बिहार में जारी वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत कथित तौर पर वोटर लिस्ट से नाम हटाने और व्यापक अनियमितताओं के खिलाफ इंडी गठबंधन के सांसदों ने शुक्रवार को संसद परिसर में विरोध-प्रदर्शन किया. नेताओं ने चुनाव आयोग पर पक्षपात और 60 लाख वोटरों के नाम हटाने का आरोप लगाया.
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Patna: बिहार में जारी वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत कथित तौर पर वोटर लिस्ट से नाम हटाने और व्यापक अनियमितताओं के खिलाफ इंडी गठबंधन के सांसदों ने शुक्रवार को संसद परिसर में विरोध-प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी, राजद सांसद मनोज झा और टीएमसी सांसद सुष्मिता देव सहित कई विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता शामिल हुए. प्रदर्शन के बाद राजद सांसद मनोज झा ने चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करते हुए तल्ख टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि आज हम गांधी जी के पास गए हैं. किसी बुजुर्ग के पास आदमी तभी जाता है, जब लोकतंत्र संकट में हो. लोकतंत्र आज वाकई परेशान है. हम चुनाव आयोग से फिर कहेंगे कि किसी के इशारे पर काम करना बंद करिए. बांग्लादेश का चुनाव आयोग आपका आदर्श नहीं होना चाहिए.
TMC सांसद सुष्मिता देव ने भी SIR प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया के तहत 60 लाख से अधिक वोटरों को लिस्ट से बाहर कर दिया गया है. यह लोकतंत्र की सीधी हत्या है. यह कैसे संभव है कि एक राज्य में 65 लाख फर्जी वोटर हों? इसमें डॉक्युमेंटेशन की गंभीर खामियां हैं. असम में हमने NRC के लिए छह साल दस्तावेज दिखाए, लेकिन आज तक NRC पूरा नहीं हुआ. ऐसे में SIR इतनी तेजी से कैसे हो गया? यह प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में है.
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कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने जमीनी सच्चाई को उजागर करते हुए बताया कि सरकार और चुनाव आयोग के दावों में बहुत बड़ा अंतर है. उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि 97 प्रतिशत वेरिफिकेशन हो चुका है, लेकिन सच्चाई यह है कि मात्र 25 प्रतिशत लोगों का ही फॉर्म सबमिट हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खुद वेबसाइट पर फॉर्म चेक नहीं कर सकते; उन्हें बीएलओ के पास जाना होता है. ऐसे में जब 75 प्रतिशत लोगों के फॉर्म ही सबमिट नहीं हुए, तो हम कैसे मान लें कि पूरा वेरिफिकेशन हो चुका है? रंजीत रंजन ने आरोप लगाया कि भाजपा ने पहले से ही यह तय कर लिया है कि किनका नाम वोटर लिस्ट में रखना है और किनका हटाना है. उन्होंने आगे कहा कि 1 सितंबर तक का समय दिया गया है, लेकिन ज्यादातर लोग यह जानते ही नहीं कि उनका वोट बचा है या नहीं. गरीब और जागरूकता से वंचित तबके को इस प्रक्रिया में पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है.
इनपुट: आईएएनएस
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