Raxaul Assembly Seat: रक्सौल विधानसभा सीट पर रहा है BJP का दबदबा, 2025 में कैसा रहेगा समीकरण? समझिए
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Raxaul Assembly Seat: रक्सौल विधानसभा सीट पर रहा है BJP का दबदबा, 2025 में कैसा रहेगा समीकरण? समझिए

Raxaul Assembly Seat: रक्सौल विधानसभा सीट पिछले तीन दशकों से भाजपा का मजबूत गढ़ रही है. ऐसे में इस बार यहां का सियासी समीकरण कैसा है. समझिए इस खबर में.

रक्सौल विधानसभा सीट
रक्सौल विधानसभा सीट

Raxaul Assembly Seat: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, पूर्वी चंपारण की रक्सौल विधानसभा सीट राजनीतिक दलों के लिए खास महत्व रखती जा रही है. यह सीट पिछले तीन दशकों से भाजपा का मजबूत गढ़ रही है. वर्तमान में यहां से भाजपा विधायक प्रमोद कुमार सिन्हा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिन्होंने 2020 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार जनता के जमीनी मुद्दों और नाराज़गी के कारण मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है.

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जनता के जमीनी मुद्दे और मांगें
रक्सौल में विकास को लेकर महिला कॉलेज की स्थापना, ट्रामा सेंटर, ग्रीन पार्क एवं स्टेडियम, ओवरब्रिज व एयरपोर्ट, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, बॉर्डर पर अहिंसा द्वार और सूर्य मंदिर का सौंदर्यकरण जैसी माँगें वर्षों से लंबित हैं. शहर की पहचान बन चुका सूर्य मंदिर भी अब सुविधाओं और सौंदर्यीकरण की बाट जोह रहा है. स्थानीय लोगों की शिकायत है कि सरिसवा नदी की गंदगी, जलजमाव, और सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी जैसी समस्याएं उन्हें सालों से झेलनी पड़ रही हैं.

प्रमुख उम्मीदवार और सियासी समीकरण
इस बार चुनावी मैदान में भाजपा से फिर से प्रमोद कुमार सिन्हा ताल ठोक सकते हैं, लेकिन राजद से रामबाबू यादव व सुरेश यादव, कांग्रेस से अखलेश दयाल, और जन सुराज से पूर्णिमा भारती जैसे चेहरे भी मुकाबले को त्रिकोणीय या चतुर्थकोणीय बना सकते हैं. इसके अलावा भाजपा और राजद से टिकट के बागी उम्मीदवार भी समीकरण को बिगाड़ सकते हैं.

जातीय समीकरण और वोटर बेस
रक्सौल विधानसभा में जातीय समीकरण इस बार भी निर्णायक होंगे. यहां ओबीसी वर्ग 53%, मुस्लिम 22.5%, दलित 10%, स्वर्ण 7%, और अन्य जातियाँ 7.5% हैं. कुल 2,94,835 मतदाता हैं, जिनमें पुरुष 1,56,801, महिला 1,38,021, और थर्ड जेंडर 13 वोटर शामिल हैं. रक्सौल की राजनीति इस बार सिर्फ दल और प्रत्याशियों की नहीं बल्कि स्थानीय मुद्दों की राजनीति पर टिकी है. एक ओर भाजपा को अपनी पुरानी पकड़ बनाए रखने की चुनौती है, तो दूसरी ओर विपक्षी दल विकास के अधूरे वादों और मुद्दों को लेकर जनता को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि रक्सौल की जनता इस बार किसे अपने विश्वास का जनादेश देती है, पारंपरिक पार्टी को या नए विकल्प को.

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