मालेगांव ब्लास्ट में सीएम योगी को फंसाने की थी साजिश? पूर्व जांच अधिकारी ने खोला राज
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मालेगांव ब्लास्ट में सीएम योगी को फंसाने की थी साजिश? पूर्व जांच अधिकारी ने खोला राज

DNA: ट्रंप की डेड इकोनॉमी वाले बयान का समर्थन करने वाले राहुल गांधी ने आज कहा कि उनके पास एटम बम है और ये जल्द ही फूटेगा. लेकिन DNA में अब राहुल के एटम बम के साथ उन तीन एटम बम के सियासी धमाके का विश्लेषण करेंगे. जिनसे सबसे ज्यादा नुकसान की आशंका. राहुल गांधी की पार्टी को ही है.

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Malegaon Blast Verdict: मालेगांव केस की जांच में शामिल रहे पूर्व ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने दावा किया कि उन्हें मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था. इस केस में गवाह रहे मिलिंद जोशी ने जी न्यूज से बातचीत में ये खुलासा किया कि उन्हें मालेगांव ब्लास्ट में योगी आदित्यनाथ को फंसाने के लिए कहा गया था और इन सबके बीच तीसरा सियासी एटम बम कांग्रेस के बड़े नेता और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने ये कहकर फोड़ा कि भगवा नहीं हिंदू आतंकवाद कहा जाए.

तो क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत कांग्रेस सरकार के टारगेट पर थे? यूपी के सीएम को भी मालेगांव धमाकों की आंच में झोंकने का बंदोबस्त तब की सरकार ने कर लिया था? ये दो सिर्फ सवाल नहीं हैं. एक ऐसा खुलासा है, जिसने पूरे देश को सन्नाटे में ला दिया है. साथ ही, चिंता में डाल दिया है कि राजनीति की आखिर हद क्या है? 

आज आपको ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसा था, तो इसके पीछे तब की सरकार, उसकी एजेंसियों और कांग्रेस का इरादा क्या था? क्यों हिन्दुत्व के दो प्रखर चेहरे उनके टारगेट पर थे? इससे किसको क्या हासिल होने वाला था? ऐसा होता तो तब देश की इस पर क्या प्रतिक्रिया होती? यही नहीं...कांग्रेस आखिर आज भी हिन्दू और हिन्दुत्व को बार-बार आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश में क्यों है?

आज आप संघ प्रमुख मोहन भागवत और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर हुए इस खुलासे का इसका संपूर्ण विश्लेषण जानेंगे. परत-दर-परत हम आज की इस सबसे बड़ी खबर को समझने की कोशिश करेंगे. क्योंकि पूरे देश के लिए ये जानना और समझना जरूरी है कि जिन्हें हिन्दुत्व और हिन्दू से नफरत है उनका आखिर इरादा क्या है और ऐसा क्यों है?

7 चेहरे जिन्होंने बिना गुनाह के 17 साल का संत्रास झेला

17 साल की बदनामी को ढोया. साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत ये 7 चेहरे शायद आसान टारगेट थे. इसलिए इन्हें मालेगांव ब्लास्ट की आग में झोंक दिया गया. आखिरकार इंसाफ आया, न्याय हुआ. सभी बरी हो गए. लेकिन अभी असली खबर आनी बाकी थी.

मालेगांव केस की जांच में शामिल रहे पूर्व ATS अधिकारी महबूब मुजावर का कहना है कि उन्हें मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था. जी हां, मालेगांव केस में मोहन भागवत की गिरफ्तारी की तैयारी थी. यही नहीं, आदेश का पालन न करने पर मुजावर के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कर उनका करियर ही बर्बाद कर दिया.

मालेगांव जांच में शामिल रहे पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने कहा, 'केस को ऐसे पेश किया गया, जैसे 'भगवा आतंकवाद' को स्थापित करना हो.'

महबूब मुजावर ने जो खुलासे किए हैं उसका विश्लेषण हम आगे करेंगे. लेकिन पहले आज हुए खुलासे के दूसरे विस्फोट की बात करते हैं. क्योंकि इसके बाद फिर कोई शक नहीं रह जाता कि कैसे कोशिश हिन्दुत्व की राजनीति को ही हमेशा के लिए खत्म करने की थी. लेकिन
हालात बदले. अदालत से मालेगांव ब्लास्ट का सच सामने आया तो सारी सच्चाई भी सामने आने लगी.

केस में गवाह रहे मिलिंद जोशी भी सामने आये और जी न्यूज पर ये कहकर पूरे देश को हैरान कर दिया कि उन्हें मालेगांव ब्लास्ट में योगी आदित्यनाथ को फंसाने के लिए कहा गया था. असीमानंद का नाम भी लेने के लिए कहा गया. दबाव बेइंतहां था, अधिकारी मुझे टॉर्चर करते थे. मनगढंत कहानियां बनाने का दबाव डालते थे. 

टारगेट पर कौन-कौन लोग थे ?

अब मिलिंद जोशी और महबूब मुजावर के खुलासों से साजिशों का पैटर्न समझिए. मालेगांव ब्लास्ट की नई पटकथा लिखने वालों के लक्ष्यों को जानिए. सोचिए.  टारगेट पर कौन-कौन लोग थे ? मोहन भागवत, योगी आदित्यनाथ, असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा यानी हिन्दुत्व के प्रबल और प्रखर चेहरे.

सितंबर 2008 में मालेगांव ब्लास्ट होता है. गौर कीजिए,  समझिए कि टारगेट कहां था? मोहन भागवत,  तब संघ के अग्रणी नेता थे और केएस सुदर्शन की जगह संघ प्रमुख बनने वाले थे. मार्च 2009 में भागवत संघ प्रमुख बने भी. आपको बता दें कि तब योगी आदित्यनाथ भगवा खेमे के प्रखर चेहरे की शक्ल में उभर रहे थे और 1998 से लगातार गोरखपुर से सांसद बनकर संसद में बुलंद भगवा आवाज बन रहे थे.

जाहिर है कोशिश भारतीय सियासी जमीन पर में आकार ले रहे हिन्दुत्व की राजनीति के मूल पर प्रहार की थी. उसे खत्म कर देने की थी.  हमेशा-हमेशा के लिए. इसी साजिश में 'हिन्दू आतंकवाद' शब्द झूठ के सांचे में गढ़ा गया.  फिर इस शब्द को बार-बार दोहराया गया. 
ऐसा कर हिन्दू आतंकवाद शब्द को स्थापित करने की कोशिश की गई.

योगी ने एक्स हैंडल से लिखा- ' आखिरकार सत्य की जीत होती है. मालेगांव विस्फोट प्रकरण में सभी आरोपियों का निर्दोष सिद्ध होना 'सत्यमेव जयते' की सजीव उद्घोषणा है. यह निर्णय कांग्रेस के भारत विरोधी, न्याय विरोधी और सनातन विरोधी चरित्र को पुनः उजागर करता है. जिसने 'भगवा आतंकवाद' जैसा मिथ्या शब्द गढ़कर करोड़ों सनातन आस्थावानों, साधु-संतों और राष्ट्रसेवकों की छवि को कलंकित करने का अपराध किया है. कांग्रेस को अपने अक्षम्य कुकृत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए.'

जाहिर है योगी अपनी पीड़ा के साथ साथ उस राजनीति की ओर भी इशारा करते हैं. जो मालेगांव ब्लास्ट के बाद पर्दे के पीछे चली. लेकिन जो 17 साल बाद अदालत के फैसले के बाद बेपर्दा हो गई.

लेकिन इतना कुछ हो जाने के बाद भी कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण की जिद देखिए. मालेगांव पर अदालत के फैसले के बाद हार की खीझ देखिए.  पृथ्वीराज चव्हाण अब सनातन आतंकवाद की थ्योरी लेकर आ जाते हैं.

क्रोनोलॉजी समझिए

हिन्दुत्व के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की मंशा को समझिए. ऐसे में अब बेहद गंभीर सवाल है कि क्या यही कारण है कि कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी बार-बार संघ और संघ प्रमुख को टारगेट करते हैं? ऐसा करते हुए किसी भी हद तक चले जाते हैं? यही वजह है कि अदालत के फैसले के बाद भी कांग्रेस पीछे नहीं हट रही है. उसके नेता हिन्दू आतंकवाद के बाद अब सनातन आतंकवाद तक चले गए हैं. हालांकि कांग्रेस के सहयोगी दलों के नेता भी हिन्दू आतंकवाद कहने से परहेज कर रहे हैं, जबकि इस मुद्दे पर बीजेपी आक्रामक है.

जैसा पूर्व पुलिस अधिकारी मुजावर ने कहा- 'कोई भगवा आतंकवाद नहीं था. सब कुछ फर्जी था तो जाहिर है धमाके की आग और इस राख पर एक अलग तरह की राजनीति हो रही थी. स्क्रिप्ट संघ पर टारगेट के जरिए हिन्दुत्व की राजनीति को खत्म करने की ही थी'

उस धमाके में 6 बेगुनाहों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे. ये बड़ी जनहानि थी. लेकिन सोचिए अगर धमाके के बाद के मंसूबे कामयाब हो गए होते तो क्या होता? मुमकिन है कि कांग्रेस की राजनीति को ये रास आता. लेकिन दो समुदायों के बीच भी इसका कितना बुरा असर हो सकता था ? आपसी द्वेष किस हद तक बढ़ सकता था ? शायद भागवत और योगी के कद को देखते हुए अफसर तब कदम पीछे खींच गए. लेकिन फिर से सवाल वही है कि अगर ऐसा हो गया होता तो क्या होता?

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