पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम मोदी लगातार मीटिंग्स कर हैं. यह बैठकें CCS सहित कैबिनेट कमेटी के साथ हो रही हैं. इतिहास में इस तरह की मीटिंग जब-जब हुई है, भारत ने इतिहास बदला है. चाहे वह 1965 इंडो-पाक वॉर हो या परमाणु परीक्षण से लेकर बालाकोट एयरस्ट्राइक. हर एक्शन में कैबिनेट कमेटी ने अहम भूमिका निभाई है.
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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कई सख्त फैसले लिए हैं. सिंधु जल समझौता सस्पेंड करना हो या SAARC वीज़ा रद्द करना. भारत पाकिस्तान पर पूरी तरह लगाम लगाने में जुट चुका है. इस बीच, पीएम मोदी इतिहास की सबसे बड़ी कैबिनेट कमेटी की मीटिंग कर रहे हैं. यह मीटिंग CCS, CCPA, CCEA और कैबिनेट के साथ हो रही है. ऐसी मीटिंग्स तभी होती हैं. जब भारत सरकार कुछ बड़ा एक्शन लेती है. आज जब भारत एक और आतंकवादी हमले के बाद संभावित सैन्य कार्रवाई की ओर बढ़ रहा है, तब यह जानना ज़रूरी है कि अतीत में इसी कैबिनेट सुरक्षा समिति के मंच से भारत ने कब-कब इतिहास बदलने वाले फैसले लिए हैं.
क्या होती है CCS?
इतिहास की घटनाओं को जानने से पहले सीसीएस के बारे में जान लेते हैं. कैबिनेट सुरक्षा समिति (Cabinet Committee on Security - CCS) देश की शीर्ष सुरक्षा नीति निर्धारण संस्था है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं. इसमें रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री शामिल होते हैं. युद्ध, आतंकवाद, रणनीतिक सैन्य कार्रवाई, और कूटनीतिक निर्णयों जैसे मामलों में अंतिम फैसले इसी समिति में होते हैं.
1965 इंडो-पाक वॉर और ECC कमेटी
23 सितंबर 1965, भारतीय सेना पाकिस्तान के लाहौर तक पहुंच चुकी थी. अगर उस रोज एक अहम फैसला न लिया जाता तो आज लाहौर भारत के नक्शे में होता. दरअसल, 5 अगस्त 1965 को 25-26 हजार की संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीरी वेशभूषा में एलओसी क्रॉस करने की हिमाकत की. पहले तो इसे घुसपैठ बताय गया, लेकिन बाद में पाक आर्मी की पुष्टि हुई. पाकिस्तानी सेना की कोशिश जम्मू-कश्मीर पर कब्जे की थी.
जैसे ही यह खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को लगी, तुरंत कैबिनेट की आपातकालीन समिती (ECC) की बैठक बुलाई गई. रिपोर्ट के मुताबिक, इसी कमेटी ने पाकिस्तान पर पलटवार के फैसले को मंजूरी दी. भारत ने सेना की पैदल टुकड़ी को लाहौर तक घुसने का आदेश दे दिया. जब दुनिया ने देखा पाकिस्तान मुकाबले में कहीं भी नहीं टिक रहा, तब युद्धविराम की पेशकश की जाने लगी. UN ने ईसीसी के समक्ष सीजफायर का प्रस्ताव रखा. तमाम विचार-विमर्श के बाद ईसीसी की बैठक में 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम का फैसला लिया गया. यह इतिहास के पन्नों में भारत की सबसे बड़ी जीत मानी जाती है.
1971 युद्ध और इंदिरा गांधी की CCS बैठक
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के अंतिम चरण में, जब पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में पाकिस्तान की 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्काल एक CCS बैठक बुलाई. इस बैठक में रक्षा मंत्री जगजीवन राम, विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह, वित्त मंत्री वाय. बी. चव्हाण, थलसेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ शामिल थे.
Ashok Parthasarathi द्वारा संपादित पुस्तक ‘GP: 1912–1995’ के मुताबिक, इस बैठक में चर्चा हुई कि क्या भारत को उस समय पेशावर की ओर बढ़कर पाकिस्तान-ऑक्युपाइड कश्मीर (PoK) को फिर से हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए. इंदिरा गांधी ने सभी के विचार सुने और फैसला लिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल सीजफायर किया जाए, जो 17 दिसंबर 1971 को लागू हुआ.
CCS ने देश को दी परमाणु शक्ति
मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राजस्थान के पोखरण में भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण किया, जिसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ नाम दिया गया. यह पूरी तैयारी बेहद गोपनीय थी और इसकी मंजूरी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने दी थी. इस कमेटी में रक्षा, विदेश, गृह और वित्त मंत्री शामिल थे. परीक्षण की योजना अमेरिकी सैटेलाइट से छिपाकर बनाई गई और वैज्ञानिकों को सेना की मदद से गुप्त रूप से पोखरण भेजा गया. CCS ने हर कदम पर निगरानी रखी, ताकि परीक्षण से पहले कोई जानकारी लीक न हो.
11 मई को परीक्षण के बाद CCS की आपात बैठक हुई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और आगे की रणनीति पर चर्चा हुई. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए भारत को ‘परमाणु शक्ति संपन्न देश’ घोषित किया. इसके बाद अमेरिका और जापान ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन CCS की रणनीति और विदेश मंत्री जसवंत सिंह की कूटनीति ने हालात को जल्द संभाल लिया. पोखरण परीक्षण न सिर्फ भारत की वैज्ञानिक ताकत का प्रदर्शन था, बल्कि यह अटल सरकार और CCS की निर्णायक नेतृत्व क्षमता का प्रतीक बन गया.
कारगिल युद्ध की जीत में CCS की भूमिका
आजाद भारत के इतिहास में कारिगल युद्ध सबसे बड़ी लड़ाई मानी जाती है. इस युद्ध में भारत के जाबांज सैनिकों ने वीरता का परचम लहराया. कारगिल युद्ध के दौरान भी कैबिनेट सुरक्षा समिति (CCS) की भूमिका निर्णायक रही. पहली बार 18 मई 1999 को जब पाकिस्तान द्वारा बड़ी संख्या में घुसपैठ की पुष्टि हो गई, तब CCS की आपात बैठक बुलाई गई. इस बैठक में तत्काल सैन्य तैयारियों, अतिरिक्त फौज की टुकड़ियों की तैनाती और सामरिक रणनीतियों की समीक्षा जैसे फैसले लिए गए. इसी बैठक के बाद भारत सरकार ने कारगिल सेक्टर में भारी सैन्य जमावड़ा शुरू किया.
CCS यहीं तक नहीं रुकती है. 24 मई को हुई CCS की एक और अहम बैठक में वायुसेना के प्रयोग को मंजूरी दी गई. यह इतिहास का बड़ा फैसला था क्योंकि भारत युद्ध नीति के तहत, नियंत्रण रेखा (LoC) को पार नहीं करना चाहता था. फिर भी, घुसपैठियों के ठिकानों को लक्ष्य बनाकर 26 मई से वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ की शुरुआत की, जिसमें मिग-21, मिग-27 और मिराज 2000 विमानों ने भारी बमबारी की.
जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया, CCS की बैठकें निरंतर होती रहीं और हर निर्णय भारत की सैन्य और कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करता गया. 11 जून को भारत ने जनरल परवेज मुशर्रफ और लेफ्टिनेंट जनरल अज़ीज़ खान की बातचीत का टेप सार्वजनिक किया, जो पाकिस्तान की संलिप्तता का पुख्ता प्रमाण था. इन सबके बीच CCS की रणनीति यह थी कि बिना नियंत्रण रेखा पार किए, घुसपैठियों को खदेड़ना है और वैश्विक मंच पर नैतिक बढ़त बनाए रखनी है.
आखिरकार 14 जुलाई को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की, और 26 जुलाई को युद्ध की समाप्ति हुई. इस पूरे अभियान में CCS ने न केवल सैन्य फैसलों को मंजूरी दी, बल्कि वैश्विक कूटनीति के तहत भारत की छवि भी मजबूत की.
कंधार विमान हाईजैक और CCS की भूमिका
24 दिसंबर 1999 को जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 को हाईजैक कर लिया गया था, और उसमें 179 यात्री सवार थे, तब CCS की बैठक तत्काल बुलाई गई. विमान को अफगानिस्तान के कंधार में उतारा गया, जो उस समय तालिबान के कंट्रोल में था. इस हाईजैक में पाकिस्तान से जुड़े आतंकियों ने भारत में बंद तीन आतंकवादियों को रिहा करने की मांग की थी.
CCS की बैठक में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने खुद ही तीन आतंकवादियों को कंधार ले जाने की पेशकश की, ताकि बंधकों की जान बचाई जा सके. बाद में, बंधकों और क्रू को दो विशेष विमानों से दिल्ली लाया गया और विमान भारत लौट आया. यह सीसीएस बैठक की ही देन थी कि सभी यात्री सुरक्षित वापिस लौट आए.
पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक
29 सितंबर 2016 का दिन भारतीय सेना के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. यह एक ऐसा मौका था, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकियों का खात्मा किया था. इस दौरान भी CCS ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दरअसल, 18 सितंबर 2016 को उरी स्थित इंडियन आर्मी के कैंप पर आतंकियों ने हमला किया. यह हमला पाक समर्थित आतंकियों द्वारा था, जिन्हें भारतीय सैनिकों ने उसी वक्त ढेर कर दिया.
हालांकि, इस हमले में भारत ने अपने 19 वीर जवानों को खो दिया. देश भर में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी. किसी भी हाल में पाकिस्तानी आतंकियों से बदला लेना था. फिर क्या सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला लिया गया. स्ट्राइक से पहले CCS की अहम बैठक हुई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की शीर्ष सुरक्षा और राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य कार्रवाई की मंजूरी दी. यह बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, वित्त मंत्री और सेना के शीर्ष अधिकारियों की मौजूदगी में हुई थी, जिसमें खुफिया एजेंसियों से मिले पुख्ता इनपुट्स के आधार पर यह निर्णय लिया गया.
इसके लिए भारतीय सेना की घातक टुकड़ी पैरा एसएफ के 25 कमांडो को मिशन पूरा करने की जिम्मेदारी दी गई. फिर क्या, भारतीय सेना ने पीओके में 3 किलोमीटर अंदर घुसकर 38 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया. जिसकी जानकारी डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फेंस के दौरान दी थी. यह सैन्य कार्रवाई केवल सैन्य जवाब नहीं, बल्कि CCS की रणनीतिक योजना और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति निर्णायक दृष्टिकोण का प्रतीक थी.
बालाकोट एयरस्ट्राइक का फैसला
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे. इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. इस हमले के बाद CCS की तत्काल बैठक बुलाई गई, जिसमें सुरक्षा हालात की समीक्षा और जवाबी रणनीति पर चर्चा हुई. इसके बाद कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (Cabinet Committee on Political Affairs - CCPA) की बैठक भी हुई. इस बैठक में पाकिस्तान को दी गई ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN)’ का दर्जा खत्म करने का फैसला लिया गया.
इसी बीच, RAW और अन्य एजेंसियों ने पता लगाया कि जैश का मुख्य ट्रेनिंग कैंप बालाकोट (खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में है. फिर क्या, 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में एयरस्ट्राइक की. 12 मिराज-2000 फाइटर जेट्स से बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर धावा बोला. जिसमें करीब 300 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया.
इस एयरस्ट्राइक को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने ही मंजूरी दी थी. जिसके बाद, आतंक के खिलाफ भारत की छवि दुनिया भर में मजबूत हुई. यूएन तक ने भारत को आतंक के खिलाफ एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र बताया.
पहलगाम आंतकी हमले के बाद आगे क्या?
पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया भी समझ चुकी है कि भारत ने जब-जब CCS की मीटिंग ली है. तब-तब आतंक के खिलाफ कड़ा प्रहार किया है. इस बार पीएम मोदी केवल CCS की नहीं, बल्कि CCPA, CCEA और कैबिनेट कमेटी के साथ बैठक कर रहे हैं. ऐसे में पहलगाम आतंकी हमले के जिम्मेदारों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने की संभावना बढ़ गई है.
इस बीच, बुधवार को कैबिनेट कमेटी की हुई बैठक में Caste Census जाति जनगणना पर मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी है कि जातियों की गणना जनगणना में होगी. बता दें, जातिगत जनगणना का मतलब है जब देश में जनगणना की जाएगी, तब लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाएगी. जिसका उद्देश्य सामान रूप से लोगों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.
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