US Airstrikes Iran Nuclear Site: अमेरिका के जरिये ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर किए गए हवाई हमले में सिर्फ फोर्दो साइट को मामूली नुकसान पहुंचा. NBC रिपोर्ट ने ट्रंप के दावों की पोल खोल दी. ईरान की रणनीति और संयम ने वैश्विक स्तर पर उसे मजबूत किया तो दूसरी उसकी मजबूत सैनिक छवि को नुकसान पहुंचा है.
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America Attack on Iran: ईरान पर अमेरिका के भारी- भरकम हवाई हमले की सच्चाई सामने आ गई है और यह वाकई चौंकाने वाली है. जिस ऑपरेशन को अमेरिका ने बड़ी जीत बताते हुए पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीटा था, वो अब खुद उसकी नाकाम हिकमत अमली बनकर सामने आई है. एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले महीने किए गए हवाई हमलों में अमेरिका महज एक ही ईरान के एक परमाणु ठिकाने को मामूली तौर नुकसान पहुंचा सका था.
इजरायली ने बीते 13 जून को अचानक ईरान पर हमला कर दिया था. जवाब में ईरान ने भी इजरायल पर मिसाइल बरसाए. इस जंग के 9वें दिन अचानक अमेरिकी एयरफोर्स ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया था. अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि इस हवाई हमले में ईरान के तीन महत्वपूर्ण परमाणु ठिकाने फोर्दो, नतांज और इस्फहान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया.
हालांकि, अमेरिकी मीडिया हाउस NBC की रिपोर्ट ने डोनाल्ड ट्रंप, यूएस एयरफोर्स के दावों की कलई खोल दी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी हवाई हमलों में सिर्फ फोर्दो परमाणु ठिकाने को मामूली तौर पर नुकसान पहुंचा है, जबकि ईरान के नतांज और इस्फहान जैसी महत्वपूर्ण परमाणु ठिकाने पूरी तरह से सुरक्षित हैं.
दरअसल, बीते 22 जून को अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर के चलाकर अपने खतरनाक B-2 बॉम्बर्स से ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर एक साथ हवाई हमला किया था. अमेरिका का मकसद था ईरान की परमाणु ताकत को पूरी तरह खत्म करना, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि तीनों में से सिर्फ फोर्दो साइट को ही नुकसान पहुंचा और वह भी सीमित स्तर पर. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस हमले के चलते ईरान की यूरेनियम संवर्धन प्रक्रिया में करीब दो साल की देरी हो सकती है, लेकिन परमाणु कार्यक्रम को रोकना संभव नहीं हुआ है.
NBC की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड ने पहले एक लंबी और सिलेसिवार तरीके से सैन्य योजना तैयार की थी, जिसमें कई हफ्तों तक ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले होने थे. वहीं जब यह योजना राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पास पहुंची, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया. ट्रंप को डर था कि इससे अमेरिका को ईरान-इजरायल जंग में घसीटा जा सकता है. इसकी वजह से बड़े पैमाने पर जान- माल का नुकसान होता और अमेरिका एक लंबी जंग में उलझ कर रह जाता.
हिंदुस्तान में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाद में ट्रंप और उनके सहयोगियों ने तय किया कि सिर्फ एक रात में सीमित हमले किया जाएंगे और यही हुआ. हमले के तुरंत बाद ट्रंप और पेंटागन ने दावा किया था कि ईरान के फोर्दो, इस्फहान और नतांज स्थित परमाणु संयंत्र पूरी तरह तबाह हो गए हैं. पेंटागन प्रवक्ता सीन पार्नेल ने तो मीडिया को 'फेक न्यूज' तक करार देते हुए कहा कि ये ठिकाने अब मिट्टी में मिल चुके हैं और सालों तक वापस खड़े नहीं हो पाएंगे. लेकिन अब खुद अमेरिकी रिपोर्ट्स ने इन दावों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.
हमले के बाद भी ईरान ने बड़े स्तर पर कोई सैन्य प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि संयम के साथ अपनी स्थिति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पेश किया. यह ईरान की रणनीतिक सोच और राजनीतिक परिपक्वता को दिखाता है. इसकी वजह से न सिर्फ ईरान की वैश्विक स्तर पर छवि मजबूत हुई बल्कि वो यह संदेश भी देने में कामयाब रहा है कि तकनीकी और सैन्य रूप से ईरान कमजोर नहीं पड़ा है. ट्रंप की धमकियों को दरकिनार करते हुए ईरान ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के टेबल लौटने से भी इंकार कर दिया.
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