17 साल... 323 गवाह... और एक फैसला जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है! 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA की विशेष अदालत ने सांसद साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, लेकिन क्या यह न्याय है या अनसुलझे सवालों का एक नया अध्याय? इस वीडियो में हम परत-दर-परत विश्लेषण कर रहे हैं कि कैसे एक हाई-प्रोफाइल टेरर केस 17 साल में धराशायी हो गया. हम जानेंगे, शुरुआत से अंत तक यानी 29 सितंबर 2008 के धमाके से लेकर आज के फैसले तक की पूरी कहानी. इसके अलावा इस केस में हेमंत करकरे का रोल, कैसे ATS चीफ हेमंत करकरे की जांच ने देश को चौंका दिया था और 26/11 में उनकी शहादत के बाद केस पर क्या असर पड़ा. साथ ही आपको ये भी बता देते हैं कि आकिर ये केस क्यों कमजोर हुआ? NIA के हाथ में केस आने के बाद क्या बदला? क्यों 34 गवाह अपने बयानों से मुकर गए? और सबसे बड़ा सवाल कि अगर ये सभी निर्दोष हैं, तो उन 6 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है? और असली आरोपी रामजी कालसंग्रा और संदीप डांगे आज तक फरार क्यों हैं? यह सिर्फ एक केस का अंत नहीं, बल्कि हमारे जांच सिस्टम और न्याय प्रक्रिया पर एक गंभीर सवाल है.