Justice Yashwant Varma: संविधान के आर्टिकल 124 में सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने का जिक्र है. वहींं आर्टिकल 218 में कहा गया है कि हाई कोर्ट के जजों को हटाने की प्रकिया भी वही रहेगी जो आर्टिकल 124 के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों की ही है. आर्टिकल 124के मुताबिक किसी जज को सिर्फ दो आधार पर ही हटाया जा सकता है.
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Cash-at-home case: लोकसभा स्पीकर ने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर मिले कैश (Justice Yashwant Varma cash case) के आरोप को जांच के लिए 3 सदस्य कमेटी का गठन किया है. कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के जज अरविंद कुमार (Supreme Court Justice Aravind Kumar), मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव ( Madras High Court Chief Justice MM Shrivastava), कर्नाटक हाई हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील बी वी आचार्य (senior advocate BV Acharya) शामिल होंगे. कमेटी जांच कर अपनी रिपोर्ट देगी. कमेटी कैसे काम करेगी? क्या जस्टिस वर्मा को सफाई का मौका मिलेगा, इस पर चर्चा करने से पहले यह देख लेते है कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को किस आधार पर हटाया जा सकता है.
क्या है जज को हटाने का आधार
संविधान के आर्टिकल 124 में सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने का जिक्र है. वहीं आर्टिकल 218 में कहा गया है कि हाई कोर्ट के जजों को हटाने की प्रकिया भी वही रहेगी, जो आर्टिकल 124 के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों की ही है. आर्टिकल 124के मुताबिक किसी जज को सिर्फ दो आधार पर ही हटाया जा सकता है.
1.सिद्ध कदाचार (proved misbehaviour)- यदि ये साबित हो जाए कि जज ने अपने आचरण के कारण गम्भीर रूप से न्यायपालिका की गरिमा का उल्लंघन किया है.
2.अक्षमता(in capicity)- यदि जज शारीरिक या मानसिक रूप से जज के तौर पर अपनी ड्यूटी करने में असक्षम है. संविधान के आर्टिकल 124 के तहत प्रावधान है कि किसी जज को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा ही हटाया जा सकता है. जजों को हटाने की पूरी प्रकिया Judges Inquiry Act, 1968 में है.
अब कमेटी क्या करेगी?
इस केस में कमेटी सबसे पहले वो आरोप तय करेंगी जिनके आधार पर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच होगी. इन आरोपों की कॉपी जस्टिस यशवंत वर्मा को दी जाएगी. जस्टिस वर्मा को कमेटी की ओर से तय समयसीमा में लिखित जवाब दाखिल करने का मौका मिलेगा. कमेटी को जांच के लिए अपनी प्रकिया खुद तय करने का अधिकार होगा. यह कमेटी जस्टिस वर्मा को गवाहों से जिरह करने और अपना पक्ष रखने का पूरा मौका देगी.
कमेटी को सिविल कोर्ट के बराबर अधिकार
कमेटी को इस एक्ट के तहत जांच पूरी करने के लिए सिविल कोर्ट के बराबर अधिकार होगा. कमेटी किसी भी व्यक्ति को समन करके उसकी हाजिरी सुनिश्चित लर सकती है. वो केस से जुड़े दस्तावेज को तलब कर सकती है.
कमेटी का निष्कर्ष
जांच पूरी करने के बाद कमेटी लोकसभा स्पीकर को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, फिर यह रिपोर्ट सदन के समक्ष पेश की जाएगी. यदि रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप सही नहीं पाए जाते तो फिर संसद के किसी सदन में रिपोर्ट को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. लेकिन अगर रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि जस्टिस वर्मा ने अपने आचरण के कारण गम्भीर रूप से न्यायपालिका की गरिमा का उल्लंघन किया है या वो इस जिम्मेदारी को निभाने में असक्षम है तो फिर प्रस्ताव पर सदन में विचार किया जाएगा और उस पर बहस की जाएगी. सदन में जब चर्चा होंगी तो जस्टिस वर्मा को भी संसद में आकर अपनी सफाई देने का मौका मिलेगा.
जजों को हटाने के लिए विशेष बहुमत जरूरी
किसी भी जज को हटाने के प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन से विशेष बहुमत से पास होना जरूरी है. यानी ऐसे प्रस्ताव को पास होने के लिए उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से पास होना ज़रूरी होगा. प्रस्ताव पास हो, इसके लिए इन दोनों कसौटी का पूरा होना ज़रूरी है. पहले प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा, जहां पर प्रस्ताव लाया गया था. यदि प्रस्ताव लोकसभा में बहुमत से स्वीकृत हो जाता है, तो फिर वो वोटिंग के लिए दूसरे सदन में भेजा जाएगा. दोनों सदनों में अगर प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, वो जस्टिस वर्मा को हटाने का आदेश जारी करेंगे.