Fatehpur Maqbara Violence मामले में पुलिस ने 150 से ज्यादा लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, लेकिन भीड़ को भड़काने वाले बीजेपी नेताओं और हिंदू संगठनों के नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज नहीं हुई है. यहां तक की एसपी को धमकी देने वाले नेता का नाम एफआईआर से गायब है. वाल उठ रहा है कि क्या पुलिस दबाव में काम कर रही है या किसी खास को बचाया जा रहा है?
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उपरोक्त शेर इस वक़्त उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की तर्जुमानी कर रहा है, जहां मुसलमानों की एक मामूली गलती पर भी उसे बड़ी सजा भुगतनी पड़ जाती है, वहीं मुसलमानों के खिलाफ की जाने वाली गलतियां और उसके गुनहगारों के गुनाहों पर साम्प्रदायिक सियासत का पर्दा डाल दिया जाता है. उत्तर प्रदेश के मुसलमान ये सवाल पूछ रहे है कि संभल हिंसा में जब पीड़ित मुसलमानो को ही मुल्जिम बना दिया गया, तो फतेहपुर में हुई घटना में असल मुल्जिमों को क्यों बचाया जा रहा है?
दरअसल, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के आबूनगर इलाके में बने नवाब अब्दुल समद के मकबरे को 11 अगस्त को तोड़ दिया गया. इससे एक दिन पहले बीजेपी के जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल ने प्रशासन को चेतानवी दी थी कि 11 अगस्त को वह हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ उस मकबरे में पूजा-पाठ करेंगे. बीजेपी नेता का दावा था कि यह मकबरा असल में एक पुराना मंदिर है और वहां एक शिवलिंग भी मौजूद है. वहीं, इस मामले में पूर्व बीजेपी MLA विक्रम सिंह, भिटौरा ब्लॉक प्रमुख अमित तिवारी, तेलियानी ब्लॉक प्रमुख अभिषेक त्रिवेदी, मनोज त्रिवेदी (हिंदू महासभा) और वीरेंद्र पांडे (बजरंग दल) जैसे नेता भी सामने आए हैं. इन पर लोगों को मकबरे पर हमला करने के लिए उकसाने का इल्जाम है.
11 तारीख की सुबह भाजपा जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल के आह्वान पर हज़ारों की संख्या में लोग फतेहपुर में जमा हुए, जिनमें ज़्यादातर हिंदू संगठनों के लोग थे. हिंदू संगठनों और भीड़ ने फतेहपुर ज़िले के सदर कोतवाली के आबूनगर इलाके में स्थित नवाब अब्दुल समद की मज़ार पर तोड़फोड़ की. देखते ही देखते मज़ार को ध्वस्त कर दिया गया. फिर मज़ार पर नमाज़ पढ़ी गई और वहां भगवा झंडा फहरा दिया गया. साथ ही, मुसलमानों के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक नारे भी लगाए गए.
पुलिस देखती रही तमाशा
वहीं, हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और भीड़ को वहां से हटाया लेकिन यह लाठीचार्ज तब तक नहीं हुआ जब तक मुस्लिम समुदाय के लोग मजार के पास जमा नहीं हो गए. इसके बाद दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया. तब पुलिस ने कार्रवाई करते हुए लाठीचार्ज किया. इससे पहले जब सैकड़ों की संख्या में भीड़ मज़ार के पास हंगामा कर रहे थे और मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे, तब पुलिस वहां मौजूद थी, लेकिन कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई. भीड़ बिना किसी रोक-टोक के मजार को तोड़ रहे थे.
इन लोगों के खिलाफ
इस घटना के बाद पुलिस ने सैकड़ो लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. इनमें बीजेपी जिला महामंत्री पुष्पराज पटेल, बीजेपी युवा मोर्चा जिला महामंत्री प्रसून तिवारी, बजरंग दल जिला सह संयोजक धर्मेंद्र सिंह और पार्षद विनय तिवारी शामिल हैं. इसके अलावा अभिषेक शुक्ला, रितिक पाल, आशीष त्रिवेदी, पप्पू सिंह चौहान, अजय सिंह उर्फ रिंकू लोहारी और देवनाथ धाकड़े के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है.
SP को धमकी देने वाले नेता के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें साफ सुना जा सकता है कि फतेहपुर के बीजेपी जिला अध्यक्ष ने फतेहपुर SP को फ़ोन पर धमकाते हुए कहा, हिम्मत है तो गोली चलाकर देखो. ये मुलायम सिंह की सरकार नहीं है कि गोली चलवा दोगे. इसके बाद एसपी और बीजेपी नेता के बीच बातचीत चलती रही. एसपी को फ़ोन पर धमकी देने वाले बीजेपी जिला अध्यक्ष का नाम भी दर्ज FIR से गायब कर दिया गया है.
भीड़ को उकसाने वाले के खिलाफ दर्ज नहीं हुई FIR
वहीं, पूर्व बीजेपी विधायक विक्रम सिंह, भिटौरा ब्लॉक प्रमुख अमित तिवारी, तेलियानी ब्लॉक प्रमुख अभिषेक त्रिवेदी, मनोज त्रिवेदी (हिंदू महासभा) और वीरेंद्र पांडे (बजरंग दल) जैसे नेताओं के वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं, जिनमें साफ़ देखा जा सकता है कि ये लोग शहर में दंगा कराना चाहते थे, लेकिन इन नेताओं के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं की गई है.
संभल हिंसा में सांसद के खिलाफ दर्ज हुआ था
इस घटना के बाद सवाल उठ रहे हैं कि जिस देश में हर छोटी-छोटी बात पर मुसलमानों के खिलाफ FIR दर्ज हो जाती है. इसका उदाहरण संभल हिंसा है. इस हिंसा में एक मुस्लिम सांसद और विधायक समेत सैकड़ों लोगों को आरोपी बना दिया जाता है और उससे घंटो पूछताछ की जाती है, लेकिन जब प्रशासन को खुलेआम चुनौती देने वाले व्यक्ति का नाम दर्ज एफआईआर से गायब हो जाए तो सवाल उठना स्वाभाविक है.