क्या आप जानते हैं कि पुलिस और सेना की डॉग स्क्वायड का क्या काम होता है, ये कितने खूंखार होते हैं? वैसे एक कहावत है कि कुत्ते सिर्फ वफादार होते हैं, लेकिन आज हम जिस कहानी से आपको रूबरू करवा रहे हैं, उसे पढ़कर आप भी कहेंगे कि कुत्ते सिर्फ वफादार नहीं, बल्कि रक्षक भी होते हैं।
कहावत है कि कुत्ते वफादार होते हैं, लेकिन कुत्ते सिर्फ वफादार नहीं देश के रक्षक भी होते हैं। क्या आप जानते हैं कि सदियों से इंसानों के भरोसेमंद साथी डॉग्स आपकी रक्षा के लिए सेना और पुलिस में तैनात रहते हैं। अपराधियों और सबूतों का पता लगाने के लिए पुलिस और सेना डॉग्स को ट्रेनिंग देती है। वफादार होने के साथ-साथ सेना और पुलिस के डॉग्स का काम अपराधियों का पता लगाना और देश की रक्षा करना भी है, इसके लिए इन्हें बाकायदा ट्रेंड किया जाता है।
दिल्ली की सुरक्षा में दिल्ली पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्सेज, स्पेशल एजेंसियों के अधिकारी और जवान चौबीसों घंटे मुस्तैद रहते हैं। बिल्कुल उसी तरह ये 'गुमनाम रक्षक' (आर्मी डॉग्स) भी आपकी सुरक्षा में हर पल चौकस रहते हैं। इनके ऊपर आम लोगों से लेकर वीवीआईपी हस्तियों तक की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है। पुलिस और सेना की डॉग स्क्वायड पूरी तरह ट्रेन्ड होती है। ये डॉग्स स्क्वायड अपराधियों को पकड़ने और अपराध रोकने के लिए अर्धसैनिक बल, सेना और पुलिस के साथ मिलाकर काम करती है।
वैसे तो ये डॉग्स आपको देखने में बिल्कुल शांत लगेंगे, लेकिन शांत दिखने वाले ये वो सिपाही हैं जो दुश्मनों और अपराधियों के लिए बेहद खूंखार होते हैं। इनकी ट्रेनिंग भी बिल्कुल सेना के जवानों की तरह होती है। क्या आप जानते हैं कि सेना के डॉग्स का क्या काम होता है। मुख्य तौर पर सेना के इन डॉग्स का काम दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाना, गोला बारूद की खोज करना और जरूरत पड़ने पर हमला बोल देना है।
ये बात साल 1912 की है, जब दुनिया को पुलिस डॉग्स से ऑस्ट्रेलिया ने परिचित कराया था। इसके 5 साल के बाद ही वर्ष 1917 में इन डॉग्स को आर्मी में सक्रिय रूप से शामिल किया गया था। सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि डॉग्स ने प्रथम विश्व युद्ध (First World War) के दौरान अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था, ब्रिटिश सेना के पास तो करीब 20 हजार डॉग्स थे। उस दौरान इन डॉग्स के कंधों पर अहम जिम्मेदारी थी। इन बहादूर रक्षकों ने उस वक्त जो काम किया उनमें सैनिकों को तक संदेश, खाना पहुंचाना, युद्धस्थल में घायल सैनिकों को ढूंढना, दुश्मन और गोला बारुद की स्थिति का पता लगाना शामिल था।
नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग्स (National Training Centre for Dogs) ये वही जगह है, जहां कुत्तो को ट्रेनिंग दी जाती है, इसे वर्ष 1970 में बनाया गया था। देश की प्रमुख डॉग ट्रेनिंग एकेडमी मध्य प्रदेश में एक छोटे कस्बे टेकनपुर में स्थित है, जिसे नेशनल डॉग ट्रेनिंग सेंटर के नाम से जाना जाता है। सीमा सुरक्षा बल और गृह मंत्रालय के अधीन 'नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग्स' काम करता है। यहीं पर भारत की एजेंसियों, केंद्रीय पुलिस संगठनों और राज्य पुलिस बलों के डॉग्स को ट्रेनिंग दी जाती है।
जवानों और कुत्ते के बीच युद्ध के मैदान में एक अद्भुत संबंध रहता है। भारतीय सेना और पुलिस के पास कई तरह के कुत्तों की प्रजाति होती है। इनमें लेबराडोर (Labrador) और जर्मन शेफर्ड (German Shepherd) का नाम काफी चर्चित है, इसके अलावा मानसी, रेक्स, रुदाली, रॉकेट, एलेक्स भी कुछ ऐसे ही आर्मी डॉग्स हैं, जो भारतीय सेना का सिर गर्व से ऊंचा कर चुके हैं। इन्हें आर्मी का साइलेंट सोल्जर्स कहा जाता है। वर्तमान में भारतीय सेना के पास करीब हजार से भी ज्यादा ट्रेंड डॉग्स हैं। इनकी पावर को बनाए रखने की जिम्मेदारी मेरठ के रिमाउंट वेटरनरी कोर्प्स (RVC) सेंटर को सौंपी गई है, जहां हर दिन वर्कआउट करते आर्मी डॉग्स हैं। यहीं से उन्हें विभिन्न स्थानों पर तैनाती के लिए भेजा जाता है।
ट्रेन्डिंग फोटोज़