Explained: पीर पंजाल के घने जंगलों में कैसे और कहां छिपे आतंकी, पहलगाम के गुनहगारों को ढेर करना कितनी बड़ी चुनौती
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Explained: पीर पंजाल के घने जंगलों में कैसे और कहां छिपे आतंकी, पहलगाम के गुनहगारों को ढेर करना कितनी बड़ी चुनौती

पहलगाम हमले के बाद सीमापार से हो रही घुसपैठ और आतंकवादियों के अड्डों को नेस्तनाबूद करने की मांग जोर पकड़ रही है. लेकिन जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल की पहाड़ियों के घने जंगलों में आतंकियों की खोज आसान काम नहीं है.

Pahalgam Terror Attack
Pahalgam Terror Attack

पहलगाम हमले के बाद सीमापार से हो रही घुसपैठ और आतंकवादियों के अड्डों को नेस्तनाबूद करने की मांग जोर पकड़ रही है. लेकिन जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल की पहाड़ियों के घने जंगलों में आतंकियों की खोज आसान काम नहीं है. इसके लिए घुसपैठ रोकने के मजबूत नेटवर्क की जरूरत भी है. बैसरन घाटी, जहां 26 पर्यटकों को आतंकवादियों ने मार डाला था, वो पहलगाम से छह किलोमीटर दूर है और वहां पैदल या खच्चर से ही जाया जा सकता है. घास के इस मैदान के चारों ओर पीर पंजाल पर्वत के घने जंगलों का इलाका है, जो कोकेरनाग से किश्तवाड़ से बालटाल से लेकर सोनमर्ग तक फैला है.   

पीर पंजाल पर्वत शृंखला के चारों ओर घने जंगल
बताया जाता है कि पहलगाम में खूनखराबे के बाद आतंकी पीर पंजाल पर्वत शृंखला के घने जंगलों की ओर भाग गए, यहां सैकड़ों किलोमीटर में ऊंचे-नीचे पहाड़ों के बीच घने पेड़ हैं, जहां 100 मीटर दूरी तक देखना भी मुमकिन नहीं है. यहां संदिग्ध आतंकियों की धरपकड़ अत्याधुनिक तकनीक और स्थानीय लोगों से मिले सुराग के बिना संभव नहीं है. भारत और पाकिस्तान के बीच 3300 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसमें करीब हजार किमी जम्मू-कश्मीर है.

सुरक्षा न होने की जानकारी
आतंकवादियों को संभवत: जानकारी थी कि पहलगाम के निकट बैसरन घाटी में सुरक्षा नहीं होती है. CCTV कैमरे भी लगाए नहीं गए हैं. यहां से पांच किलोमीटर दूरी पर CRPF कैंप है. वहां से जवानों के पहुंचने में 30 मिनट कम से कम वक्त लगता है.​​​​बैसरन तक सिर्फ पैदल-घोड़े और ATV बाइक जाती हैं. सुरक्षाबलों के आने से पहले आतंकवादी जंगल की ओर भाग निकले. बैसरन दो ओर से पीर पंजाल पहाड़ से घिरा जंगल है. त्राल का जंगल आतंकियों के लिए पनाहगाह माना जाता है. संभावना है कि आतंकवादी बैसरन घाटी में आए होंगे.

सर्च ऑपरेशन कठिन चुनौती
इन जंगलों में आतंकियों के तलाशी अभियान के दौरान यहां सशस्त्र बलों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा है. पुंछ, राजौरी, कठुआ और डोजा क्षेत्र में ऐसे सर्च ऑपरेशन और एनकाउंटर के दौरान करीब 50 जवान शहीद हुए हैं. शायद यही वजह है कि पाकिस्तान ऐसे खूंखार और ऐसे गुरिल्ला लड़ाई में माहिर आतंकियों को अत्याधुनिक संचार उपकरणों के साथ आतंकी हमलों के लिए भेजता है, जिन्हें खोजकर ढेर करना मुश्किल है.बताया जाता है कि पहलगाम में भी करीब तीन विदेशी आतंकी शामिल हैं.

घुसपैठ रोकने को मजबूत नेटवर्क की जरूरत
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, आतंकवाद पर पूरी तरह लगाम लगाने के लिए घुसपैठ रोकने के मजबूत नेटवर्क की जरूरत है, ताकि सीमा पार करते ही उन्हें टारगेट किया जा सके. इसमें ऐसी बाड़ जो लांघी न जा सके, मजबूत इंटेलीजेंस नेटवर्क और सीमावर्ती इलाकों में निगरानी करने वाले तेजतर्रार  जवानों की दरकार है.घाटी में अब स्थानीय आतंकियों की भागीदारी काफी कम है. पिछले साल आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान जो 63 आतंकी मारे गए, उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा विदेशी थे.

बाड़बंदी से घुसपैठ में आई कमी
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीमा पर बाड़बंदी की रफ्तार 2003 में संघर्षविराम के बाद तेज हुई. घुसपैठ की अब 20 फीसदी कोशिशें ही सफल हो पाती हैं. पहले बड़े पैमाने पर घुसपैठ के प्रयास होते हैं और इनकी संख्या सैकड़ों से भी कम है.एलओसी पर अब पूरी तरह से बाड़ लगाई जा चुकी है. लेकिन तकनीकी नेटवर्क के जरिये जम्मू क्षेत्र में बाड़ को और मजबूत बनाने की जरूरत है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में पठानकोट हमले के बाद जो कंप्रिहेंसिव इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम लांच किया गया था. इसके तहत निगरानी के अत्याधुनिक उपकरण और टेक्नोलॉजी जैसे थर्मल इमेजर्स, इन्फ्रारेड और लेजर अलॉर्म, हवाई निगरानी वाले उपकरण, जमीन पर मौजूद सेंसर, रडार-सोनार सिस्टम और ऑप्टिकल फायबर सेंसर शामिल हैं. कंट्रोल रूम से इनकी रियल टाइम निगरानी की जा सकती है.  

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बॉर्डर 2025 तक सील हो सकेगा
बॉर्डर को दिसंबर 2025 तक पूरी तरह सील किया जा सकता है. इसमें नदियों, खाईं जैसे इलाकों में मजबूत निगरानी ग्रिड बनाने की चुनौती भी है.बर्फबारी के दौरान घाटी के ऊंचे इलाकों में 15 फीट तक बर्फ जमा हो जाती है. हर साल एक तिहाई बाड़ इस कारण खराब हो जाती है. खंबे गिर जाते हैं और तार टूट जाते हैं और कई महीनों तक उनकी मरम्मत करना मुश्किल होता है.ऊंचे-नीचे इलाकों में इनकी मरम्मत भी आसान नहीं है.प्रशिक्षित आतंकी तीन लेयर वाली ऐसी बाड़ को काटने में माहिर होते हैं. एलओसी पर 24 घंटे निगरानी के लिए बड़े पैमाने पर सैनिकों की जरूरत पड़ेगी. रात में देख सकने वाले चश्मे भी ज्यादा दिनों तक नहीं चलते.लिहाजा स्मार्ट फेंसिंग की जरूरत है, जो सेंसर से लैस हो, यानी उसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ के साथ ही अलर्ट चला जाए. 

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