Waqf Bill: वक्फ संशोधित बिल 2024 देर रात लोकसभा में पास हो गया है. सहयोगी पार्टियों के समर्थन से भाजपा को यह बड़ी कामयाबी है. आज यह बिल उच्च सदन राज्यसभा में पेश किया जाएगा. इसलिए सभी नजरें आज राज्यसभा में पर टिकी हुई होंगी.
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Waqf Amendment Bill: लोकसभा ने बुधवार को 12 घंटे की तीखी बहस के बाद वक्फ (संशोधन) बिल पास कर दिया. बिल को 288 वोटों के समर्थन और 232 विरोध के साथ मंजूरी मिली. बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के समर्थन से यह संख्या बहुमत के आंकड़े से आगे निकल गई. इस दौरान सरकार ने विपक्ष के उन आरोपों का जोरदार जवाब दिया, जिसमें कहा गया था कि यह बिल संविधान और मुस्लिम अधिकारों का उल्लंघन करता है और संघीय ढांचे पर हमला करता है.
बीजेपी को अपनी प्रमुख सहयोगी पार्टियों तेदेपा (TDP), जदयू (JDU), शिवसेना और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) का समर्थन मिला, जबकि INDIA गठबंधन ने इस विधेयक के विरोध में एकजुटता दिखाई. हालांकि भाजपा को पहले से ही यकीन था कि वह इस बिल को पास करवाने में कामयाब हो जाएगी. इसी यकीन के साथ गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा,'आपने ये बदलाव सिर्फ अपने वोट बैंक को बचाने के लिए किए थे और हमने इसे खत्म करने का फैसला किया है.'
अब यह बिल गुरुवार को यानी आज राज्यसभा में रखा जाएगा, यहां भी इसके पास होने की पूरी संभावना है. लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस में धर्मनिरपेक्ष बनाम सांप्रदायिक बहस देखने को मिली लेकिन बिल का पास होना एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इससे पहले नागरिकता (संशोधन) कानून (CAA), तीन तलाक पर रोक और उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने जैसे कानूनों के बाद, यह चौथा बड़ा कदम था, जिसे भाजपा सरकार ने मुस्लिम संगठनों और विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद लागू किया.
बीजेपी के लिए यह जीत इसलिए भी खास रही क्योंकि उसे अपने दम पर लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं था. इसके बावजूद उसके धर्मनिरपेक्ष सहयोगी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया. इससे यह इशारा मिलता है कि इन पार्टियों को भरोसा है कि मुसलमानों का समर्थन खोने से उन्हें कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा, बल्कि बीजेपी के साथ गठबंधन से उन्हें ज्यादा फायदा होगा.
लोकसभा में बहस के दौरान कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और इससे अल्पसंख्यकों को बदनाम कर उनका हक छीना जा रहा है और समाज में फूट डाली जा रही है. इसका जवाब देते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने साफ किया कि बिल का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. यह सिर्फ संपत्तियों से जुड़ा हुआ कानून है. उन्होंने कहा,'सरकार किसी भी धार्मिक संस्था के मामलों में दखल नहीं कर रही है. यूपीए सरकार ने वक्फ कानून में कुछ बदलाव किए थे, जिससे इसे अन्य कानूनों पर प्राथमिकता मिल गई थी. इसलिए यह जरूरी था कि इसमें संशोधन किया जाए.'
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि यह बिल भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति का हिस्सा है, जिसे उसने लोकसभा चुनावों में हुए नुकसान के बाद अपनाया है. उन्होंने कहा कि यह बिल देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचाएगा और दुनिया में गलत संदेश जाएगा. उन्होंने यह भी दावा किया कि यह बिल बीजेपी के लिए 'वाटरलू' (यानी हार की वजह) साबित होगा, क्योंकि जो सहयोगी आज इसका समर्थन कर रहे हैं, वे अंदर से खुश नहीं हैं.
वहीं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध करते हुए इसके मसौदे की प्रति फाड़ दी. सदन में विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए ओवैसी ने कहा कि यह भारत के ईमान पर हमला है और मुसलमानों को अपमानित करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा,'इस बिल को लाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह के खिलाफ जंग छेड़ दी है.'
विपक्ष के आरोपों के जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड और परिषदों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से मुसलमानों के अपने धार्मिक मामलों को संभालने के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद ने भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा,'कांग्रेस ने हमेशा सिर्फ अल्पसंख्यकों के हितैषी होने का दिखावा किया, लेकिन कभी उन्हें मजबूत नहीं किया.' उन्होंने शाह बानो केस का जिक्र करते हुए कहा,'जब सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था, तो कांग्रेस सरकार ने इसे पलट दिया ताकि वह अपने वोट बैंक की राजनीति कर सके. उस समय कांग्रेस के पास 400 सीटें थीं लेकिन उसके बाद कभी उसे लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला.'