Motihari News: पटना में ‘डॉग बाबू’ के नाम पर फर्जी निवास प्रमाण पत्र के बाद, अब मोतिहारी में भी ऐसा ही सनसनीखेज मामला सामने आया है. वहां ‘सोनालिका ट्रैक्टर’ के नाम से निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया गया है. ज्यादा जानकारी के लिए खबर को विस्तार से जरूर पढ़ें.
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Motihari News: बिहार की राजधानी पटना में ‘डॉग बाबू’ के नाम पर फर्जी निवास प्रमाण पत्र बनने के बाद अब मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) से भी एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है. इस बार निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदक ने खुद को 'सोनालिका ट्रैक्टर' नाम से पेश किया है. दिलचस्प बात यह है कि आवेदन में भोजपुरी अभिनेत्री मोनालिसा की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है. पिता और माता के नाम भी अजीबोगरीब हैं. आवेदन में पिता का नाम 'स्वराज ट्रैक्टर' और माता का नाम 'कार देवी' बताया गया, जिससे यह पूरा आवेदन संदिग्ध दिखाई देता है.
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यही वजह है कि जैसे ही यह आवेदन कोटवा अंचल कार्यालय में आया, वैसे ही अधिकारियों में हड़कंप मच गया. प्रारंभिक सत्यापन जांच में यह स्पष्ट हो गया कि यह आवेदन नकली दस्तावेज़ों, मनगढ़ंत जानकारी और गलत डेटा उपयोग के आधार पर तैयार किया गया है. अंचलाधिकारी ने तत्काल इस पूरे मामले की सूचना पुलिस को दी, साइबर फ्रॉड और सरकारी दस्तावेजों में छेड़‑छाड़ के आरोप में कोटवा थाने में 'अज्ञात आवेदक' के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज कर ली गई है.
क्या आवेदक की पहचान हुई?
फिलहाल इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि आवेदनकर्ता की पहचान हुई या नहीं. जांच अधिकारी अब आईपी (IP) एड्रेस ट्रैकिंग और अन्य डिजिटल फोरेंसिक तकनीकों का उपयोग कर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऑनलाइन आवेदन किस माध्यम से जमा हुआ था, कहां से किया गया था, और किस नेटवर्क या उपकरण से इससे जुड़े लॉग उत्पन्न हुए. ऐसे अगर आईपी ट्रैकिंग से संदिग्ध नेटवर्क लोकेशन, टाइमस्टैम्प या किसी विशिष्ट स्थान या व्यक्ति से सम्बद्ध लोकेशन का पता चलता है, तो आगे पहचान संभव हो सकती है.
वहीं इस मामले में जिलाधिकारी सौरभ जोरवाल ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा है कि इसमें शामिल सभी कर्मचारियों और डेटा ऑपरेटरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. चाहे वे आवेदन दर्ज करने वाले हों या सत्यापन प्रक्रिया में जिम्मेदार. जिलाधिकारी ने दावा किया है कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कार्रवाई की जाएगी.
बताते चलें कि इस पूरे घटनाक्रम ने दस्तावेज़ सत्यापन प्रक्रिया की खामियों को गंभीर रूप से उजागर किया है. चाहे वह ऑनलाइन पोर्टल सिस्टम की उपयुक्तता की कमी हो, दस्तावेजों का असल समय में क्रॉस-वेरिफिकेशन न होना हो, या डेटा एंट्री करने वाले अधिकारी की लापरवाही हो. हालांकि, अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि दोषियों को पकड़ने में प्रशासन कितनी पारदर्शिता बरतता है. आवेदक को चिन्हित किया जा सकेका या नही?
इनपुट- पंकज कुमार
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