Ramayana Katha: रामायण में प्रभु राम और देवी सीता के विवाह का बहुत खूबसूरत वर्णन मिलता है. जानिए राम-सीता विवाह की एक ऐसी घटना जब सीता जी की स्थिति को देखकर पार्वती जी की मूर्ति मुस्कुराने लगी थी.
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Ram Sita Vivah: प्रभु राम भगवान विष्णु के अवतार हैं और सीता माता मां लक्ष्मी का अवतार हैं. जब प्रभु राम और सीता जी के विवाह का समय आया तो उसे लेकर श्रीरामचरित मानस में एक अद्भुत वर्णन मिलता है. यहां तुलसीदास ने माता सीता की अधीरता का जिस तरह से उल्लेख किया है, वह अद्वितीय है. इसमें प्रभु राम और माता सीता के विवाह से जुड़ा एक प्रसंग है, जिसमें सीता जी की स्थिति देखकर गौरी मां (पार्वती जी) की मूर्ति तक मुस्कुराने लगती है. 6 अप्रैल को रामनवमी है इस मौके पर राम सीता विवाह की ये रोचक कथा जानिए.
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जब सीताजी ने प्रभु राम को देखा
राजा जनक द्वारा अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर रचा तो उसमें हिस्सा लेने के लिए दूर देशों से राजा और राजकुमार पहुंचे. प्रभु राम और लक्ष्मण भी इसमें अपने गुरु के साथ पहुंचे थे. जब पहली पुष्पवाटिका में सीताजी ने श्रीराम को देखा तो उनका मन उन्हें बार-बार देखने के लिए अधीर होने लगा. उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि उनके पिता ने स्वयंवर में धनुष उठाने की शर्त रखी है. सीताजी को सोचने लगी कि पता नहीं यह सुकुमार राजकुमार शिव जी के इतने भारी धनुष को उठा पाएंगे या नहीं.
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इस विचार ने सीताजी का मन व्याकुल कर दिया. वह परेशान होकर अंदर ही अंदर मां गौरी से प्रार्थना करने लगीं और दौड़ते हुए गौरी मंदिर पहुंच गईं. फिर सीता जी गौर मां (पार्वती जी) के विभिन्न नाम लेकर उनकी वंदना करने लगीं और उनसे प्रार्थना करती थीं प्रभु राम को ही उनका जीवनसाथी बनाएं.
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मुस्कुराने लगी पार्वती जी की मूर्ति
सीता जी प्रार्थना कर रही थीं, कि आप तो सभी के मन का हाल जानती हैं, मैंने राम को हृदय में बसा लिया है. सीता जी को इस तरह अधीर होकर प्रार्थना करते देखकर कैलाश पर्वत पर विराजमान माता पार्वती भाव विभोर हो गईं और मुस्कुराने लगीं. तब उनकी यह हंसी सीता जी के सामने गौरी मां की प्रतिमा में भी उभर आई. इस तरह सीता जी की प्रभु राम के लिए विकलता देखकर मंदिर में रखी गौरी मां की मूर्ति भी मुस्कुराने लगी थी.
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पार्वती जी ने भी शिव जी को पाने के लिए सैंकड़ों वर्ष तक कठोर तपस्या की थी. एक बार वह जब तपस्या में लीन थीं तो वहां से देवी लक्ष्मी और विष्णु जी निकले. देवी लक्ष्मी ने देखा कि पार्वती जी के मुख पर इतना तेज है लेकिन लगातार कठोर तप करने के कारण उनकी काया बहुत कमजोर हो गई थी. उन्हें देखकर लक्ष्मी जी ने सोचा कि आदिशक्ति को इतना कठोर तप करने की क्या जरूरत है.
लिहाजा जब महालक्ष्मी के अवतार में सीता जी को पार्वती जी ने इतना व्याकुल देखा तो वे हंस पड़ीं. इसके बाद गौरी मां ने आशीर्वाद स्वरूप उन्हें अंतर्मन से आवाज दी और कहा कि, हे सीता, मेरे सत्य वचन और आशीष सुनो. आपको वही वर प्राप्त होगा, जिसकी कामना आप कर रही हैं. मेरा ये वचन नारद मुनि के कहे वचनों की तरह ही सत्य और पवित्र है. इसके बाद प्रभु राम ने स्वयंवर जीता और सीता जी से विवाह किया.
(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)