Belsand Vidhan Sabha Seat: रघुवंश प्रसाद सिंह की कर्मभूमि बेलसंड में RJD-JDU की टक्कर, जनसुराज ने त्रिकोणीय बनाया मुकाबला
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Belsand Vidhan Sabha Seat: रघुवंश प्रसाद सिंह की कर्मभूमि बेलसंड में RJD-JDU की टक्कर, जनसुराज ने त्रिकोणीय बनाया मुकाबला

Belsand Vidhan Sabha Chunav: इस सीट की पहचान बिहार के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की कर्मभूमि के रूप में होती है. अभी एनडीए में सीट बंटवारा नहीं हुआ है, लेकिन ट्रेंड के मुताबिक माना जा रहा है कि ये जेडीयू की झोली में ही जाएगी और उसका मुकाबला आरजेडी से होगा. जन सुराज के आने से लड़ाई त्रिकोणीय हो सकती है.

बेलसंड विधानसभा सीट
बेलसंड विधानसभा सीट

Belsand Assembly Seat Profile: बेलसंड विधानसभा सीट सीमामढ़ी जिले के अंतर्गत आती है. यह सीट शिवहर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस सीट की पहचान बिहार के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की कर्मभूमि के रूप में होती है. 1977 में आपातकाल के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह जनता पार्टी से उभरे और क्षेत्र की राजनीति में लंबा प्रभाव छोड़ा. वे यहां से साल 1977, 1980, 1985 और 1995 में विधायक चुने गए. सबसे खास बात यह रही कि रघुवंश बाबू हर बार नए दल से चुने गए. यहां की जनता ने लगातार दलों और नेताओं को बदलकर देखा. इस सियासी यात्रा में कांग्रेस के बाद समाजवादी दलों- जेडीयू, राजद, लोजपा सभी ने यहां सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन बीजेपी का कमल कभी नहीं खिला.

सियासी इतिहास

इस सीट पर पहली बार 1957 में वोटिंग कराई गई थी. पहले ही चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रमानंद सिंह को जीत हासिल हुई थी. उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई. इसके बाद इस सीट को उसकी पहचान रघुवंश प्रसाद सिंह से मिली, जो 1977, 1980, 1985 और 1995 में अलग-अलग दलों के टिकट पर विधायक बने. 1996 में उनके लोकसभा जाने के बाद हुए उपचुनाव में समता पार्टी के वृषिन पटेल ने सीट अपने नाम की. सुनीता सिंह चौहान ने भी इस सीट पर तीन बार जीत दर्ज की है. वे जेडीयू और लोजपा दोनों की टिकट विधायक बन चुकी हैं. मौजूदा समय में इस सीट से राजद के संजय कुमार गुप्ता विधायक हैं.

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जातीय समीकरण

इस सीट पर राजपूत, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. ये तीनों जातियां किसी भी प्रत्याशी की हार और जीत में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. रविदास और पासवान निर्णायक भूमिका में हैं. मुस्लिम और यादव वोटरों का गठजोड़ यहां पर राजद के लिए पिछले चुनाव में असरदार साबित हुआ था. जब पिछड़ी जातियों के वोटर एकजुट हो जाते हैं तो एनडीए को फायदा मिल जाता है. आजाद हिन्द फौज की स्थापना कर नक्सलियों से लोहा लेने वाले नीतीश सिंह महराज इस बार जन सुराज ज्वाइन की टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. वे इन दिनों लगातार क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं. जन सुराज से मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है.

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