Explainer: सावन के महीने में दो देशों के बीच शिव मंदिर को लेकर लड़ाई, समझिए पूरा माजरा
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Explainer: सावन के महीने में दो देशों के बीच शिव मंदिर को लेकर लड़ाई, समझिए पूरा माजरा

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच ऐतिहासिक रूप से सीमा विवाद रहा है. साथ ही दोनों सीमा पर पड़ने वाले मंदिरों पर अधिकार को लेकर भी लड़ते रहे हैं.

Explainer: सावन के महीने में दो देशों के बीच शिव मंदिर को लेकर लड़ाई, समझिए पूरा माजरा

शिव सत्य हैं. शिव सुंदर हैं. शिव हैं तो शांति है. सावन के इस महीने में जब हर तरफ शिव की पूजा हो रही है और बोल बम के जयकारे लग रहे हैं, भारत से करीब 5 हजार किलोमीटर दूर दो पड़ोसी देश शिव के नाम पर युद्ध कर रहे हैं. सुनने में अटपटा भले लगे लेकिन ये सच है. थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक बार फिर लड़ाई की शुरुआत हो गई है और इसकी वजह है एक शिव मंदिर. इस मंदिर को लेकर पहले भी दोनों देश गुत्थमगुत्था हो चुके हैं. ताजा झड़प की शुरुआत 23 जुलाई को एक बारूदी सुरंग विस्फोट के बाद हुई, जिसमें थाईलैंड के पांच सैनिक घायल हो गए. इस घटना के बाद दोनों पक्षों ने अपने राजदूतों को निष्कासित कर दिया, जिससे तनाव काफी बढ़ गया. कंबोडिया ने कहा कि ये विस्फोट पुरानी बारूदी सुरंगों के कारण हुए. गुरुवार को झड़पों के बाद स्थिति और बिगड़ गई. कंबोडिया ने थाईलैंड पर रॉकेट से हमला किया, जिससे प्रेह विहियर और ता मुएन थोम मंदिरों के पास तबाही मची. 12 से ज्यादा लोग मारे गए, करीब 40,000 विस्थापित हुए और ऐतिहासिक मंदिर को नुकसान हुआ. थाईलैंड ने F-16 जेट्स से जवाबी हमले किए.

प्रेह विहियर मंदिर को लेकर विवाद

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच ऐतिहासिक रूप से सीमा विवाद रहा है. साथ ही दोनों सीमा पर पड़ने वाले मंदिरों पर अधिकार को लेकर भी लड़ते रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख प्रेह विहियर मंदिर है. इस मंदिर में शिवलिंग, नंदी और शिव से जुड़े अन्य प्रतीक प्रमुखता से देखे जा सकते हैं. थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 817 किलोमीटर लंबी सीमा है. इस सीमा का निर्धारण फ्रांस ने किया था. 1863 से लेकर 1963 तक कंबोडिया पर फ्रांस का कब्जा था. 1907 के सीमा निर्धारण में प्रेह विहियर मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा बताया गया जिसे थाईलैंड ने मानने से इनकार कर दिया था.

1907 के सीमा निर्धारण से उलझा मामला

दरअसल 1904 में थाईलैंड (तब सियाम) और फ्रांसीसी कंबोडिया ने अपनी सीमा रेखा निर्धारित करने के लिए एक संयुक्त आयोग का गठन किया था. इस आयोग ने डोंगरेक पर्वत श्रृंखला की जलविभाजन रेखा को सीमा रेखा के रूप में स्वीकार किया. इस व्यवस्था में अधिकांश प्रेह विहियर मंदिर थाईलैंड की ओर आता था. हालांकि, 1907 में तैयार किए गए मानचित्र में मंदिर को कंबोडिया के क्षेत्र में दिखाया गया, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ. यह मंदिर 11-12वीं सदी में बना था जो भगवान शिव को समर्पित है. मंदिर में 800 सीढ़ियां हैं और इसे यूनेस्को की हेरिटेज साइट में शामिल किया गया है. 

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुंचा मामला

मंदिर पर अधिकार को लेकर थाईलैंड के भारी विरोध के बाद 1959 में कंबोडिया इंटरनेशनल कोर्ट पहुंचा. इंटरनेशनल कोर्ट ने 1962 में कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन मंदिर के आसपास की 4.6 वर्ग किमी जमीन को लेकर कुछ नहीं कहा. थाईलैंड अब मंदिर के आसपास के इलाकों को लेकर अड़ गया. 2008 में कंबोडिया ने प्रेह विहियर मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में पंजीकरण कराने का प्रयास किया तो फिर विवाद शुरू हो गया. यूनेस्को ने मंदिर को अपनी हेरिटेज लिस्ट में शामिल कर लिया. इसके बाद थाईलैंड को लगने लगा कि एक ऐतिहासिक धरोहर उसके हाथ से निकल रही है और दोनों देशों का तनाव फिर से बढ़ गया. 2011 तक सीमा पर संघर्ष चलता रहा जिसके चलते बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित हुए.

फैसले के बाद भी तनाव

इसके बाद कंबोडिया फिर इंटरनेशनल कोर्ट की शरण में पहुंचा. उसने मंदिर के आसपास वाली जमीन पर अधिकार को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की. नवंबर 2013 में इंटरनेशनल कोर्ट ने फैसला दिया कि मंदिर के आसपास वाली जमीन पर भी कंबोडिया का अधिकार होना चाहिए. कोर्ट के फैसले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव था, लेकिन हालात शांतिपूर्ण बने हुए थे. इस साल मई के अंत में दोनों देशों की सेना फिर आमने-सामने आ गईं. झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई.

प्रधानमंत्री की गई कुर्सी

बढ़ते तनाव के बीच थाईलैंड की तत्कालीन प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनवात्रा ने तनाव कम करने के लिए कंबोडिया के नेता हुन सेन से फोन पर बात की. हुन सेन कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के पिता हैं. पैतोंगटार्न के पिता और थाईलैंड के पूर्व पीएम ताक्सिन शिनवात्रा, मानेट के अच्छे दोस्त हैं. फोन कॉल के दौरान पैंतोगटार्न ने हुन सेन को अंकल कहकर संबोधित किया. बातचीत के दौरान वो अपने देश के कुछ सैन्य अधिकारियों की आलोचना करती दिखीं. इस फोन कॉल के लीक होने से थाईलैंड में शिनवात्रा के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए. 1 जुलाई को शिनवात्रा को पद से निलंबित कर दिया गया.

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