Bihar Voter List SIR: बिहार SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज (बुधवार, 13 अगस्त) फिर सुनवाई हुई. आज की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने लालबाबू हुसैन केस का जिक्र भी किया. अब सवाल यह है कि लाल बाबू हुसैन में क्या हुआ था?
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What Is Lalbabu Hussain Case: बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज (बुधवार, 13 अगस्त) भी सुनवाई हुई. इस दौरान चुनाव आयोग और याचिकाकर्ताओं के वकीलों के बीच जबरदस्त बहस देखने को मिली. याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से यह माना गया है कि एसआईआर में 65 लाख नाम काटे गए हैं. ये 65 लाख वे हैं, जिन्हें बिना किसी प्रक्रिया के मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया है. सिंघवी ने कहा कि एसआईआर में चुनाव आयोग ने मनमर्जी चलाई है. उसने घोषित कर दिया कि एक्स लाख वोटर मृत हैं. y लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं या अनुपस्थित हैं और लगभग 7 लाख पहले से ही कहीं और पर वोटर हैं. सिंघवी ने कोर्ट में लालबाबू हुसैन केस का जिक्र भी किया. अब सवाल यह है कि लाल बाबू हुसैन में क्या हुआ था?
लाल बाबू हुसैन केस 1995 का है. चुनाव आयोग ने नागरिकता के आधार पर मतदाता सूची से उनका नाम काट दिया था. इसके खिलाफ उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. निचली और हाई कोर्ट से उनकी याचिका खारिज हो गई थी. इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के आदेश पलट दिए थे. सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता सूची से नामों की पहचान करने और उन्हें हटाने में चुनाव आयोग और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रियात्मक व्यवस्था की गहन समीक्षा की और चुनावी पात्रता के लिए नागरिकता सत्यापन में उचित प्रक्रिया और पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया.
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इस मामले कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश जारी करते हुए यह अनिवार्य किया था कि किसी मतदाता का नाम हटाने की किसी भी कार्रवाई से पहले पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने चाहिए और प्रभावित व्यक्तियों को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिए. कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के महत्व पर जोर देते कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रक्रिया न केवल प्रक्रियात्मक रूप से सुदृढ़ हो, बल्कि मूल रूप से निष्पक्ष भी हो. इस फैसले में प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों, खासकर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324, 325, 326, 327 और 328 का हवाला दिया गया, जो मतदाता सूची और चुनावों के संबंध में चुनाव आयोग की शक्तियों और जिम्मेदारियों को रेखांकित करते हैं.
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