Who was Veer Nantram Negi: उत्तराखंड में एक ऐसा आदिवासी योद्धा हुआ, जिसने मात्र 25 साल की आयु में अपनी वीरता और साहस से इतिहास रच दिया था. कम उम्र में ही इस योद्धा की वीरता की गूंज दूर-दूर तक फैल चुकी थी.
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Who was Veer Nantram Negi: 15 अगस्त आने वाला है. वीर सपूतों का जिक्र हो रहा है. क्रांतिकारियों की वीरता और साहस के कई किस्से आपने सुने होंगे. उत्तराखंड में एक ऐसा आदिवासी योद्धा हुआ, जिसने मात्र 25 साल की आयु में अपनी वीरता और साहस से इतिहास रच दिया था. ये वीर आदिवासी योद्धा नंतराम नेगी हुए, जिसे गुलदार की उपाधि दी गई. वीर नंतराम नेगी ने मुगल आक्रांताओं की फौज को घुटने टेंकने में मजबूर कर दिया. आइये जानते हैं वीर नंतराम नेगी की कहानी?...
कौन थे वीर नंतराम नेगी?
जानकारी के अनुसार, वीर नंतराम नेगी का जन्म साल 1725 में उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र के मलेथा गांव में हुआ था. नंतराम बचपन में ही शस्त्र विद्या में निपुण हो गए थे. कम उम्र में ही नंतराम की वीरता की गूंज दूर-दूर तक फैल चुकी थी. उनकी प्रतिभा और युद्ध कौशल के कारण उन्हें अपने क्षेत्र की सिरमौर रियासत की सेना में जगह मिली. उनके साहस और निपुणता को देखते हुए कुछ ही दिनों बाद उन्हें एक सैन्य टुकड़ी का मुखिया भी बना दिया गया. इसके बाद नंतराम ने अपने नेतृत्व में क्षेत्र की रक्षा के लिए कई साहसिक युद्ध लड़े.
राजा शमशेर प्रकाश ने सौंपी युद्ध लड़ने की जिम्मेदारी
साल 1781 में गुलाम कादिर नाम के रूहेला सेनापति ने सहारनपुर पर कब्जा करके यमुना नदी को पार कर पांवटा दून में डेरा डाल लिया. सिरमौर की राजधानी नाहन पर हमला करने की योजना बनाने लगा. उसके हमले की जानकारी सिरमौर के राजा शमशेर प्रकाश और उनके सेनापति को हुई. राजा शमशेर प्रकाश ने गुलाम कादिर से युद्ध लड़ने की जिम्मेदारी वीर नंतराम के कंधों पर सौंप दी. इसके बाद नंतराम नेगी ने अपनी सेना के साथ बहादुरी से मुकाबला किया.
रूहेली सेना के शिविर पर बोला हमला
बागडोर नंतराम नेगी के हाथ में थी. इसलिए उन्होंने अपनी बुद्धिमता दिखाई और गुलाम कादिर को योजनाबद्ध तरीके से हमला करने का मौका ही नहीं दिया. इससे पहले कि कादिर हमला कर पाता, नंतराम नेगी ने अपनी सेना के साथ रूहेली सेना के शिविर को घेरकर धावा बोल दिया. नंतराम नेगी ने गुलाम कादिर के शिविर में घुसकर अपनी तलवार से उसका सिर काट दिया. इस युद्ध में रूहेला सेना की हार तो हो गई, लेकिन नंतराम नेगी को भी अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी.
राजा शमशेर प्रकाश ने दी गुलदार की उपाधि
नंतराम नेगी की वीरता और साहस को देखते हुए राजा शमशेर प्रकाश ने उन्हें गुलदार की उपाधि दी. तब से उनके गांव को भी मलेथा गुलदार कहा जाने लगा. बता दें कि पहाड़ों में तेंदुए को गुलदार कहा जाता है. नंतराम नेगी बचपन से ही तेंदुए की तरह बहादुर थे. नंतराम नेगी के अदम्स साहस और योगदान की कहानी आज बच्चे-बच्चे पढ़ रहे हैं. जब नंतराम ने रूहेला सेना को धूल चटाई तो उनकी उम्र महज 25 साल ही थी. नंतराम के पैतृक गांव मलेथा में उनकी स्मृति में एक प्राचीन मंदिर भी बनवा दिया गया है. दशहरे के दिन गांव के लोग नंतराम के शस्त्रों की पूजा करते हैं.