Uttarakhand Freedom Fighters: जलियांवाला बाग हत्याकांड ने देश के कई युवाओं के दिलों में अंग्रेजों के खिलाफ अंगार भर दिया था. ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे उत्तराखंड के अनुसूया बहुगुणा जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हर मोर्चे पर लोहा लिया और गढ़केसरी के नाम से मशहूर हुए.
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Dehradun: उत्तराखंड की धरती हमेशा से अपने वीर सपूतों और महान विभूतियों के लिए जानी जाती रही है. इन्हीं में से एक नाम है अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, जिन्हें जनता ने प्यार से “गढ़केसरी” की उपाधि दी. जन्म से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक उन्होंने समाज सुधार, स्वतंत्रता संग्राम और जनकल्याण के लिए जो कार्य किए वे आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं.
जन्म और शिक्षा
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का जन्म 18 फरवरी 1894 को चमोली जिले के पुण्य तीर्थ अनुसूया देवी आश्रम में हुआ. माता-पिता ने अुनसूया देवी के नाम पर उनका नाम रखा. प्रारंभिक शिक्षा नंदप्रयाग और मैट्रिक पौड़ी से पूरी कर, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और 1916 में कानून की पढ़ाई पूरी की. शिक्षा काल से ही उनके मन में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित हो चुकी थी.
राष्ट्रवाद की ओर कदम
नायब तहसीलदार के पद पर कार्यरत रहते हुए वे जलियांवाला बाग कांड (13 अप्रैल 1919) से गहराई से प्रभावित हुए. बैरिस्टर गुम्दीलाल के साथ उन्होंने अमृतसर में कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और गढ़वाल की समस्याएं उठाईं. रॉलेट एक्ट के विरोध में उन्होंने गढ़वाल में आंदोलन शुरू किया, जबकि तत्कालीन समाज अंग्रेजी शासन के प्रति वफादार माना जाता था.
कुली बेगार उन्मूलन आंदोलन
1920-21 में कुमाऊं में बद्रीदत्त पांडे कुली बेगार प्रथा के खिलाफ नेतृत्व कर रहे थे, तो गढ़वाल में यह जिम्मेदारी अनुसूया बहुगुणा ने संभाली. रुद्रप्रयाग से 32 किमी दूर ककड़ाखाल से आंदोलन की शुरुआत हुई. जब ब्रिटिश अधिकारी वार्ता के लिए आए, तो ग्रामीणों ने उन्हें रातों-रात गांव से बाहर निकाल दिया. इस साहसिक कदम के बाद अंग्रेज सरकार ने दमनकारी कार्रवाई की, लेकिन बहुगुणा के नेतृत्व में आंदोलन सफल रहा और कुली बेगार, कुली उतार व बर्दायश जैसी कुप्रथाएं समाप्त हुईं. इसी विजय के बाद जनता ने उन्हें “गढ़केसरी” का सम्मान दिया.
राजनीतिक और सामाजिक योगदान
1921 में वे श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित युवा सम्मेलन के अध्यक्ष बने और जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री चुने गए. 1930 में नमक सत्याग्रह में उन्होंने उत्तराखंड का नेतृत्व किया, जिसके चलते उन्हें चार महीने की जेल हुई. 1931 में वे जिला बोर्ड के चेयरमैन बने और बदरी-केदार आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए हरिद्वार से गौचर तक हवाई सेवा शुरू करवाई.
1937 में वे गढ़वाल से संयुक्त विधान परिषद सदस्य बने और 1939 में श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंधन कानून पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने बद्रीनाथ धाम की व्यवस्था सुधारने और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं को बढ़ाने में अहम योगदान दिया.
नेताओं का सम्मान और ऐतिहासिक मुलाकातें
1934 में वायसराय की पत्नी लेडी विलिंगटन के स्वागत में वे अग्रणी रहे, जबकि 1938 में जवाहरलाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित के गढ़वाल दौरे में उनका विशेष साथ रहा.
कई आंदोलनों का हिस्सा बन जेल भी गए
सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा भी हुई.उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन में भी बढ़चढ़ का हिस्सा लिया था. 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान उनकी क्रांतिकारी आवाज को दबाने के लिए उन्हें अंग्रेजी सरकार ने नजरबंद भी किया. लेकिन तमाम असहनीय यातनाओं के बावजूद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई नहीं छोड़ी. अनंतता: आजादी की लड़ाई में हर मोर्चे पर लोहा लेने अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का स्वास्थ्य कारणों से 23 मार्च 1943 को देहावासन हो गया.
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे जनसेवक, समाज सुधारक और दूरदर्शी नेता भी थे. उनका जीवन गढ़वाल और पूरे उत्तराखंड के लिए गौरव की गाथा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी.
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