AAP का गेमप्लान अब क्लियर है कि वह कांग्रेस से खुद को अलग करके अपनी चुनावी जमीन को फिर से पक्का करना चाहती है. खासकर वहां जहां कांग्रेस को वह कमजोर करती जा रही है. पंजाब और गुजरात इसके सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं.
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लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन बना. कई दल साथ आए. चुनाव में फिर एनडीए की सरकार बनी और विपक्ष का जोश ठंडा पड़ गया. अब हालत यह है कि जिस केजरीवाल के लिए बकायदा रामलीला मैदान में इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने बड़ी रैली की थी अब वही केजरीवाल इंडिया गठबंधन से बाहर हो गए. आम आदमी पार्टी ने तर्क दिया कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए ही था. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर लगे हाथ निशाना भी साध दिया. मगर यह समझना जरूरी है कि आप के निशाने पर भले ही कांग्रेस है लेकिन उसकी नजर कहीं और है.
'AAP अब गठबंधन का हिस्सा नहीं'
असल में यह संयोग है कि आम आदमी पार्टी ने यह फैसला विपक्ष की मीटिंग और संसद के मानसून सत्र से पहले लिया. पार्टी ने कहा कि AAP अब इस गठबंधन का हिस्सा नहीं है और कांग्रेस गठबंधन की जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रही. इंडिया गठबंधन बच्चों का खेल नहीं है. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद कोई ठोस बैठक या एकजुटता की कोशिश नहीं हुई.
AAP की नाराजगी सिर्फ रणनीतिक नहीं..
एक्सपर्ट्स का मानना है कि आप की नाराजगी सिर्फ रणनीतिक नहीं बल्कि चुनावी अनुभवों की उपज भी है. लोकसभा चुनावों में मिली विफलता और फिर दिल्ली चुनावों में कांग्रेस के साथ का कोई फायदा ना मिलना सबको दिख रहा है. दिल्ली चुनाव में वह सिर्फ 22 सीटें जीत सकी जबकि पहले वह 60 से अधिक सीटें जीतती रही थी. केजरीवाल सिसोदिया जैसे नेता अपनी सीटें हार बैठे. आप ने इस हार के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया.
उधर हरियाणा चुनाव में तो आप और कांग्रेस दोनों ने एक दूसरे पर जमकर आरोप लगाए. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना ही कि उसी समय आप अनौपचारिक रूप से गठबंधन से अलग हो गई थी. आप का बयान औपचारिकता मात्र है. असल में सच यह है कि आप की नजर अब उन राज्यों पर है जहां वह कांग्रेस को वह चुनौती देने की स्थिति में है. जैसे पंजाब, गुजरात और दिल्ली.
पार्टी की नजर कहां है?
पंजाब में पार्टी की सरकार है और हाल में लुधियाना वेस्ट उपचुनाव में कांग्रेस को हराया. वहीं गुजरात के विसावदर में भी आप ने बीजेपी को पटखनी दी. ऐसे नतीजों से केजरीवाल की टीम को लगता है कि अकेले लड़ने से वह खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित कर सकती है. यह बात सही भी लगती है कि आप कांग्रेस के लिए ज्यादा चुनौती वाली बात है.
गेमप्लान अब क्लियर है
उधर विपक्ष के नजरिए से देखें तो विपक्षी एकता के लिए यह चुनौती है कि आप ने साथ छोड़ दिया. आप ने भले कहा हो कि वो TMC और DMK के साथ रहेंगे लेकिन कांग्रेस से दूरी विपक्षी मोर्चे को नुकसान पहुंचाएगी. हालांकि आप ने यह जरूर कहा कि वह संसद में केंद्र की नीतियों का विरोध करती रहेगी. लेकिन आप का गेमप्लान अब क्लियर है कि वह कांग्रेस से खुद को अलग करके अपनी चुनावी जमीन को फिर से पक्का करना चाहती है. खासकर वहां जहां कांग्रेस को वह कमजोर करती जा रही है. पंजाब और गुजरात इसके सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं.