Udaipur Files की होगी स्पेशल स्क्रीनिंग, इन लोगों को देखनी की इजाजत
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Udaipur Files की होगी स्पेशल स्क्रीनिंग, इन लोगों को देखनी की इजाजत

Udaipur Files special Screening: कोर्ट ने उदयपुर फाइल्स की स्पेशस स्क्रीनिंग के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने कहा है कि फिल्म को देखने वाले अपने कमेंट्स लेकर आएं. पूरी खबर पढ़ने के लिए स्क्रॉल करें.

Udaipur Files की होगी स्पेशल स्क्रीनिंग, इन लोगों को देखनी की इजाजत

Udaipur Files special Screening: दिल्ली हाईकोर्ट ने विवादास्पद फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर फैसला देने से पहले फिल्म की एक विशेष स्क्रीनिंग का आदेश दिया था. यह निर्देश बुधवार को तब दिया गया, जब याचिकाकर्ताओं ने फिल्म पर धार्मिक समुदाय को बदनाम करने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया है.

किस पर आधारित है फिल्म

यह फिल्म साल 2022 में राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की हत्या की घटना से प्रेरित बताई जा रही है, और इसकी प्रस्तावित रिलीज़ तारीख 11 जुलाई है. मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान भारत सरकार और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि फिल्म और इसके ट्रेलर में से 40-50 आपत्तिजनक अंश पहले ही हटा दिए गए हैं.

किन लोगों को दिखाई जाएगी स्पेशल स्क्रीनिंग

न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि फिल्म के इस सेंसरशिप के बाद वाले वर्जन को एक स्पेशल स्क्रीनिंग के जरिए पिटीशनर और उनके वकीलों के लिए कराई जाए. इस स्क्रीनिंग में सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल भी शामिल होंगे, जो याचिकाकर्ता मौलाना अरशद मदनी (जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष) की तरफ से पेश हुए हैं.

कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा कि वे स्क्रीनिंग के बाद अपने कमेंट्स के साथ वापस आएं. इस मामले की सुनवाई बुधवार को जारी रहेगी. पिटीशनर का तर्क है कि फिल्म एक खास धार्मिक समुदाय को निशाना बनाती है और इससे समाज में हिंसा भड़क सकती है. सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि भले ही कुछ दृश्य हटा दिए गए हों, फिल्म की मूल थीम अब भी चिंताजनक है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्वजनिक व्यवस्था के ऊपर नहीं हो सकती.

पिटीशन में क्या कहा गया है?

याचिका में यह भी कहा गया है कि फिल्म भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है. साथ ही चेताया गया है कि ग़ैर-निर्णीत मामलों जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण को फिल्म में नाटकीय रूप से पेश करना न्यायालय की अवमानना के दायरे में आ सकता है.

फिल्म के आलोचकों का कहना है कि यह उदयपुर हत्याकांड की वास्तविकता को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है, और दो कट्टरपंथी लोगों की कार्रवाई को एक व्यापक धार्मिक साज़िश की तरह दिखाने की कोशिश करती है.

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