Nawab Hamidullah: मध्य प्रदेश में भोपाल के आखिरी नवाब हमिदुल्ला खान के नाम पर बने हमिदिया अस्पताल, कॉलेज और स्कूल के नाम बदलने की तैयारी पर सियासत तेज हो गई है. नगर निगम ने नाम बदलने वाले इस प्रसताव को मंजबूर दिया. अब इस मामले में प्रदेश की सरकारो को फैसला लेना है. वहीं, विपक्ष ने पारदर्शिता की कमी और कानूनी आधार न होने का इल्जाम लगाकर हाई कोर्ट में चुनौती दी है. पूरी खबर जानने के लिए नीचे स्क्रॉल करें.
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Nawab Hamidullah: भारत में नाम बदलने और इतिहास बदलने की राजनीति आम हो गई है. खास कर जब यह नाम किसी नवाब या मुगल बादशाहों से जुड़ा हो तो इस पर राजनीति और तेज हो जाती है. मध्य प्रदेश के भोपाल के आखिरी नवाब हमिदुल्लाह खान के नाम पर आज कल राजनीति हो रही है. मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है. यहां नवाब हमिदुल्लाह खान के नाम पर बने तीन बड़े संस्थानों का नाम बदलने की तैयारी कर ली गई है, यानी अब वे संस्थान नवाब हमिदुल्लाह के नाम से नहीं पहचाने जाएंगे.
दरअसल, भोपाल में वहां के आखिरी नवाब हमिदुल्लाह के नाम पर तीन बड़े संस्थान चलते हैं, जिनमें हमिदिया अस्पताल, हमिदिया कॉलेज और हमिदिया स्कूल शामिल हैं. अब इन संस्थानों के नाम बदलने की तैयारी कर ली गई है. भोपाल शहर के कॉरपोरेशन के सदर किसन सूर्यवंशी ने इस मामले पर बताया कि इन संस्थानों के नाम बदलने के लिए गुजिश्ता जून के महीने में ही प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया. इस प्रस्ताव को राज्य सरकार को भेज दिया गया है. उन्होंने बताया कि इस मामले में अब राज्य सरकार फैसला लेगी.
किसन सूर्यवंशी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इन संस्थानों का नाम एक ऐसे इंसान के नाम पर था, जो भोपाल को भारत में नहीं मिलाना चाहता था और उस शख्स ने काफी कोशिशों के बाद भोपाल को भारत का हिस्सा बनने दिया. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के लोगों को क्यों इज्जत दी जाए. उन्होंने यह भी कहा कि इन संस्थानों के नाम बदलने के लिए पिछले दो सालों से मांग कर रहे थे, आखिरकार वह वक्त आ ही गया, जब इन संस्थानों के नाम बदले जाएंगे.
इस प्रस्ताव के बाद मध्य प्रदेश की राजनीतिक तनाव बढ़ गई है. विपक्ष के नेताओं ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का रुख किया है और इस प्रस्ताव को चुनौती दी है. भोपाल मुनसिपल कॉरपोरेशन में विपक्ष के नेता शब्स्तान ज़की ने दावा किया कि इस प्रस्ताव को मंजूरी देने में पारदर्शिता नहीं थी. उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर कोई चर्चा नहीं हुई और इसे गुपचुप तरीके से मंजूरी दे दी गई. उन्होंने यह भी इल्जाम लगाया कि नाम बदलने वाला प्रस्ताव का कोई कानूनी दर्जा नहीं है.