केस को लेकर खूब राजनीति हुई. कांग्रेस सरकार के समय इसे 'भगवा आतंकवाद' का नाम दिया गया और कहा गया कि हिंदू संगठनों ने इस धमाके को अंजाम दिया. प्रज्ञा ठाकुर को 2008 में गिरफ्तार किया गया और उन पर मकोका जैसे सख्त कानून लगाए गए. लेकिन प्रज्ञा और उनके वकीलों ने हमेशा कहा कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया. 2011 में जांच एनआईए को सौंपी गई. एनआईए ने 2016 में अपनी चार्जशीट में कहा कि प्रज्ञा के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं. इसके बावजूद उन पर यूएपीए और अन्य धाराओं में मुकदमा चलता रहा.
17 साल बाद मिला इंसाफ
17 साल तक चली सुनवाई में 323 गवाहों के बयान दर्ज किए गए, जिनमें से 37 अपने बयान से मुकर गए. प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि उनकी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल धमाके से दो साल पहले से कोई और कर रहा था. उनके वकील जयप्रकाश मिश्रा ने दलील दी थी कि 'हिंदू आतंकवाद' की थ्योरी कांग्रेस की साजिश थी. एनआईए ने भी माना कि मकोका जैसे सख्त कानून का आधार नहीं था. आखिरकार, विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में प्रज्ञा ठाकुर और अन्य आरोपियों को बरी कर दिया.