Uttarkashi News: उत्तरकाशी धराली में 5 अगस्त को भीषण आपदा आई और चंद मिनट में आपदा ने धराली गांव का नक्शा बदल दिया. विशेषज्ञों की राय है कि यदि धराली के ऊपरी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में देवदार के पेड़ होते तो इतनी बड़ी आपदा नहीं आती.
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उत्तरकाशी/हेमकांत नौटियाल: उत्तरकाशी धराली में 5 अगस्त को भीषण आपदा आई और चंद मिनट में आपदा ने धराली गांव का नक्शा बदल दिया. वहीं हिमालय क्षेत्र में जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों की राय है कि यदि धराली के ऊपरी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में देवदार के पेड़ होते तो इतनी बड़ी आपदा नहीं आती.
विशेषज्ञों का क्या कहना?
विशेषज्ञों का कहना है कि 100 साल पहले हिमालय क्षेत्र में देवदार के वृक्ष बड़ी मात्रा में पाए जाते थे और देवदार के घने जंगल हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे देवदार के पेड़ों का दोहन होने लगा है. जिस कारण अब देवदार के पेड़ों की संख्या मात्र सैकड़ो में ही बच गई है. वहीं विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि देवदार के वृक्ष मिट्टी को जकड़ने और रोकने का कार्य करते हैं और जहां पर देवदार के वृक्ष बड़ी मात्रा में होते हैं.
अधिक पौधारोपण की जरूरत
वहां पर भूस्खलन, प्राकृतिक आपदाएं बहुत कम आती है, लेकिन लगातार देवदार के वृक्षों का दोहन होने से पहाड़ी क्षेत्रों में और उच्च हिमालय क्षेत्र में लैंडस्लाइड और प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. प्राकृतिक आपदा आने से बड़ी मात्रा में नुकसान हो रहा है. इसलिए देवदार के पौधों का अधिक से अधिक रोपण करना चाहिए. इनका दोहन नहीं करना चाहिए. तभी लैंडस्लाइड और प्राकृतिक आपदाएं रुक सकती है.
स्थानीय ग्रामीण यशस्वी शर्मा ने कहा, देवदार के पेड़ों का कटान न किया जाए तो यह मिट्टी को बांधकर रख सकता है. धराली में भी अगर देवदार के पेड़ों का कटान नहीं किया जाता तो वहां उतनी आपदा नहीं आती. जमीन कमजोर पड़ रही है, बारिश होने पर इसका कटान होता है. देवदार के पेड़ों का दोहन नहीं किया जाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए. जिससे आपदाओं को रोका जा सके.
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