Kerala Ship Case: भारत के किनारे समंदर में खड़ा था जहाज, कोर्ट ने 'अरेस्ट' करने का क्यों दिया आदेश?
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Kerala Ship Case: भारत के किनारे समंदर में खड़ा था जहाज, कोर्ट ने 'अरेस्ट' करने का क्यों दिया आदेश?

Kerala High Court News: आपको याद होगा कुछ हफ्ते पहले केरल के तट पर एक जहाज के टेढ़ा होने की तस्वीरें आई थीं. उस पर काफी कंटेनर रखे हुए थे. बाद में यह डूब गया. केरल सरकार कोर्ट चली गई और अब उसी कंपनी के एक और जहाज को कोर्ट ने अरेस्ट करने का आदेश दिया है. क्या आपको पता है कि तट से कितनी दूरी तक के इलाके में कोर्ट का यह आदेश लागू होता है. 

Kerala Ship Case: भारत के किनारे समंदर में खड़ा था जहाज, कोर्ट ने 'अरेस्ट' करने का क्यों दिया आदेश?

जी हां, अरेस्ट. बस ये इंसानों जैसा नहीं है कि हथकड़ी लगाई जाएगी या जेल में बंद किया जाएगा. ऐसा संभव भी नहीं है लेकिन मामला थोड़ा अलग है. मई में एक जहाज के डूबने से हुए नुकसान को लेकर राज्य सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लाइबेरिया का कंटेनर शिप एमएससी अकितेता II तिरुवनंतपुरम के पोर्ट पर लंगर डाले हुए है. कोर्ट ने मामला सुनने के बाद शिप को सशर्त अरेस्ट करने का आदेश दे दिया. इससे पहले एमएससी एल्सा III डूबा था और उससे समुद्री इकोसिस्टम को काफी नुकसान हुआ है. 

केरल सरकार ने समुद्री कानून के तहत हाई कोर्ट में केस दायर किया. मेडिटेरेनियन शिपिंग कंपनी पर मुकदमा किया गया. उसकी एक फर्म एमएससी अकितेता II का संचालन करती है. इसी समूह की दूसरी कंपनी एमएससी एल्सा का संचालन करती थी. सरकार ने अलप्पुझा से करीब 25 किमी दक्षिण-पश्चिम में 25 मई को एमएससी एल्सा III के डूबने से केरल के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के कथित प्रदूषण/नुकसान के लिए 9,531 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है. वह जहाज 600 से ज्यादा कंटेनरों के साथ समंदर में समा गया था. इसमें से कुछ में प्लास्टिक की चीजें, खतरनाक पदार्थ और डीजल थे. 

समुद्री इलाका और भारत का कानून

अंग्रेजों के समय में बने कानून में समुद्री क्षेत्र से जुड़े ऐसे मामलों को केवल बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास के हाई कोर्ट देखते थे. तब ये ही भारत के प्रमुख बंदरगाह हुआ करते थे. अब केरल, कर्नाटक, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट के पास भी समुद्री विवादों की सुनवाई का अधिकार है. कोर्ट का अधिकार क्षेत्र संबंधित जल क्षेत्र तक फैला हुआ है. यह तट से 12 समुद्री मील तक का इलाका होता है. इसमें समुद्र तल, ऊपरी सतह और हवाई क्षेत्र शामिल होता है. 

मर्चेंट शिपिंग एक्ट 1958 के तहत रिसाव की स्थिति में तेल प्रदूषण क्षति के लिए जहाज के मालिक जवाबदेह बनाए गए हैं. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 अधिकारियों को कार्रवाई करने का अधिकार देता है. 

पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) भी जाया जा सकता है. 2016 में न्यायाधिकरण ने पनामा की एक शिपिंग कंपनी को 2011 में मुंबई तट पर उसके जहाज के डूबने के बाद तेल रिसाव के लिए 100 करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया था. 

जहाज को पकड़ा क्यों गया? 

दरअसल, इस केस में राज्य को मुआवजा दिए जाने तक एमएससी अकितेता II की गिरफ्तारी की मांग की गई थी. समुद्री कानून में किसी जहाज को अरेस्ट करना एक कानूनी प्रक्रिया को बताता है, जिसमें एक अदालत या सक्षम प्रशासन किसी जहाज को उसके या उसके मालिक के खिलाफ समुद्री दावे को सुरक्षित करने के लिए हिरासत में लेने का आदेश देता है. इसी वजह से कोर्ट ने जहाज को तब तक हिरासत में रखने का आदेश दिया जब तक जहाज के मालिकों द्वारा 9,531 करोड़ रुपये जमा नहीं किए जाते या सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती. 

याचिका में कहा गया है कि उस जहाज के कारण तेल प्रदूषण हुआ और 643 कंटेनरों में तमाम चीजों के कारण प्रदूषण होने से नुकसान हुआ. 9531 करोड़ रुपये के दावे में से 8,626.12 करोड़ रुपये पर्यावरणीय नुकसान के लिए और केरल में मछुआरों को हुए आर्थिक नुकसान के लिए 526.51 करोड़ रुपये की राशि मांगी गई है. 

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अनुराग मिश्र

अनुराग मिश्र ज़ी न्यूज डिजिटल में एसोसिएट न्यूज एडिटर हैं. वह दिसंबर 2023 में ज़ी न्यूज से जुड़े. देश और दुनिया की राजनीतिक खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं. 18 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर ...और पढ़ें

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