Naga Language: केंद्र सरकार देश भर की विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने व उन्हें शिक्षा का हिस्सा बनाने के लिए काम कर रही है. इसी कड़ी में अब नागा भाषा को बढ़ावा देने व नागा संस्कृति को शिक्षा के माध्यम से सहेजने का प्रयास किया गया है.
पूर्वोत्तर स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में इसके लिए नागा भाषा और संस्कृति में मास्टर ऑफ आर्ट्स (एमए) का नया अंतरविषयक (Inter Disciplinary) पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम शुरू किया गया है. यह पहल केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालय, नगालैंड ने शुरू की है. विश्वविद्यालय का मानना है कि यह कार्यक्रम नागा लोगों की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित, प्रोत्साहित और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक समयोचित और महत्वपूर्ण कदम है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की भावना के अनुरूप, यह कोर्स Inter Disciplinary दृष्टिकोण को अपनाता है. शिक्षाविदों का मानना है कि इससे छात्र केवल एक विषय तक सीमित न रहकर विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित पाठ्यक्रमों का अध्ययन कर सकेंगे. इस कार्यक्रम से स्नातक करने वाले छात्र तीन यूजीसी-नेट विषयों, भाषा विज्ञान, लोक साहित्य व जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाएं में परीक्षा देने के लिए पात्र होंगे.
इस नए पाठ्यक्रम के पहले बैच की कक्षाएं 5 अगस्त 2025 से आरंभ होंगी. शुरुआत में इस कार्यक्रम में कुल 20 छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा. केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जगदीश कुमार पटनायक ने कहा, भाषा और संस्कृति में मास्टर ऑफ आर्ट्स कार्यक्रम की शुरुआत काफी हर्ष का विषय है.
यह नागालैंड विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किया गया अपनी तरह का पहला Inter Disciplinary मास्टर डिग्री कार्यक्रम है, जो नागा समुदाय की भाषाई और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है. यह विश्वविद्यालय की शैक्षणिक उत्कृष्टता, समावेशिता और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
विश्वविद्यालय के मुताबिक यह पाठ्यक्रम नागा जनजातीय भाषा अध्ययन केंद्र द्वारा संचालित होगा. इसमें भाषा और संस्कृति अध्ययन की विभिन्न विचारधाराओं को शामिल करते हुए चार सेमेस्टर का ढांचा अपनाया गया है. इसका उद्देश्य पारंपरिक विषय आधारित सीमाओं से हटकर समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है.
नागा जनजातीय भाषा अध्ययन केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. यानबेनी यंथान के मुताबिक, यह कोर्स 21वीं सदी की सामाजिक चुनौतियों, नीति निर्माण में जमीनी योगदान, सांस्कृतिक धरोहर, भाषा पुनर्जीवन, भाषा नीति तथा स्वदेशी संस्कृतियों के कम अध्ययन काव्य और प्रथाओं से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए प्रासंगिक रहेगा. रोजगार के अवसरों की दृष्टि से यह कार्यक्रम छात्रों को पारंपरिक और उभरते क्षेत्रों जैसे शोध, अध्यापन, डिजिटल आर्काइविंग, परामर्श, विकास क्षेत्र, भाषा नीति और योजना विश्लेषण में योग्य बनाएगा. इनपुट- एजेंसी
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