Bihar Caste Census: जातीय जनगणना के बाद मुसलमानों की जातियों के बारे में आम तौर पर जानकारियां सावर्जनिक हो सकती है. जाति व्यवस्था तो मुसलमानों में पहले से है, लेकिन कभी इसे जाहिर नहीं किया गया और राजनीतिक रूप से अगड़े मुसलमानों के लिए यह बेहद मुफीद साबित होता रहा.
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Caste Census Bihar: बिहार के जातीय सर्वे की तर्ज पर पूरे देश में अब मोदी सरकार जातीय जनगणना कराने जा रही है. केंद्रीय कैबिनेट में इसे मंजूरी मिल गई है. अब खबर आ रही है कि जातीय जनगणना में मुसलमानों की भी जाति की गिनती होगी. अभी तक यह धारणा बनाई गई थी कि जातिगत आधार पर विभाजन केवल हिंदुओं में है, मुसलमानों में नहीं, लेकिन अब मुसलमानों की भी जातीय जनगणना होने से यह धारणा टूट सकती है. आम तौर पर पूरे देश की तरह बिहार में भी 3 तरह के मुसलमान निवास करते हैं: अशरफ, अजलाफ और अरजाल. इनमें अशरफ अगले मुसलमान माने जाते हैं और अजलाफ और अरजाल पिछड़े. अगड़े मुसलमानों यानी कि अशरफ में सैयद, शेख और पठान आते हैं.
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बिहार में 2 साल पहले हुए जातीय सर्वे के मुताबिक, राज्य में मुसलमानों की संख्या 17.7 प्रतिशत है. इनमें से केवल 4 प्रतिशत आबादी अगड़े मुसलमानों की है और बाकी पिछड़े यानी पसमांदा और दलित मुसलमानों की है. अगड़ी जाति के मुसलमानों में सर्वाधिक 3.8 प्रतिशत शेख मुसलमान हैं. 0.7548 प्रतिशत पठान और 0.2279 प्रतिशत सैयद हैं. बाकी मुसलमान पसमांदा और दलित माने जाते हैं.
पिछड़े मुसलमानों की बात करें तो अंसारी, मदरिया, नालबंद, सुरजापुरी और मलिक आते हैं. पिछड़े मुसलमानों में सबसे अधिक आबादी मोमिन अंसारी की मानी जाती है. सुरजापुरी मुसलमान आबादी के मामले में दूसरे नंबर पर आते हैं.
पिछड़े और दलित मुसलमान
चिक मुसलमान: 0.0386%
कसाई मुसलमान: 0.1024%
डफाली मुसलमान: 0.056%
धुनिया मुसलमान: 1.4291%
नट मुसलमान: 0.0471%
पमरिया मुसलमान: 0.0496%
भटियारा मुसलमान: 0.0209%
भाट मुसलमान: 0.0681%
मेहतर मुसलमान: 0.0535%
कुल्हैया मुसलमान: 0.9591%
जाट मुसलमान: 0.0344%
धोबी मुसलमान: 0.3135%
सेखदा मुसलमान: 0.1904%
गद्दी मुसलमान: 0.0441%
लालबेगी मुसलमान: 0.0021 %
हलालखोर मुसलमान: 0.0058%
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पिछले कुछ समय से बुलंद होने लगी थी आवाज
10 साल में एक बार होने वाली जनगणना में इस बार काफी विलंब हो गया है. अब इसकी प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है. 2021 में जनगणना प्रस्तावित थी, लेकिन तब कोरोना कहर बरपा रहा था. अब चूंकि कैबिनेट से प्रस्ताव पारित हो गया है, लिहाजा इसके निकट भविष्य में होने की संभावना प्रबल हो गई है. भारत में पिछले कुछ समय से जातिगत जनगणना को लेकर आवाज बुलंद की जा रही थी. शुरुआत नीतीश कुमार की सरकार ने की और बिहार में इस तरह का एक सर्वे सकुशल संपन्न भी करवा लिया गया. उसके बाद राहुल गांधी ने देशव्यापी जातिगत जनगणना की आवाज बुलंद की थी. बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस पर अपनी हामी भर दी थी. खास बात यह है कि जिस दिन जातिगत जनगणना को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी, उसके एक दिन पहले शाम को संघ प्रमुख मोहन भागवत प्रधानमंत्री के आवास पर मिलने पहुंचे थे.
भाजपा को डर, बिखर सकता है हिन्दू वोट बैंक
हरियाणा विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने नारा दिया था, बंटेंगे तो कटेंगे. तब बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के उत्पात की खबरें सुर्खियां बन रही थीं. भाजपा आम तौर पर बहुसंख्यक वाली राजनीति करती है और उसे डर रहता है कि जातिगत जनगणना कराने से उसका धर्म आधारित वोटर जातियों में बंटकर टूट सकता है. इसलिए पार्टी अभी तक इससे इनकार करती आ रही थी. अब चूंकि मोदी सरकार ने इसे मंजूरी दे दी है, लिहाजा अपने वोटबैंक को टूटने से बचाने के बारे में पार्टी ने सोच रखा होगा.
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जातियों में बंट सकते हैं मुसलमान
जातिगत जनगणना होगी तो हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमानों की भी जातियां गिनी जाएंगी. इससे बहुत संभव है कि मुसलमान एकमुश्त वोटर नहीं रह सकेंगे, क्योंकि कम संख्या होने के बाद भी अगड़े मुसलमान सबसे अधिक लाभान्वित होते आ रहे हैं और पिछड़े और दलित मुसलमानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. इस बारे में सरकार पिछड़े और दलित मुसलमानों के बीच जागरूकता कार्यक्रम भी चला सकती है. आम मुसलमानों के दबाव में उन्हें भी समाज के हर क्षेत्र में आगे आने का मौका मिल सकता है.