Delimitation Debate: क्या स्टालिन राष्ट्रीय स्तर पर खुद को विपक्ष का प्रमुख चेहरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. परिसीमन पर केंद्र सरकार जब भी चर्चा करेगी स्टालिन को इसका राजनीतिक लाभ मिल सकता है. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस कहां खड़ी नजर आ रही है.
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South Indian Politics: पिछले कुछ समय से लोकसभा सीटों के परिसीमन और लैंग्वेज को लेकर काफी चर्चा हो रही है. इन सबके बीच परिसीमन को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों में विरोध पहले से अधिक बढ़ गया है. इसका जिम्मा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने उठाया हुआ है. उन्होंने बकायदा इसके लिए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की है. यहां तक कि पिछले दिनों स्टालिन की अध्यक्षता में सात राज्यों के नेताओं की बैठक हुई जिसमें परिसीमन को अगले 25 साल तक टालने की मांग उठी. इस बैठक में केरल, तेलंगाना, पंजाब, कर्नाटक और ओडिशा के नेताओं ने भाग लिया. हालांकि इसमें तृणमूल कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस ने दूरी बनाए रखी. लेकिन स्टालिन ये सब क्यों कर रहे हैं इसके कई कारण हैं.
परिसीमन का विरोध इतना ज्यादा क्यों?
असल में इसी बैठक की बात करें तो में स्टालिन ने कहा कि परिसीमन यदि जनसंख्या के आधार पर किया जाता है तो दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कम हो सकता है. सबसे बड़ा कारण स्टालिन की तरफ से यही बताया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर काम किया है उन्हें इस पुनर्गठन से नुकसान होगा. आरोप भी यही है कि साउथ में लोकसभा सीटें कम कर दी जाएंगी जबकि बीजेपी इस बात को नकारती रही है. बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में इस मुद्दे पर घोषणा करनी चाहिए और परिसीमन को पारदर्शी तरीके से लागू करना चाहिए.
तो आखिर स्टालिन चाहते क्या हैं?
अब जबकि गृहमंत्री ने भी कहा है कि साउथ में सीटें कम नहीं होंगी तो स्टालिन इतने आक्रामक क्यों हैं. राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस बैठक से स्टालिन राष्ट्रीय स्तर पर खुद को विपक्ष का प्रमुख चेहरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. परिसीमन पर केंद्र सरकार जब भी चर्चा करेगी स्टालिन को इसका राजनीतिक लाभ मिल सकता है. शायद यही वजह है कि स्टालिन खुद को इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के लिए प्रोजेक्ट कर रहे हैं. हालांकि स्टालिन की सक्रियता से इंडिया ब्लॉक के ही कई दल सहमत नहीं हो सकते हैं जिसमें खुद कांग्रेस भी शामिल है.
बीजेपी की आखिर क्या है प्रतिक्रिया
शुरू से ही बीजेपी इस बैठक को राजनीतिक स्टंट करार दे रही है. पार्टी के तमिलनाडु महासचिव राम श्रीनिवासन ने तो कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक परिसीमन पर कोई निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह बैठक सिर्फ मोदी विरोधी नेताओं का एकजुट होने का प्रयास थी और इसका कोई ठोस असर नहीं पड़ेगा.
तो आखिर क्या करेगी कांग्रेस.. क्या है रुख
तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष कोपन्ना ने स्टालिन के कदम का समर्थन जरूर किया और कहा कि परिसीमन के नाम पर तमिलनाडु जैसे राज्यों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी कहा कि 2026 से पहले परिसीमन नहीं हो सकता क्योंकि 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने संविधान संशोधन कर इसे 2031 की जनगणना तक स्थगित कर दिया था. लेकिन स्टालिन के उस रुख पर कांग्रेस अभी मौन है जिसमें कहा जा रहा स्टालिन विपक्ष को एकजुट कर रहे हैं.
तो आखिर क्या होगा आगे?
फिलहाल परिसीमन के मुद्दे पर केंद्र सरकार बहुत एक्टिव नजर नहीं आ रही है. ऐसे में यह मुद्दा ठंडे बस्ते में दिख रहा है लेकिन दक्षिणी राज्यों का यह कड़ा रुख इसे भविष्य में बड़ा राजनीतिक विवाद बना सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इस पर आगे क्या रुख अपनाती है और क्या स्टालिन इस बहाने राष्ट्रीय राजनीति में कुछ करेंगे खासकर दक्षिण में क्योंकि उनकी अति आक्रामकता पर सबकी नजरें बनी हुई हैं.