Movie Review: अगर The Diplomat की नहीं पता असली कहानी, तो वाकई फिल्म देखने का आएगा मजा
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Movie Review: अगर The Diplomat की नहीं पता असली कहानी, तो वाकई फिल्म देखने का आएगा मजा

Movie Review: लंबे इंतजार के बार अब जॉन अब्राहम, सादिया खातीब और शारिब हाशमी की एक्शन फिल्म 'द डिप्लोमैट' बड़े पर्दे पर दस्तक दे चुकी है. अगर आप भी वीकेंड पर इसको देखना का मन बना रहे हैं, तो पहले एक नजर इसके रिव्यू पर डाल लें. 

The Diplomat Movie Review
The Diplomat Movie Review

निर्देशक: शिवम नायर 
स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, सादिया ख़तीब, शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा, रेवती और जगजीत सन्धु आदि 
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में 
स्टार रेटिंग: 3 

The Diplomat Movie Review: इस मूवी के बारे में बिना रिसर्च के जाइए, आपको मूवी शर्तिया पसंद आयेगी, लेकिन अगर आपको ये कहानी पहले से पता है तो आपके विचार बदल भी सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि इस मूवी में आपको जॉन अब्राहम बिलकुल एक नये अवतार में दिखेंगे, फ़िल्म की लीड हीरोइन के तौर पर सादिया ख़तीब ने भी रोल में जान लगा दी है और कहानी है मोदी सरकार की एक ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की जिसमें एक बूंद खून बहाए बिना पाकिस्तान की सरज़मीं पर पूरे पाकिस्तान को बताकर ऑपरेशन को अंजाम दिया गया और सुरक्षित वापसी का ऑर्डर भी पाकिस्तान की कोर्ट ने दिया. 

कहानी एकदम सच्ची है, इसलिए ऐसा कम होता है कि मूवी में सच्चे नाम वाले किरदार ही हों. ‘द डिप्लोमेट’ कहानी है उजमा अहमद (सादिया ख़तीब) की, एक ऐसी लड़की जो अपनी पहली शादी को तोड़कर किसी और के प्यार में गिरफ़्तार हो जाती है और अपनी मासूम बेटी की बीमारी के देसी इलाज के लालच में अपने प्रेमी के पास पाकिस्तान चली जाती है. 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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फिल्म का प्लॉट

लेकिन पाकिस्तान में घुसते ही  उसका प्रेमी ताहिर (जगजीत सन्धु) अपने असली रूप में आ जाता है और उसको अपने घर में क़ैद कर लेता है. मलेशिया में जहां वो मिले थे, ताहिर एक टैक्सी ड्राइवर था, लेकिन यहाँ वो एक उग्रवादी गुट से जुड़ा है, पहले से शादीशुदा है, कई लड़कियों को बंधक बनाया हुआ है. वो उजमा अहमद से भी जबरन निकाह कर लेता है. 

फिल्म की कहानी 

मूवी में ही कहानी शुरू होती है, जब सादिया इस्लामाबाद के भारतीय उच्चायोग में पहुँचती है और वहाँ अपनी जान का ख़तरा बताकर शरण माँगती है. जहां तैनात हैं डिप्लोमेट जेपी सिंह (जॉन अब्राहम). क्या सादिया उच्चायोग के लिए ख़तरा थी? क्या वो मानव बम थी? ऐसे तमाम सवालों से जूझना, पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के अधिकारियों की नाक के नीचे से उजमा को निकालकर  वापस भारत भेजना ही  जेपी सिंह का वो मिशन था, जिस पर ये मूवी बनी है.

चूंकि ये सच्ची कहानी है तो इसमें एक और किरदार अहम है, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (रेवती) का, उनके बिना हस्तक्षेप के ये ऑपरेशन मुमकिन ही नहीं था.  ये भी ख़ासा दिलचस्प है कि पिछले महीने नागा चैतन्य की तेलुगू मूवी ‘थंडेल’ में भी पाकिस्तान एंगल था और सुषमा स्वराज भी. लेकिन उसमें सुषमा जी के फोटो से काम चलाया गया. 

फिल्म के करिदार 

इस मूवी में तीन दिग्गज कलाकार और हैं, जॉन के सहयोगी के तौर पर शारिब हाशमी और पाकिस्तानी वकील के रोल में कुमुद मिश्रा में साथ साथ आईएसई चीफ़ का रोल करने वाला कलाकार भी असर छोड़ता है. जॉन और शारिब की बातचीत के बीच कुछ अच्छे डॉयलॉग्स भी हैं. फ़िल्म में सबसे ख़ास है लगातार दर्शकों को फ़िल्म के साथ बांधे रखना, ख़ासतौर पर उन्हें जिनको मूवी की असली कहानी नहीं पता है. ऐसे में उन्हें एक अच्छी थ्रिलर लगेगी कि कैसे बिना एक गोली चलाये ‘ग़दर’ के सनी देओल की तरह जॉन उजमा को पाकिस्तान से भारत वापस छोड़ कर आते हैं. 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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फिल्म में अखरती बातें 

हालांकि, कुछ बातें अखरती हैं, जब ‘नाम शबाना’ फ़ेम निर्देशक शिवम नायर इतनी रिसर्च कर रहे हैं तो उन्हें ये बेसिक बातें पता होनी चाहिए थीं कि सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं यानी केबिनेट मंत्री ना कि विदेश राज्य मंत्री (MoS). उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि कॉमनवेल्थ देशों में उच्चायोग या हाई कमीशन होते हैं, एम्बेसी या दूतावास नहीं. 

ये भी अखरता है कि इसका जवाब ही नहीं मिला कि उजमा ने बेटी को किसके पास  भारत में छोड़ा, थैलिसीमिया के इलाज के लिए इसे साथ पाकिस्तान क्यों नहीं लाई? बेटी को छोड़कर नौकरी के लिए मलेशिया जाना और उसके माँ बाप का नीदरलैंड में होना (जो मूवी में भी नहीं दिखाया गया), उसकी निजी कहानी को पेचीदा कर देते हैं. जॉन की निजी ज़िंदगी को भी प्रतीकात्मक सीन्स के ज़रिए दिखाया गया है.

एक नेक मिशन को सच्ची श्रद्धांजलि

लेकिन फ़िल्म का स्क्रीन प्ले और कलाकारों की एक्टिंग वाक़ई में अच्छी है. भले ही ताहिर के किरदार को थोड़ा और दमदार होना चाहिए था, ऐसा लगा. लेकिन फ़िल्म को काफ़ी हद तक रियलिटी के क़रीब रखने में निर्देशक की मेहनत दिखी है, हालाँकि एक बार तो मूवी ‘केरला फ़ाइल्स’ लगने लगती है. ये भी सच है कि एक मुस्लिम लड़की को जहन्नुम से निकालकर वापस भारत लाने के लिए सुषमा स्वराज ने जो मेहनत की थी, वो लोगों ने भुला दी थी, ये मूवी उनके एक नेक मिशन को सच्ची श्रद्धांजलि है.

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