Biography of Prophet Muhammad: आज हम आपको हज़रत खदीजा और मोहम्मद (स.अ) की शादी तक पहुंचने का किस्सा बताएंगे. हम बताएंगे कि आखिर कैसे मक्का के ऊंचे घराने की औरत, जो बेहद अमीर थीं उन्हें मक्का के अमीन और बकरी चलाने वाले मोहम्मद, जिनकी बताई राह पर कई बिलियन मुसलमान चलते हैं, कैसे पसंद आ गए?
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Biography of Prophet Mohammad: पैगंबर मोहम्मद (स.अ) ने किसी स्कूल, मदरसे से गुरु से कोई तालीम नहीं ली थी, यानी वो पढ़े- लिखे नहीं थे. इसके बावजूद वो बचपन से ही काफी समझदार, जहीन और तर्कशील थे. हर बात पर गौरो- फ़िक्र और चिंतन करते थे. जब नौजवान हुए तो इस समझ में और इज़ाफा हुआ. वह बकरियां चराते और खूब ध्यान लगाते. वहीं चाचा अबू तालिब रोज़ी की फिक्र करते. एक दिन आप के चाचा उनके पास आए और बोले भतीजे क्या तुम जानते हो कि अपनी माली हालत क्या है? हमारी परेशानियों में बहुत इज़ाफा हो गया है. इसी दौरान अबू तालिब ने हजरत खदीजा का जिक्र किया. किसी को नहीं पता था कि वह एक दिन आप (स.अ) की खूबियों से इतनी मुतास्सिर हो जाएंगी कि उनसे शादी की बात कहेंगी.
अबू तालिब ने अपनी दिक्कतों का इजहार करते हुए भतीजे से कहा कि खदीजा अपना माल देकर दूसरों से कारोबार कराती हैं. तुम (आप स.अ) कहो तो तु्म्हारे लिए बात करूं? उस वक्त आपकी उम्र 23 या 24 साल थी. आपने कहा कि चाचा आप जो फरमाएं, सिर आंखों पर!
खदीजा मक्का के बेहद ऊंचे घरानों से थीं, उनका नसब नामा पांचवे पुश्त तक पहुंचकर आप (स.अ) से मिलता था. उनकी दो बार शादी हो चुकी थी और दोनों बार उनके खाविंद का इंतेकाल हो गया था. दूसरी शादी के बाद कुरैश के कई मालदारों ने उन्हें शादी का पैगाम भेजा, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया. वह खुद अकेले रहतीं, कारोबार करतीं और आरामदायक जिंदगी बितातीं.
अब अबू तालिब मोहम्मद (स.अ) के काम के मुताल्लिक खदीजा (र.अ) के पास पहुंचे और वह भी किसी शख्स को तिजारती काम के लिए ढूंढ रही थीं. अबू तालिब ने पूछा कि खदीजा मोहम्मद से कारोबार करना पसंद करेंगी? जिस पर खदीजा ने कहा कि आप किसी गैर आदमी के लिए कहते तब भी मुझे इंकार नहीं होता, ये तो अपने आदमी हैं, वह भी अमीन (ईमानदार आदमी).
बस फिर क्या था अबू तालिब आप के पास पहुंचे और बताया कि रोज़गार का इंतेजाम हो गया है . थोड़े वक्त बाद ही शाम (सीरिया) जाने के लिए काफिला तैयार हो गया. जिसमें खदीजा का गुलाम मैसरा और मोहम्मद (स.अ) थे. चाचा ने गुलाम से कहा कि देखो मोहम्मद का ख्याल रखना और ये काफिला रवाना हो गया.
आपने बड़ी कामयाबी के साथ कारोबार किया. बड़े तजु्र्बेकार व्यापारी की तरह लोगों से पेश आए. जो कुछ बेचा बड़ी नर्मी के साथ बेचा और जो कोई भी मामला किया वह बड़ी ईमानदारी से किया. वापस आए तो वह सभी चीजें लाए जो खदीजा ने फरमाईशें की थीं.
एक तिजारती सफर के दौरान पैगंबर मोहम्मद (स.अ) ने एक जगह आसरा डाला हुआ था. गुलाम मैसरा इधर-उधर घूम रहा था. संत नस्तूर नाम का एक पादरी गुलाम के पास आया, जो उसे पहले से बेहतर तरीके से जानता था और पूछा कि ये तुम्हारे साथ कौन है? गुलाम ने कहा कुरैश का एक जवान जिसके परिवार के पास काबा की चाबी है.
नस्तूर ने सवाल किया कि तुमने इसमें क्या-क्या खूबियां देखी हैं और फिर जो गुलाम ने कहा उसे सुनकर संत हैरान हो गया और सवाल कर बैठा कि उस नौजवान की आंखें कैसी हैं? गुलाम बोला आंखें काली और चौड़ी हैं, सफेद हिस्से में लाल डोरे हैं. पलके काली और बारीक हैं, और कुछ बड़ी-बड़ी भी हैं.
बस फिर क्या था संत बोला जो इस खूबियों वाला शख्स इस पेड़ के नीचे ठहरे वह नबी ही हो सकता है. इसके बाद संत ने आप (स.अ) से मुलाकात की और उनकी बातें सुनकर काफी मुतास्सिर हुआ.
काफिला कुछ दिनों बाद मक्का वापस हुआ तो मर्रुज़हरान (जो आज फातिमा की घाटी के नाम से मश्हूर है) के पास गुलाम ने कहा कि लपक कर खदीजा के पास जाओ और उनको खुशखबरी दो. पैगंबर मोहम्मद (स.अ) को आते देख खदीजा ने पहले ही देख लिया और उनके स्वागत के लिए छत से नीचे आ गईं और आप ने उन्हें पूरा सफर का हाल बताया. आपकी मीठी बातें खदीजा के दिल को भी भा रही थीं.
इसके बाद मैसरा आया और उन्होंने खदीजा को पूरे सफर का किस्सा सुनाया. मैसरा के जुबान से खदीजा को बातें सुनकर इतनी हैरानी हुई कि उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. मैसरा ने बताया कि कैसे पैगंबर मोहम्मद ने ईमानदारी से कारोबार किया. इसके बाद ईसाई संत का किस्सा बताया और साथ ही बताया कि रास्ते में एक वाकिया हुआ, जिससे मैं हैरान रह गया.
रास्ते में सफर के दौरान दोनों ऊंट थक कर जवाब दे चुके थे. मैं जल्द ही मोहम्मद के पास गया और उन्हें पूरा हाल बताया. उन्होंने दोनों ऊंटों के पैर सहलाया और हाथ में नकेल लेकर उन्हें हंकाया, और वह इस तरह दौड़ने लगे जैसे कुछ हुआ ही न हो. इसके बाद से खदीजा के मन में आप (स.अ) के मन में रच- बस गए. हर वक्त आपकी ही बातें करती रहतीं. जिससे मिलती आपके ही गुण गातीं.
मोहम्मद (स.अ.) से खदीजा (र.अ.) को शादी करने की इतनी ख्वाहिश हुई कि करीबी औरतों ने इसे भांप लिया. उनमें से एक नफीसा बिनते उमैया ने कहा कि क्या हरज है, अमीन से शादी क्यों नहीं कर लेती? तुम बस हां करो बाकि काम कराना मेरा काम है.
इसके बाद नफीसा मोहम्मद (स.अ.) के पास आईं और बोलीं आप तन्हाई की जिंदगी कब तक बिताओगे. अब तो तुम्हें अपना घर बसा लेना चाहिए. आपने फरमाया कि मेरे पास है क्या जो मैं घर बसाऊं. बोलीं, बताओ अगर इसका इंतेजाम हो जाए तो?
आपने (स.अ.) फरमाया कौन है, जिसकी तरफ आपका इशारा है? उमैया बोलीं, खदीजा से अच्छा रिश्ता तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा. नेक काम में देर कैसी.
आप (स.अ.) खदीजा के अखलाक से काफी मुतास्सिर थे. लोग उन्हें ताहिरा करते थे, यानी पाकदामन. लेकिन आप ने कहा कि क्या वह मुझ गरीब से शादी के लिए तैयार होंगी. नफीसा ने उन्हें भी वही जवाब दिया तुम इसकी फिक्र मत करो. इस पर उसे आमदा करना मेरा काम है.
इसके बाद आप (स.अ) अपने चचा अबू तालिब के पास गए और उन्हें पूरा वाकिया बताया. जिसे सुनकर उन्हें काफी हैरानी हुई, क्योंकि खदीजा काफी मालदार और बड़े खानदान से ताल्लुक रखती थीं और वह बड़े-बड़े मालदारों के रिश्ते ठुकरा चुकी थीं.
अबू तालिब ने भाइयों को साथ लेकर खदीजा के चाचा अम्न-बिन-असद से मुलाकात की और शादी का पैगाम दिया. खदीजा के वालिद पहले ही इंतेकाल कर चुके थे. सभी लोग शादी के राज़ी हो गए, मानों पहले से ही तैयार बैठे हों. जब आपकी खदीजा (र.अ) से शादी हुई उस वक्त आपकी उम्र 25 साल दो महीने थी और बीवी खदीजा की उम्र 40 साल थी.