Jalaun News: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच मुस्लिम समुदाय ने हर साल मनाए जाने वाले उर्स को लेकर बड़ा फैसला लिया है. यह फैसला उर्स कमेटी ने लिया है.
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Jalaun/Jitendra Soni: भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम हमला और फिर जवाबी कार्रवाई में भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसी तनाव को देखते हुए क्या हर साल की तरह इस साल भी उर्स मनाया जाना चाहिए इसको लेकर जालौन में उर्स कमेटी ने बड़ा फैसला लिया. मुस्लिम समुदाय की उर्स कमेटी ने फैसला लिया है कि इस साल उर्स नहीं मनाया जाएगा.
बता दें कि उरई के सैयद पदम शाह बाबा की दरगाह पर उर्स का पर्व बीते 45 सालों से मनाया जाता रहा है.
पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए
मुस्लिम समुदाय भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर उर्स नहीं मनाने के फैसले के साथ एक जुटा हुआ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगाए. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस दौरान शहीदों के सम्मान में दो मिनट का मौन भी रखा.
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कहा कि अगर युद्ध होता है, तो वो घायल नागरिकों और सैनिकों को बचाने के लिए रक्तदान करेंगे.
मुस्लिमों द्वारा लिये गए फैसले पर सदर विधायक गौरीशंकर वर्मा ने उर्स कमेटी के साथ बैठक कर फैसले को सराहा.
क्या होता है उर्स
उर्स आमतौर पर किसी सूफी संत की पुण्यतिथि पर उसकी दरगाह पर हर साल आयोजित किए जाने वाला उत्सव होता है. यह दक्षिण एशियाई देशों में मनाया जाता है. दक्षिण एशिया में सूफी संतों को चिश्तिया कहा जाता है और उन्हें अल्लाह का प्रेमी मानते हैं. उर्स के उत्सव में हम्द, नाट और कव्वाली संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उर्स की रस्मों को दरगाह का संरक्षक द्वारा निभाया जाता है. उर्स के समय दरगाह के आसपास मेला और बाजार लगता है जहां लोगों की भारी भीड़ पहुंचती है.
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