Shibu Soren Last Rites: दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन से सियासी गलियारों में मातम पसर गया है. पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित तमाम राजनेताओं ने इस पर दुख जताया है. झारखंड में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा कर दी गई है.
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Shibu Soren Political Career: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक 'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन का आज (सोमवार, 04 अगस्त) दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने 81 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. वे लंबे समय से किडनी संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे और लंबे समय से अस्पताल में भर्ती थे. दिशोम गुरु के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. जानकारी के मुताबिक, उनका पार्थिव शरीर आज शाम 06 बजे झारखंड लाया जाएगा और कल (मंगलवार, 05 अगस्त) उनके पैतृक गांव रामगढ़ जिले के नेमरा में अंतिम संस्कार किया जाएगा. अंतिम संस्कार से पहले उनके पार्थिव शरीर को पार्टी दफ्तर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा.
शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि झारखंड आंदोलन के प्रतीक थे. उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा आदिवासियों के हक और अधिकार की लड़ाई से शुरू की थी. शिबू सोरेन ने साल 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था और 1977 में पहली बार चुनाव लड़ा था. अपने पहले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष जारी रखा. 1980 से उनकी जीत का सिलसिला शुरू हुआ और 2019 तक जारी रहा. इस दौरान वह दुमका लोकसभा सीट से सात बार सांसद रहे. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
जब झारखंड को अलग राज्य बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही थी, उस समय सूरज मंडल जैसे नेताओं के साथ मिलकर शिबू सोरेन ने एक लंबा संघर्ष किया. उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा जन-जन तक पहुंची. नतीजतन वर्ष 2000 में नया राज्य बना झारखंड. उनका संघर्ष आदिवासी अस्मिता, जल-जंगल-जमीन और सामाजिक न्याय की आवाज को राष्ट्रीय मंच तक ले गया. साल 2000 में झारखंड को अलग राज्य बनाने में शिबू सोरेन की भूमिका अहम रही. अलग राज्य बनने के बाद वह तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, हालांकि वह किसी भी कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाए. उनका पहला कार्यकाल 2 मार्च, 2005 से 11 मार्च, 2005, दूसरा कार्यकाल 27 अगस्त 2008 से 12 जनवरी 2009 और तीसरा कार्यकाल 30 दिसम्बर 2009 से 31 मई 2010 रहा. चाहे संसद हो या सड़क, शिबू सोरेन ने हर मंच से आदिवासी समाज की आवाज उठाई. उन्होंने जल, जंगल और जमीन जैसे मुद्दों को राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बनाया.
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