Feeding Pigeons: क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो सड़कों या सार्वजनिक जगहों पर कबूतरों को दाना डालते हैं? तो ये खबर आपके लिए है. अब ऐसा करने पर आप कानूनी पचड़े में पड़ सकते हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कबूतरों को दाना डालने वालों को कड़ी फटकार लगाई है और सख्त हिदायत भी दी है.
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Bombay high court: पक्षियों को खाना खिलाना, पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता है, लेकिन अगर आप सड़कों या पब्लिक पैलेस पर कबूतरों को दाना डालते हैं, तो यह अब आपको मुश्किल में डाल सकता है. हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने इसे सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) और स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया है. कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि, 'इस तरह के काम हमारे स्पष्ट मत में सार्वजनिक उपद्रव के अंतर्गत आते हैं और इससे बीमारियां फैलने का खतरा रहता है, जो मानव जीवन के लिए खतरा बन सकता है.'
जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने यह टिप्पणी तब की जब पशु अधिकार कार्यकर्ता पल्लवी पाटिल, स्नेहा विसारिया और सविता महाजन द्वारा एक पिटीशन दायर की गई थी. अदालत ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को निर्देश दिया है कि वह दादर (पश्चिम) और अन्य कबूतरखानों में कबूतरों को दाना डालने वालों के खिलाफ FIR दर्ज करे.
वहीं, अदालत इस बात पर नाराज थी कि नीति में कबूतरों को खाना खिलाने पर रोक लगाने और हाईकोर्ट द्वारा अपने पूर्व आदेशों में अंतरिम राहत देने से इनकार करने के बावजूद कबूतरों को खाना खिलाना जारी रहा. अदालत ने आदेश पारित करते हुए कहा, 'अब यह स्थिति कानून के प्रति घोर उपेक्षा की उभरती स्थिति से और भी जटिल हो गई है, जो हमारे पहले के आदेश के बावजूद कबूतरों को दाना डालना जारी रखे हुए हैं, जिसमें कबूतरों को दाना डालने और उनके एकत्र होने के समर्थन में दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था और अब नागरिक अधिकारियों को इस संबंध में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोका जा रहा है.'
कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पक्षियों को भीड़ की वजह से ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को संक्रमण और अन्य हेल्थ कॉम्प्लिकेशन का खतरा हो सकता है. जबकि अदालत ने इस महीने की शुरुआत में बीएमसी को महानगर में किसी भी विरासत वाले 'कबूतरखाने' (कबूतरों को दाना डालने की जगह ) को ध्वस्त करने से रोक दिया था. हालांकि, कबूतरों को दाना डालने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था.
यह मामला पशु प्रेमियों द्वारा बीएमसी द्वारा कबूतरखानों को गिराए जाने को चुनौती देने वाली याचिका से पैदा हुआ था. इसमें तर्क दिया गया था कि यह कदम पशु क्रूरता निवारण अधिनियम ( Prevention of Cruelty to Animals Act ) का उल्लंघन है. हालांकि, अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा, 'कबूतरों के इस तरह के अनियंत्रित और गैरकानूनी जमावड़े के कारण इंसानों के हेल्थ की सुरक्षा और प्रभुत्व से समझौता नहीं किया जा सकता है.'