Achaleshwar Dham mandir: यूपी के इस जिले में एक मंदिर है जहां पर शिवलिंग दो बार रंग बदलता है. इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से हैं.पांडवों के अज्ञातवास के दौरान नकुल और सहदेव ने यहां के सरोवर में स्नान कर भोले बाबा की पूजा की थी. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में.
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Achleshwar Mahadev Mandir Mystery: अलीगढ़ शहर के बीचों-बीच अचल सरोवर के किनारे देवो के देव अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं. अचलेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पांडवों के अज्ञातवास के दौरान नकुल और सहदेव ने अचल सरोवर में स्नान किया और भगवान अचलेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना की. यही कारण है कि यह मंदिर भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है. इस मंदिर में हमेशा ही भक्तों की भीड़ रहती है. भक्त जब भी कोई शुभ कार्य शुरू करते हैं तो भोले जी का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं. इस मंदिर की खास बात है कि दिन के 24 घंटे में यहां शिवलिंग तीन बार रंग बदलता है. अचलेश्वर महादेव मंदिर अलीगढ़ का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं.
सावन में उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़
अचलेश्वर महादेव मंदिर अलीगढ़ का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं. यह मंदिर शहर के बीचों बीच है. यहां पर सावन के महीने में शिवजी के लिए श्रद्धा का सैलाब देखते ही बनता है. इस मंदिर के आसपास 50 से ज्यादा मंदिर हैं. अचलेश्वर मंदिर के पास में अचल सरोवर हैं. शाम को जब आरती होती है तो यहां का पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है. सरोवर की गुमटी पर भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति स्थापित है.
शिवलिंग बदलता है रंग
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग हर रोज 24 घंटे में तीन बार रंग बदलता है. कभी शिवलिंग काला दिखता है, तो कभी गेरूआ रंग में नजर आता है. सावन माह में शिवलिंग का रंग बदलाना देखना अपने आप में एक बेहद पुण्यकारी है. शिवलिंग की जलहरी की भी विशेष मान्यता है. ऐसा कहते हैं कि गर्मी में अगर बारिश न हो रही हो, तो जलहरी को पानी से भरने पर जल्द से जल्द बारिश हो जाती है. जब लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त मंदिर की जलहरी को जल और दूध से भरते हैं. शिवलिंग के रंग बदलने के पीछे की वजह क्या है? यह कोई नहीं जानता. वैज्ञानिक भी अब तक शिवलिंग के इस तरह से रंग बदलने का कारण समझ नहीं पाए हैं.
महाभारत से काल से इस मंदिर का नाता
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. धार्मिक मान्यता अनुसार जब पांडव के अज्ञातवास के दौरान यहां पर पांडव के दोनों छोटे भाई नकुल और सहदेव यहां आए थे. उन्होंने अचल सरोवर में स्नान किया था. स्नान करने के बाद बाबा अचलेश्वरधाम की पूजा-अर्चना की थी. तभी से इस मंदिर की धार्मिक मान्यता बढ़ती चली गई.
कैसे स्थापित हुआ श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर
ऐसा कहते हैं कि भगवान शिव की प्रतिमा जमीन से निकली हुई है. इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. लगभग 5000 साल पहले की बात है, सिंधिया परिवार की महारानी को सपना आया कि अलीगढ़ में अचल सरोवर के पास एक शिवलिंग जमीन में दबा हुआ है, उसे निकाल कर स्थापित किया जाए. तभी वहां की खुदाई के लिए मजदूर लग गए. ऐसा कहते हैं कि जब शिवलिंग को जमीन में से निकालने के लिए खुदाई हुई, तो एक मजदूर का फावड़ा शिवलिंग पर लग गया. जिससे शिवलिंग में से पहले खून की धारा निकली और फिर दूध की धारा निकली. कहते हैं कि यहां जो भक्त सच्ची भावना से जो मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.
5000 साल से ज्यादा पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार
अचलेश्वरधाम बाबा सिद्धपीठ हैं, जो भी मन से मनौती मांगता है, अवश्य पूर्ण होती है. अचलसरोवर में बने गोमुखों से हरदुआगंज स्थित बरौठा गंग नहर से गंगा जल आता था.
मंदिर के अंदर ये भी विराजमान
मंदिर के अंदर पार्वती, नंदी और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित हैं. शिवलिंग काफी नीचे स्थापित है. इसमें आठ मन तक दूध आ जाता है. जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह भगवान शिव का दूध से दुग्धाभिषेक करते हैं. सावन के दिनों जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने के लिए मंदिर के बाहर जीटी रोड तक श्रद्धालुओं की लाइन लग जाती है. अचलेश्वर महादेव मंदिर के आस-पास श्री गिलहराज मंदिर है, जहां हनुमानजी गिलहरी के रूप में विराजमान है. नौ देवी मंदिर, दाऊजी मंदिर, गायत्री मंदिर, गौरा देवी और नटराज आदि मंदिर भी यहां माजूद हैं.
डिस्क्लेमर- इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zeeupuk इनकी पुष्टि नहीं करता है.