Bihar Politics: लालू यादव ने सोमवार (23 जून) को 13वीं बार राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भर दिया है. सियासी जानकारों के मुताबिक, लालू अभी अपने लाडले बेटे तेजस्वी यादव को कांटों भरा ताज देना नहीं चाहते हैं.
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RJD Politics: बिहार की राजनीति में सोमवार (23 जून) का दिन बड़ा अहम रहा. लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को 13वीं बार राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन किया. उनके खिलाफ किसी ने भी नामांकन दाखिल नहीं किया है, इससे लालू यादव का निर्विरोध रुप से राजद अध्यक्ष चुना जाना तय है. लालू यादव 13वीं बार पार्टी की कमान संभालेंगे. उनके इस कदम से साफ हो गया है कि राजद की कमान अभी किसी और के हाथों में नहीं जाने वाली है. बता दें कि लालू यादव ने 1997 में राजद की स्थापना की थी और तब से लेकर अब तक वही राजद अध्यक्ष के पद पर बने हुए हैं. खास बात ये है कि लालू यादव हर बार निर्विरोध रूप से ही राजद अध्यक्ष चुने जाते हैं.
लालू यादव की सेहत को लेकर इस बार अटकलें लगाई जा रही थी कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का छोड़ सकते हैं. अटकलें लगाई जा रही थीं कि अब तेजस्वी यादव को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बातें चल रही थीं. लेकिन लालू यादव आज ही अपना नामांकन दाखिल करके उन्होंने साफ कर दिया कि वह पार्टी की बागडोर अभी छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इसको लेकर सियासत शुरू हो गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक ने तंज कसते हुए कहा कि पार्टी की कमांड अभी भी छोटे नवीं के सितारे को नहीं देना चाहते, क्योंकि डर है कि दारा शिकोह और औरंगजेब वाला किस्सा घर में न हो जाए.
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सियासी जानकारों के मुताबिक, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी की कमान छोड़ने से कोर वोटर (यादव और मुस्लिम) बिखर सकता है. वहीं लालू यादव ने हाल ही में अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से निकाला है. लालू यादव अगर राजद की कमान छोड़ देते तो तेज प्रताप पार्टी तोड़ सकते थे और उन्हें ऐसा करने में ज्यादा दिक्कत भी नहीं होती. इसी बात की तरह अजय आलोक ने इशारा किया है. वहीं महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी अभी भी तेजस्वी यादव को नेता मानने को तैयार नहीं है. सियासी जानकारों का कहना है कि लालू फिलहाल यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पार्टी और गठबंधन में तेजस्वी को कोई दिक्कत ना हो. दूसरी ओर चुनावी साल में तेजस्वी को पार्टी की बागडोर सौंपने पर बीजेपी इसे ‘वंशवाद’ का मुद्दा बनाकर हमला करती. यही वजह है कि लालू ने अपने लाडले बेटे को कांटों भरा ताज देना उचित नहीं समझा.
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